Sunday, January 24, 2021

सतसंग सुबह दयालबाग़ 24/01

 **राधास्वामी!! 24-01-2021- (रविवार)-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                        

 (1) जक्त भाव भय लज्जा छोडो। सुन प्यारे तू कर भक्ती।। सास ससुर डर मन से छोडो। सुन प्यखरे तू कर भक्ती।।-(जो मूरख हैं मर्म न जगनें। इनका डर क्या कर भक्ती।।) (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.स.249,250) 

                                                

 (2) खिला मेरे घट में आज बसंत।। भाग मेरा अचरज जाग रहा। हुए अब परसन सतगुरु संत।।-(सत्त अलख और अगम के पारा। राधास्वामी चरनन जाय मिलंत।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-38-पृ.सं.393,394) सतसंग के बाद विद्यार्थियों द्वारा पढे गये पाठ:-                                                              (1) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रेमबानी-2-शब्द-15,पृ.सं.416)

                                                          

  (2) सखी री मेरे भाग बढे। मुझे राधास्वामी मिले है दयाल।।(प्रेमबानी-1-शब्द-1-पृ.सं.78,79)                                                         

(3) अरी हे सहेली प्यारी मन से क्यों तू हारे, गुरु है तेरे सहाई।। (प्रेमबानी-3-शब्द-23-पृ.सं.173,174)                                                       

 (4) अनामी प्यारे राधास्वामी।।(प्रेमबानी-2-शब्द-6-पृ.सं. 409)                            

 (5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलू कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुआफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।                                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻l


**परम गुरु हजूर मेहताजी महाराज

-भाग 1- कल से आगे -(16 )

-बसंत की रात को सत्संग में जो शब्द पढ़ा गया उसकी पहली कड़ी यह है :-                                          

 बचन गुरु मनुआँ लो आज मान। ( प्रेमबानी- भाग 2- वचन 11, शब्द 16)                         

  हुजूर अकदस ने इस शब्द का हवाला देते हुए फरमाया कि इस शब्द के अंदर 'निज बचन' इस्तेमाल किया गया है । इससे मतलब यही है कि हमारे अंदर मालिक पर पूरा भरोसा हो और उसके अस्तित्व का आधार (Dependence) रहे।  जिस काम या सेवा के करने का हुक्म हो या जो काम करें मालिक पर भरोसा रख कर करें और काम करने के बाद नतीजे को मालिक की मौज व मर्जी पर छोड़ दें।    

                                

फरमाया आज बसंत की पवित्र रात को यह ख्याल रखते हुए की हुजूर राधास्वामी दयाल व हुजूर साहबजी महाराज जरूर सत्संग की कार्यवाही देख रहे होंगे, कई बार मौज से शब्द निकाले गये और तमाम शब्द निहायत  मौजूँ और हालात के मुताबिक निकले जिनसे यह बड़ी शक्ति मिलती है कि वह दयाल हमारी कार्रवाई में बदस्तूर शामिल है।

आप इन दो बातों को याद रखिए कि अगर कोई ऐसी पिछली घटना आपको याद आ जावे जब आपने मालिक पर भरोसा करके और उनकी शरण का सहारा लेकर कोई काम सिद्ध किया हो और उसके करते समय उन दयाल की तरफ से कोई मदद मिली हो या खास महत्व दया का तजुर्बा हुआ हो तो उसे इस बात का सबूत समझिए और आइंदा भी इसी तरीकेअमल पर कारबंद होकर उनकी दया व मेहर के भागी बनिये। और अगर अभी तक कोई ऐसा तजुर्बा नहीं हुआ तो आइंदा आप यह तरीकेअमल इख्तियार  कीजिए और दो बातों पर चलिए ।

 इसकी आजमाइश आड़े वक्त में होती है। जब कोई आसरा नहीं रहता तब उस वक्त यह नुस्खा कारगर साबित होता है।

क्रमशः                                      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे

 :- और अगर तुम्हें यह ख्याल है कि आत्मा नित्य जन्म धारण* **करता है और मरता है तब भी तुम्हारा शौक करना फिजूल ठहरता है ।क्योंकि जब जन्म और मरण आत्मा का धर्म ही है तो उसे रोक कौन सकता है?  आदि अर्थात् शुरू में जीव अव्यक्त अवस्था में रहते हैं, मध्य की दशा में शरीर धारण करके अपना खेल खेलते हैं और प्रलय होने पर अव्यक्त अवस्था में जा समाते हैं।

* *अब सोचो, रोना किस बात के लिए है? हे अर्जुन! कोई आत्मा को आश्चर्यवान (हैरत रुप)  देखता है। दूसरा आश्चर्यवान् बतलाता है और तीसरा आश्चर्यवान् सुनता है। पर किसी सुनने वाले के समझ में कुछ नहीं बैठता।

भारत! जब कि आत्मा, जो सब शरीरों के अंदर निवास करता है, अमर है तो किसी के मरने की फिक्र तुम क्यों करो?।30।।*                                                             

  **तुम क्षत्रिय हो, तुम अपने धर्म की तरफ नजर करो। भला क्षत्रिय का काँप जाने से क्या वास्ता क्षत्रिय को तो धर्मयुद्ध के समान कोई बात प्यारी ही नहीं होती।

मुबारिक है वे क्षत्रिय जिन्हे धर्मयुद्ध करने का मौका मिले। क्योंकि उनके लिए धर्मयुद्ध का मौका मिलना स्वर्ग के फाटक का बिना मांगे खुल जाना है ।* *

*और अगर तुम इस वक्त धर्मयुद्ध से कतराओगे तो धर्म से गिर जाओगे ।नाम को बट्टा लगाओगे और पाप के भागी बनोगे। लोग सदा तुम्हारी निंदा किया करेंगे और एक प्रतिष्ठित पुरुष के लिए निंदा मौत से बदतर है। सब सूरमा यही कहेंगे कि तुम डर कर मैदान से भाग गये और कोरे पतली दाल के खवय्या निकले। 35।*

**क्रमशः                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*

**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-

 भाग-1- कल से आगे:- (7)

 फिर जब की बुद्धि की समझ से और अंतर में थोड़ा अभ्यास करके  जिस जीव को थोड़ा बहुत यकीन राधास्वामी मत का हासिल हुआ, तब उस पर फर्ज हुआ कि अब होशियार होकर और इस दुनियाँ को परदेश और धोखे की जगह समझ कर अपने निजदेश की तरफ चलने की जुगत की कमाई तवज्जह और कोशिश के साथ हर रोज करता रहे।                                               

(8) - जिस किसी को सत्संग करके ऐसा यकीन हासिल हुआ जैसा कि दफा 2 और 3 और 4 में लिखा है, वह तो फौरन भेद रास्ते का और जुगत चलने की लेकर निहायत शौक के साथ अभ्यास करना शुरू कर देगा और जो परहेज और संयम जरूरी है उनको दुरुस्ती और सचोटी के साथ अमल में लावेगा और दुनियाँ और उसके कारोबार में मुनासिब और जरूरी तौर पर बर्ताव करेगा, और होशियारी रक्खेगा कि किसी चीज या मुआमले में उसका फँसाव और गिरफ्तारी न हो जावे।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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