Saturday, January 9, 2021

सतसंग शाम दयालबाग़ /0901

 **राधास्वामी!! 09-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

  (1) मन तू सुन ले चित दे आज। राधास्वामी नाम की आवाज।।-(राधास्वामी धाम है अपर अपारा। राधास्वामी नाम है सार का सारा। जो सुने सोइ करे घट में राज।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.76,77)  

                                               

  (2) भूल पडी जग माहिं भरम बस जिल भयो। निज घर सुधि बिसराय जगत सँग लग रह्यो।।-(रैन दिवस दुख पाय सुने नहिं बात को। कंकर चुन चुन खाय सहे संताप को।।) (प्रेमबिलास-शब्द-123-पृ.सं.179,180)                                                   

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!                                                     

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-( 117)- का भाग

-आप जरा उस पुस्तक का विवादास्पद सारा प्रकरण एक बार सुन लें तो आपको लेखक का अभिप्राय भली प्रकार समझ में आ जायगा।                                          "

राधास्वामी- मत से थोड़ा बहुत भी परिचय रखने वाले लोगों दो बातों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करेंगे -(१) इसके अनुयायियों की गुरुभक्ति,(२) सत्संग- लालसा। इन बातों को छोड़ा जाय तो और कोई विशेष बात प्रतीत नहीं होती । इस मत के अनुयायी गुरु भक्ति और गुरु कृपा द्वारा ही उस परमात्मा की प्राप्ति मानते हैं । इसीलिए गुरुभक्ति की भी परमावधि हो गई है।  गुरुभक्ति तो उचित ही है।  हमारे यहाँ भी कहा ही है:-                                                                         

'यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ। तस्यैते कथिता ह्यर्था:  प्रकाशन्ते महात्मनः'।।                                                      हमारे यहाँ भी ब्रह्म जानने के लिए विशेष गुरु के पास जाना लिखा है।                        "

समिप्ताणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठमित्यादि"।            

 परंतु राधास्वामी- मत के गुरु लोग वेद- शास्त्र -ज्ञान विहीन होते हैं । और इधर अनुयायियों की भक्ति का इतना अतिरेक के गुरु का उच्छिष्ट तक खा पी जाते हैं ।

थोड़ी देर के लिए संसार की बातों से विमुख हो एकाग्रचित्त से कुछ ध्यान आदि करने से साधारणतया चित्तवृत्ति निरोध का सुख प्राप्त कर उसी में अपने को कृतकृत्य समझते हैं। आगे नहीं बढ़ते।'

गुरुडम' पर कुठार उठाने वाले कट्टर आर्यसमाजियों को गुरुभक्ति का कम अनुभव है। इसलिए वे भक्तिमार्ग के तत्व को यथार्थ रूप से नहीं जानते। केवल ज्ञानमार्गी बने हुए हैं। केवल बातों से ही सारे संसार को वश में करना चाहते हैं। यदि कहीं उनके ज्ञानमार्ग के साथ भक्तिमार्ग का भी प्रवेश होता तो आर्य समाज की आज और ही गति होती। भक्तिरस के बिना ज्ञानरस व्यर्थ है।                                      

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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