Wednesday, January 27, 2021

सतसंग सुबह DB 28/01

 राधास्वामी!! 28-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     

(1) धोखा मत खाना जग आय पियारे। धोखा मत खाना जग आय।। जो बेमुख गुरु भक्ति नाम से। कोइ तरह काबू नहिं पाय।।-(भक्ति न छूटे कोई जुक्ती से।नहिं तो बहु बिधि रहो पछताय।।) (सारबचन-शब्द-तीसरा-पृ.सं.252,253)                                                            

(772) शब्द सँग सूरत अधर चढाय।।टेक।। गुर की दया संग ले अपने। निज घर ओर चलो तुम आय।।-(राधास्वामी चरन निहारो। धाम अनामी जाय समाय।।) (प्रेमबानी-भाग 2- शब्द-42-पृ. सं.396) 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज


- भाग 1- कल से आगे:-( 18 )- 

'सत्संग के उपदेश' से बचन पढ़ा गया। उसका कुछ अंश नीचे दिया जाता है- रहनी- गहनी तब्दील करने के लिए संचार की जानिब से सच्चे वैराग्य और मालिक के चरणो में सच्चा अनुराग दरकार है। 

और यह वैराग्य और अनुराग आला संस्कारों से होता है। और संस्कार सिर्फ गुरु महाराज के चरणों की नजदीकी और उनके सत्संग से पैदा होते हैं। इस तरह से कुछ दिन उनके चरणों और सत्संग में हाजिर रहकर सत्संगी को अपनी हालत के अंदर तब्दीली होने और संस्कार जागने पर गौर करना चाहिए। 

ऐसी तब्दीली होने पर दुनियाँ में लोग सत्संग को तालीम की तरफ मुखातिब होंगे और यह तहरीक (प्रगति) आलमगीर (विश्वव्यापी) हो जावेगी।                              

हुजूर मेहताजी महाराज ने इस बचन के खत्म होने पर फरमाया- मैंने संभवत बसंत के दिन यह बात आप साहबान के सामने पेश की थी पिछले 79 सालों में जो कुछ मजमूई असर सत्संग में शामिल होने और गुरु महाराज के चरणो में बैठने और बानी- बचन सुनने का आप साहबान पर हुआ आप उसको अपने चेहरों पर, दिल पर और अपनी आदतो पर देखें कि क्या कोई प्रिय परिवर्तन संसार के लोगों के मुकाबले में आपके अंदर पैदा हुआ या नहीं। 

अगर परिवर्तन हुआ तो यह बहुत पवित्र चिन्ह है और इसके मानी यह है कि हमारे अंदर नए और उत्तम संस्कार पैदा होने लगे हैं। आप मेरी इस बात को इस बचन के भावार्थ से जो अभी आपके सामने पड़ा गया मुकाबला कीजिए। आप देखेंगे कि दोनों के अंदर किस कदर समानता है। 

क्रमशः                        

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -[भगवद् गीता के उपदेश]- 

कल से आगे:-

 समझदार लोग इसी तरह बुद्धियोग करके कर्म फल का त्याग करते हैं और जन्म मरण के चक्कर से छूट देकर सुखस्थान में निवास पाते हैं। जब तुम्हारी बुद्धि से भूल भ्रम की उलझन निकल जायगी तब तुम को बिल्कुल परवाह न रहेगी कि पिछले तुमने पीछे तुमने क्या कुछ सुना और आइंदा क्या कुछ सुनने में आवेगा।  

जब तुम्हारा मन, जो वेदों की बातों से भरम रहा है ,एकाग्र होकर समाधि स्थल स्थित हो जाएगा तब तुम्हें योग अवस्था प्राप्त होगी इस पर अर्जुन ने सवाल किया महाराज जिन लोगों को यह अवस्था प्राप्त हो जाती है जरा उनके लक्षण तो बयान फरमाइये उनकी रहन-सहन किस तरह की होती है? । 

कृष्ण महाराज- बोले सुनो मैं तुम्हें इन स्थिरबुद्धि मनुष्यों के लक्षण बतलाता हूँ। उनका दिल हर किस्म की इच्छाओं से पाक होता है और उनका आत्मा अपने आपे में मग्न रहता है।


  ।55 ।।क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज- 


प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:-(12)-


 जबकि परमार्थी कार्रवाई यानी अभ्यास अंतर और बाहर शुरू किया जावेगा ,तो अभ्यासी को अंतर में थोड़ी बहुत परचे जरूर मिलेंगे और कुछ रस और आनंद भी आवेगा, जिससे उसका यकीन इस बात का कि कुल मालिक राधास्वामी दयाल सर्व समर्थ हाजिर नाजिर है और सिवाय मन और सुरत के अंतर में ऊँचे देश की तरफ चढ़ाने के और कोई जुगत सच्चे उद्धार की नहीं है, दिन दिन बढता जावेगा ।

और इस तरह सच्चे मालिक की पहचान और सुरत शब्द मार्ग की बडाई साबित हो जावेगी और फिर उसी कदर उसकी प्रीति राधास्वामी दयाल के चरणों में और सुरत शब्द की कमाई में बढ़ती जावेगी और धीरे-धीरे एक दिन काम पूरा हो जावेगा।।                                                      

 बिना पहचान के प्रीति और प्रतीति का पूरा भरोसा और एतबार नहीं हो सकता और यह पहचान बाहर के सत्संग और अंतर के अभ्यास से आवेगी और दर्जे बदर्जे बढती जावेगी।

क्रमशः                                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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