Tuesday, January 26, 2021

सतसंग शाम DB 26/01

 **राधास्वामी!! 26-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                      

 (1) भक्त का पंथ निराला है।।टेक।। भक्तन के भगवंत की महिमा। और सकल जंजाला है।।-(राधास्वामी दयाल भक्त को अपने। मेहर से आप सम्हाला है।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.93)                                                                 

(2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीत सों साज। छिमा माँग बिनती टहूँ सुनिये पति महाराज।। ऐसी अबल और आतुर नारी। जीवन के जिस तुम ही अधारी।।-(राधास्वामी परम गुरु परम पुरुष भरतार। दया धार उमँगाइये अपनी ओर निहार।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-1 29-पृ.सं.195, 196)                                                       

 {3}यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे।           🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 26- 01- 2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:- [स्त्रियों को धमकी]-( 132)-


प्रश्न -अच्छा, आपकी पुस्तकों में यह क्यों लिखा है -"जो कामिन परदे रहे सुने न गुरुमुख बात। सो तो होगी सूकरी फिरे उघारे गात"?  

 आर्यसमाजी आक्षेपक इसका यह अर्थ करते हैं कि जो स्त्रियाँ पर्दे में रहेंगी और राधास्वामी गुरु की बातें नहीं सुनेंगीं वे सूअरी होंगी और कहते हैं कि यह सब अपना उल्लू सीधा करने के लिए लिखा है कि जो स्त्री राधास्वामियों के सत्संग में न जावेंगी वह सूअरी होंगी ताकि उसे पढ़कर स्त्रियाँ डरे और उनके सत्संग में जावें।                                                            

 उत्तर- पहले तो यह कबीर साहब का दोहा है, राधास्वामी- मत के किसी आचार्य का इससे संबंध नहीं है। यदि विश्वास न हो तो कबीर साहब की 'साखी-संग्रह' (मुद्रित बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद) के पृष्ठ 17 पर साखी 6 देखो ।

 दूसरे इस दोहे में कोई बुरी बात नहीं कही गई है। यही फरमाया गया है कि जो स्त्री सच्चे साध संत के उपदेश सुनने से परहेज करेगी, और, जैसा कि पिछले दिनों में हिंदुओं में रिवाज था कि स्त्रियों को मकानों के अंदर कैद रखते थे और सूर्य की किरण तक देखने न देते थे और इस प्रथा के वशीभूत होकर हिंदू स्त्रियाँ अँधेरी कोठरियों ही में जीवन व्यतीत करना अपना धर्म समझती थी, जो इस्त्री इन विचारों से प्रभावित होकर महात्माओं के उपदेश सुनने के लिए परदे से बाहर न आवेगी अपने को छिपा कर अंधेरी कोठरी में जीवन बितावेगी वह धर्म से वंचित रह कर 84 के चक्कर में भरमेंगी। और परदे में रहने का उसे यह फल मिलेगा कि एक दिन पशु की नीच योनि धारण करके नंगी धडंगी फिरेगी। भला आप ही फर्माइये कि पहले तो कबीर साहब के दोहे को राधास्वामी दयाल का बचन ठहराना और फिर उसका यह अर्थ लगाना कि 'जो स्त्री राधास्वामियों के सत्संग में न जावेगी वह सूअरी होगी'  कैसे न्यायसंगत समझा जाता है?

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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