Tuesday, January 12, 2021

धन और पद की लालसा

 🙏 *धन और पद को पाना अच्छा है या बुरा* 🙏


न तो धन बुरा है, न पद। यदि हममे जागरुकता हो तो सब सुंदर है;। यदि हम अपने मन क प्रति सजग है तो धन भी सृजनात्मक है। धन शक्ति है। धन बहुत कुछ कर सकता है। मैं धन—विरोधी नहीं हूं। मैं उन महात्माओ का बिल्कुल विरोधी हूँ जो तुम्हें ये समझाते रहे कि बचो धन से! भागो धन से! वे बातें कायरता की बातें हैं।

मैं कहता हूं: जीओ धन में, लेकिन धन के लिए नही। ध्यान हमेशा खुद पर रहना चाहिए। ध्यान भीतर रहे, धन बाहर, फिर कोई चिंता नहीं है। फिर हम कमलवत हो जाते है। फिर पानी में रहेंगे और पानी हमे छुएगा नहीं।


मैं कोई पद का भी दुश्मन नहीं हूं। आखिर दुनिया चलनी है तो लोगों को कहीं न कहीं तो होना होगा ।इतना बड़ा संसार है, इसका विस्तार, इसका काम, इसकी व्यवस्था...किसी को कहीं न कहीं तो होना ही पड़ेगा। बस इतना ही खयाल रहे, पद से तादात्म्य न हो। तुम चाहे राष्ट्रपति हो जाओ तो भी राष्ट्रपति मत बन जाना। जानना—बस एक काम है ।  दुकान पर दुकानदार हो जाना, घर आकर सब भूल—भाल जाना। लेकिन परेशानी यह है कि लोग भूलते ही नहीं। 24 घंटे तादात्म्य, या बीमारी है।


पद तुम्हें पागल न बनाए। पद तुम्हें विक्षिप्त न करे। पद का उपयोग हो। तुम पद के साथ तादात्म्य न कर लो। ये काम तो सब चलते रहेंगे। लेकिन समझदार वही है जो इन कामों से तादात्म्य नहीं करता। इन कामों के कारण अकड़ नहीं जाता। समझदार जानता है कि जूता बनाने वाला चमार भी उतना ही उपयोगी काम कर रहा है जितना राष्ट्रपति। इसलिए अपने को कुछ श्रेष्ठ नहीं मान लेता, क्योंकि जूता बनाने वाला उतना अनिवार्य है जितना कोई और। इसलिए कोई हायरेरकी, कोई वर्ण—व्यवस्था पैदा नहीं होती कि मैं ऊपर, तुम नीचे; कोई सीढ़ियां नहीं बनतीं। सारे लोग, समाज के लिए जो जरूरी है, उस काम में संलग्न हैं। जिससे जो बन रहा है, जिसमें जिसको आनंद आ रहा है, वह कर रहा है। 


जिस दिन तक पद हम पर हावी न हो उस दिन पद में कोई बुराई नहीं। और धन हमारे जीवन का सर्वस्व न हो जाए। तुम धन को ही इकट्ठा करने में न लगे रहो। धन साधन है, साध्य न बन जाए। धन के लिए तुम अपने जीवन के और मूल्य सब गंवा न बैठो। तो धन में कोई बुराई नहीं है। मैं धन का निंदक नहीं हूं। मैं तो चाहूंगा कि दुनिया में धन खूब बढ़े, खूब बढ़े, इतना बढ़े कि देवता तरसें पृथ्वी पर जन्म लेने को!


लेकिन धन सब कुछ नहीं है। कुछ और भी बड़े धन हैं—प्रेम का, सत्य का, ईमानदारी का, सरलता का, निर्दोषता का, निर—अहंकारिता का। कुछ और भी धन हैं—धन से भी बड़े धन हैं! कोहिनूर फीके पड़ जाएं, ऐसे भी हीरे हैं— वे हीरे हमारे भीतर हैं! 


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