Wednesday, January 27, 2021

राधास्वामी सतसंग दयालबाग़ शाम 27/01

 **राधास्वामी!! 27-01-2021-आज शाम सतस़ग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) मनुआँ मेरा सोवे जगत में। जगा देव जी।।टेक।। गुरु सतसंग में ले चल सजनी। बचन सुना देव जी।।-(राधास्वामी चरन निहारूँ। काज बना देव जी।।) (प्रेमबानी भाग-4-शब्द-6-पृ.सं.94)                        

 (2) गुरु ज्ञान को जान सोइ मानता है, जो ध्यान सों ज्ञान को काम लावे।।-

( गहे हाथ कम्मान बिन बान मारे, मतिमंद सो मूढ रन जीत चाहीं।।)

,दिन  चार का खेल संसार है यह, पल चार का भोग और राज भाई।

जमराज जिस आन पहुँचे, नहिं शान अभिमान कुछ काम आई।। सौ बात की बाय इक मान लीजे, भ्रमज्ञान और मान को तुरत छोडो।

-(गुरु प्रेम की प्यास की आस दृढ ले, गुरु संग में मन और सुरत जोडो।।) (प्रेमबिलास-शब्द- 130,131,,रेख्ता- पृ.सं.196,197)                                            

 

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।           

                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 27-01- 2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे:- [कुटुम्ब से घृणा]-( 133)-

प्रश्न- यदि यह आपका शब्द नहीं है तो यह तो आपका शब्द है -"गुरुसम और नहीं कोई रक्षक । कुल कुटुम सब जानो तक्षक"? आर्य भाई कहते हैं यदि कुल- कुटुम्ब सब काले नाग है तो राधास्वामियों को ऐसे काले नागों को या तो मार देना चाहिए या छोड़ देना चाहिए। यदि कुल-कुटुम्ब ऐसे होते तो महारानी सीता ऐश्वर्य पर लात मारकर श्रीराम के साथ बनो में कष्ट क्यों उठाती?और रामचंद्र जी महाराज को क्या आवश्यकता थी कि पिता का वचन मान कर बनो में कष्ट उठाते क्योंकि पिता तो काले नाग थे?

ये राधास्वामी आर्य- सभ्यता को संसार से मिटा देना चाहते हैं । और यह सब इसलिए लिखा है कि स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़कर गुरु की सेवा में आ जावें।।

                                      

उत्तर-यह शब्द सारबचन का अवश्य है किंतु जो अर्थ आक्षेपक लगाते हैं और जिस बात की इस उपदेश की तह में आशंका करते हैं वह उनके हृदय की मलिनता प्रकट करती है। और यदि यही आर्य-सभ्यता का   आदर्श है तो जितना शीघ्र यह संसार से मिट जाय अच्छा है ।

क्या आप यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि कुल- कुटुंब के मोह में लिपटकर मनुष्य संसार का हो रहता है और परमार्थ को भूल जाता है? क्या मनु महाराज ने आर्यों को जीवन के चार विभाग करने और गृहस्थाश्रम से निवृत्त होकर वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों में जाने के लिए आज्ञा इसलिए दी कि आर्य-सभ्यता संसार से मिट जाय ? क्या आपको यह ज्ञात नहीं ब्रह्र्मचारियों को बस्ती और घरबार से दूर गुरुकुलों में पढ़ने और स्त्रियों से अलग रहने की कड़ी आज्ञा दी गई है ?

 मनुस्मृति के दूसरे अध्याय में लिखा है कि "ब्रह्मचारी माँ, बहिन, लड़की इन सबके साथ अकेले मकान में न रहे क्योंकि इंद्री बहुत बलवान् है । पंडितों को भी बुरी राह पर खींच ले जाती है "(श्लोक २१५ )। क्या माँ, बहिन या लड़की देख कर भी आर्य ब्रह्मचारियों के चित्त में विकार उत्पन्न हो जाता है?

नहीं ,नहीं ; यह उपदेश ब्रह्मचारियों के धर्म की रक्षा के लिए किया गया है।और इसी अर्थ में पुस्तक सारबचन में मालिक के दर्शन के चाहने वालों को सावधान करने के लिए कुल-कुटूम्ब के मोह को काला नाग बतलाया गया है। मोह के वश में होकर जीव सच्चे मालिक और परमार्थ को भूल जाता है और संसार में लिपट जाता है और घर तथा कुटुम्बियों की प्रीति प्रबल मोह उत्पन्न करती है।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                    

  यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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