Sunday, January 24, 2021

राधास्वामी सतसंग शाम -24/01

 **राधास्वामी!24-01-2021-आज शाम सत्संग में पढ़ें गये पाठ:-                                            


(1) भजन मैं कैसे करूँ हेली री। भजन मैं कैसे करूँ।। बिध मन निश्चल होय। भजन मैं कैसे करूँ।।-(बिन दया यह मन नहिं माने। करिये केती घाल।। राधास्वामी चाहें तो छिन में मोडें। पल में करें निहाल।।) (प्रेमबानी-भाग 4- शब्द-3-पृ.सं.91,92)                                         

(2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीति सों साज। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।। हे स्वामी इक और भी सुनिये। जल अग्नी का लेखा गुनिये।।-(पतिब्रता पति को गहज स्वाँति बुंद जस सीप। और न जलसों काम है जल थल भरे समीप।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-129-पृ.सं-193,194)                                               

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।  

                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!                    

24-01-2021-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 129)-

लीजिए दो-चार वैदिक पहेलियाँ भी सुन लीजिये। यहाँ केवल अनुवाद लिखा जाता है:- जो सात उस रथ पर चढ़े, सात घोड़े सात पहियों वाले (रथ) को खींचते हैं, सात बहिनें इकट्ठी स्तुति करती हैं, जहाँ गौओ के सात नाम रक्खे हुए हैं(९/३)।                                         

  किसने उसको देखा जब वह पहले पहल जन्म ले रहा था, जहाँ हड्डी से रहित हुई वह हड्डी वाले को धारती है। भूमि का प्राण, रुधिर, आत्मा कहाँ है, कौन यह बात पूछने के लिए जानने वाले के पास पहुँचा?(९/४)। वह यहाँ बतलाये जो उसको, उस सुहावने पक्षी के रक्खे हुए खोज को तत्त्वतः जानता है, गौएँ उसके सिर से दूध दुहती है, वस्त्र को पहने हुए जब उन्होंने पाओं से जल पिया(९/५)।                                             

जरा आक्षेपक महाशय से पूछिये कि ईश्वर ने वह कौनसा पक्षी बनाया है जिसके सिर से गायें दूध निकालती है। और वह कौन सी गायें है जो कपड़े पहनकर पावों से पानी पीती है? क्या वे सब दोष जो राधास्वामी-मत के प्रवर्तक पर लगाये जाते हैं और वेदों के रचने वाले ईश्वर पर भी लगाये जाएयँगे?*


*(130 )-कुछ वैदिक पहेलियाँ और सुन लीजिये:-                                                

 साँस लेता हुआ शीघ्र गति वाला, जीता हुआ, मरे हुए की शक्तियों से चलता है, न मरने वाला मरने वाले के साथ एक स्थान वाला है(१०/८)।।

                                                     

पूछता हूँ तुझसे पृथ्वी का परला सिरा, पूछता हूँ नर घोड़े का बीज, पूछता हूँ सारे भुवन की नाभि, और पूछता हूँ वाक् का परम आकाश (१०/१३)।   

                                              

गोबर का धुआँ मैंने दूर से देखा( आकाश के) मध्य मार्ग के साथ-साथ जो उस निचले से ऊपर है, वीरों ने चितकबरे बैल को पकाया, वे पहले धर्म थे (१०/२५)।                               

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻  

                                      

   यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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