Tuesday, January 26, 2021

भागवत गीता और प्रेमपत्र

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-[ भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-

 वैसे वेदों की बड़ी महिमा है लेकिन सच्चे ब्रह्मज्ञानी के लिए वेद वही हैसियत रखते हैं जो किसी पानी से परिपूर्ण विस्तृत जलाशय के मुकाबले पानी से भरे हुए गड़हे की होती है। इसलिये तुम्हें उन वेदों के वाक्यों में अटकने वालों की बातों को नजरअंदाज करना चाहिये।

तुम्हारा तअल्लुक कर्म से होना चाहिये, उसके फल से नहीं । इसलिए कभी फल की नियत से कर्म न  करो लेकिन साथ ही यह भी ख्याल रक्खो कि कहीं फल की इच्छा छोड़कर अर्कम या आलसी न बन जाओ।

 तुम कर्म तो जरूर करो पर तुम्हारा तार अंतर में जुड़ा रहे, दुनियाँ की मोहब्बत कतई तुम्हारे दिल में ना आने वाले और कामयाबी व नाकामयाबी दोनों की सूरतों में तुम्हारा चित्त हमवजन पलडों की तरह सम यानी अडोल रहे।  इस तरह समचित रहने ही को योग कहते हैं। मतलब यह है कि बुद्धियोग से कर्म का दर्जा निहायत नीचा है।

 फल की इच्छा लेकर कर्म करने वालों की हालत तरस के काबिल है। तुम्हें निश्चयआत्मक बुद्धि की शरण लेनी मुनासिब है। ऐसा करने से दुनिया में इंसान शुभ और अशुभ दोनों किस्म के कर्मों की झंझट से छूट जाता है। इसलिए तुम्हें योग मार्ग धारण करना चाहिये। योग दरअस्ल कर्म करने के ढंग का नाम है।।

क्रमशः                                    


परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-

कल से आगे-( 11)

- पर जानना चाहिए कि इन सब हालतों में इस शख्स की समझ और विचार और शौक खौफ की कमी है। जो इसको सच्चा शौक होवे या सच्चा खौफ मौत और दुखों का जिसके दिल में पैदा होवे, तो वह उन सब बातों का, जो निंदक और निरे संसारी लोग अपनी अनजानता से बनाते हैं, सत्संग में बैठकर निर्णय कर सकता हैं।

 और तब उन बातों का गलत और झूठा होना उसको साफ साबित हो सकता है, और यह भी उसको रोशन हो जावेगा कि यह सब लोग असल में उसके जीव के कल्याण के विरोधी हैं और उसको परमार्थी काररवाई से बाज रखते हझ- खास दुश्मनी उसके साथ कर रहे हैं यानी वे सब अपनी जान के दुश्मन है और ऐसी ही दुश्मनी उसकी जान के साथ करते हैं।  फिर ऐसे आदमियों की बातचीत और कार्यवाही नामुनासिब है। पर अपने जीव के कल्याण की कार्रवाई को मुल्तवी करना या छोड़ देना

इस शख्स की भी भारी नादानी और गफलत का सबब है। और उसकी समझ बूझ और विचार और निर्णय का भी ऐतबार नहीं हो सकता, क्योंकि जो इन ताकतों को वह काम मे लाती हो तो हरगिज नादान और जाहिरबीन यानी ऊपरी दिखावे के लोगों की बात पर अमल नहीं करता।

ऐसे लोगों की प्रतीति, जो थोड़ी बहुत वक्त सत्संग के मालूम होती है, वह दबाव और दिखाने की है, सतसंग से अलग होते ही जाती रहती है और इस सबब से वे कुछ कार्यवाही परमार्थी नहीं कर सकते।                                                   

   प्रतीति उन्हीं शख्सों की सही और दुरुस्त है कि जो उसके मुआफिक कार्रवाई शुरू कर दें।


क्रमशः                        

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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