Thursday, January 14, 2021

सतसंग शाम 14/01

 **राधास्वामी!! 14-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

  (1) बिन दरशन कल नाहिं पडे। मेरे गुरु प्यारे हो।।-(राधास्वामी मेहर से दर्शन दीजे। तब मेरा सब काज सरे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-3,पृ.सं.82,83)                                                          

 (2) मन सोच समझ रे भाई तेरे हित की कहूँ बुझाई।। बिन किरपा सतगुरु पूरे जिव काज बने नहिं भाई।।-(यह सत्य सत्य मैं भाखा नहिं मानो रहो पछताई।। (प्रेमबिलास-शब्द-125-पृ.सं.)184,185) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!!                                           

 14- 01-2021-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे-( 121)-


 अब रहा हमारी पुस्तक सारबचन के शब्द का विषय। इसके समझाने के लिए हम उस कुल शब्द का अर्थ उपस्थित करते हैं जिसमें पूर्वोत्तर कड़ी आई हैं । देखिए बचन 24, शब्द तीसरा:- हे विद्या तू बड़ी अविद्या। संतन की तैं कदर न जानी।१।                       

  हे लौकिक विद्या! तू बडु अविद्या है। तू सन्तों की कदर समझने में असमर्थ है।।                                                      संत प्रेम के सिन्ध भरे हैं। तैं उल्टी बुधि कीचड़ सानी।२।                                      

  सन्तन प्रेम लगा प्यारे से। उनकी सूरत शब्द समानी।३।                                                 

   तू धन मान प्रतिष्ठा चाहे। और चतुरता मे लिपटानी।४।                                             

संत प्रेम के समुंद्र होते हैं और इसके विपरीत तू मनुष्य को बुद्धि के कीचड़ में फँसाती है। संतों का प्रेम सच्चे मालिक से लगा रहता है और उनकी सूरत संसार के पदार्थों के बजाय अंतरी शब्द में जुड़ कर शांत रहती है। तू मनुष्यों के हृदय में संसार का धन-धान्य, विभव-विभूति की चाह उत्पन्न करती है और उन्हें चालाक बनाती है ।                                                                

 कलि में जीव बहुत तैं घेरे। बिरले गुरमुख बचे निदानी।५।                                            

      इस कलयुग के समय में तूने बहुत से जीवो को वश कर लिया है। जिन थोड़े से लोगों ने सतगुरु की शरण ग्रहण कर ली है वे ही तेरे दाव से बचे हैं।                                         उनकी प्रेम अनुभवी बानी। तू बुद्धि संग रहत खपानी ।६।                                              

 संत अनुभवी ज्ञान का उपदेश फर्माते हैं। तू मनुष्य को त्रिगुणात्मक बुद्धि के द्वारा प्राप्त होने वाले ज्ञान में खपाती है।                               

विद्या पढ़ पढ़ बहुत पचे हैं। प्रेम बिना कुछ हाथ न आनी।७।

                                             

ये बेचारे लौकिक  विद्याओं को पढ़ने और सीखने में मिलते हैं परंतु जोकि प्रेम और श्रद्धा से खाली है इसलिए उनके कुछ हाथ नहीं लगता। नरदेव शास्त्री जी और 'एक आगरा निवासी' ने भी तो यही बात लिखी है न?  पर हाँ राधास्वामी मत की पुस्तक के उपदेश असत्य और अरे भाई की कहन सत्य!      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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