Saturday, January 30, 2021

राधास्वामी सतसंग DB शाम /30/01

 **राधास्वामी!! 30-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

(1) मनुआँ अनाडी से कह दीजो। जाव बसो चौरासी देश।।-(नित गुन गाओ नाम पुकारो। राधास्वामी पूरन धनी धनेश।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.96,97)                        

(2) जब लग जिव जग रस चहे सहे दुक्ख बहु ताप। नीच ऊँच जोनी फिरे काल करम संताप।। मन मैला अति बलवता सब जग को दुख देय।। निर्मल अरु सीतल भया सरन गुरु की लेय।।(नारि पुरुष सबही सुनो बहुमूल्य यह भेद। प्रेम सहित गुरु दरस से मिटें सकल जिव खेद।।)  (प्रेमबिलास-शब्द-133-पृ.सं.198,199)

                                                     

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।  

                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 30- 01- 2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे -(136)-


 यदि आत्मदर्शन की महिमा समझकर याज्ञवल्क्य जी ने गृहस्थाश्रम से अलग होना उचित समझा और यदि सचमुच संसार के सब संबंधों की प्रीति अपनी आत्मा की कामना के लिए होती है तो जो मनुष्य परमात्मा से प्रेम और परमात्मा का दर्शन किया चाहता है और उसे यह सुधि नहीं है कि जब तक उसके मन में स्त्री, पुत्र आदि की प्रीति प्रबल है वह अपने संकल्प में सफल नहीं हो सकता क्योंकि मनुष्य का मन बार-बार उसी और जाता है जिधर उसका प्रेम है। और अंतर में मालिक के चरणो की ओर ध्यान तभी जुड़ सकता है जब मन  संसार के पदार्थों और कुटुंब की प्रीति कम कर दें।

तो क्या सतगुरु का यह कर्तव्य नहीं है कि उसे उपदेश करें कि उसके लिए कुल- कुटुम्ब का मोह हलाहल विष के तुल्य है? और यदि सतगुरु याज्ञवल्क्य जी की तरह सांसारिक प्रीति की असलियत दिखा प्रेमीजन को जंगल में भेजने के बदले कुल-कुटुम्ब से प्रीति कम करके कार्यमात्र बर्ताव करने के लिए शिक्षा दे तो क्या उसका यह अभिप्राय होगा कि स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़कर सतगुरु की सेवा में आ जायँ?

क्या राधास्वामी दयाल उपदेश सुना कर संसार भर की स्त्रियों और संसार भर के मनुष्यों से निजी सेवा कराया चाहते हैं? नहीं,नहीं; यह उपदेश परमार्थ के सच्चे अभिलाषियों के लिए है और वे ही इसका महत्व समझेंगे।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा


- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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