Sunday, January 31, 2021

हुजूर डॉ. लाल साहब जी महाराज का जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो

*30-01-2021*  शाम  के  सतसंग  के  बाद  हुई  अनाउंसमेंट


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परम  गुरु  हुज़ूर  डॉ  एम. बी.  लाल  साहब  के  जन्मदिन  के  अवसर  पर  दयालबाग  शिक्षा  संस्थान  ३१  जनवरी, २०२१  को   संस्थापक  दिवस  अत्यंत  हर्षोल्लास  से  मना  रहा  है। इस  अवसर  पर  भक्ति  संगीत  एवं  एक  भव्य  प्रदर्शनी  का  आयोजन  किया  जा  रहा  है।  आप  सभी  इस  प्रदर्शनी  को  देखने  के  लिए  सादर  आमन्त्रित  हैं। प्रदर्शनी  का  समय  प्रात:  ९  बजे  से  सांय: ३  बजे  तक  रहेगा।  यह  प्रदर्शनी  साइंस  फेकल्टी  ग्राउंड  पर  लगी  हैं, इसके  साथ  लैब  और  लैंड  एग्रीकल्चर  फार्म  गौशाला, डेयरी, हर्बल  गार्डन, डेयरी  कॉम्प्लेक्स  में  हैं। ग्रीन  हाउस  एंड  फ्रूट  फ्लॉवर  एंड  नर्सरी,  शांति  नगर, प्लॉट  नंबर  ३५९  पर  और  फुटवियर  डिजाइन  एंड   कार्ट, टैनरी  कॉम्प्लेक्स  में, इसके साथ साथ  दयालबाग  शोरूम  के  अंदर  भी   दयालबाग  प्रॉडक्ट  की  एग्जिबिशन  भी  लगी  हुई  है। आप  सभी  लोग  इसमें  जाकर  मौके  का  फायदा  उठाएं।

  

*राधास्वामी*


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 परम गुरु परम पितु परम प्रिय हुजूर डा० एम०बी०लाल साहब जी का पावन जन्मदिन समस्त सतसंग जगत व प्राणी मात्र को बहुत बहुत मुबारक

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**कस जायँ सकी मेरे मन के बिकार।।टेक।।

यह मन चोर चुगल मदमाता। भोगन रस पी रहे मतवार।।

 झूठा कपटी लंपट पाजी। दुष्ट विरोधी नीच नकार ।।

अपने सुख के कारण पापी।पाप करत नहीं लावे आर।।

आदर मान का सदा चटोरा। रगन रगन में भरा अहंकार।।

जो कोई कसर जनावे इसकी। भड़क उठे और करे तकरार।।

 सतगुरु संत में दोष निकाले । अपने को समझे हुशियार ।।

 कड़ुवे वचन बिना नहीं बोले। ठानत रहे हर इक से रार।।

अस अस रोग भरे मन मेरे । क्या कहुँ मुख से नाहि शुमार।।

 अपनी सी मैं बहुत कराऊं। पर कुछ नाही बसावे पार।।

 झुरत रहूँ निसदिन अंतर में । भेजत रहूँ मन पर धिक्कार।।

 समय पड़े पर पेश न जावे।  बार-बार में बैठूँ हार ।।

 दया मेहर जो गुरु सुनाया। सहज सहज तोही लेह सुधार ।।

 इसी बचन के बल पर जीऊँ। यही बचन मेरा जीव अधार।।

 राधास्वामी सतगुरु ओर निहारू। दूर करें कब मन के विकार।।

                                                    

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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परम गुरु हुजूर डा० लाल साहबजी के संदेश]:-

अगर सहयोग हो ,संगठन हो, तो सफलता अवश्य होगी।

 तो सहयोग, संगठन और सफलता- ये तीन शब्द जो हैं- हमें याद रखने हैं।।

हुजूर राधास्वामी दयाल हम सबको, अधिक सुमति प्रदान करें, और हमारा आपस में पारस्परिक प्रेम बढ़े, हम सत्संग की सेवा अधिक लगन से निरंतर करते रहें, और हमारी प्रीति और प्रतीति हुजूर हुजूरी चरणों में दिन दिन बढ़े और पक्की हो।

हम हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करते हैं कि हमें सुमति दे जिससे जो सेवा हमको मिली है उसको हम दीन ता पूर्वक और पूरी लगन और बड़े उत्साह व उमंग के साथ पूरा करने की कोशिश करें ।।

स्वतंत्रतापूर्वक विचार कीजिए, विनम्र व विवेकशील व्यवहार कीजिए, और स्वेच्छा व तत्परता से आज्ञा का पालन कीजिए ।राधास्वामी!     🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏

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राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय परम गुरु परम प्रिय नाथ डॉ  मुकुंद बिहारी लाल साहब जी का पावन जन्मदिन समस्त सत्संग जगत व प्राणी मात्र को बहुत-बहुत मुबारक राधास्वामी!

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परम गुरु हुजूर डा० मकुन्द बिहारी लाल साहबजी-

(31जनवरी,1907)]

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17 फरवरी 1975 को हुजूर मेहताजी महाराज ने बिना अपने उत्तराधिकारी का संकेत दिए हुए अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया। परंतु 1 सप्ताह में ही दृढ और समर्पित सतसंगियो को यह आध्यात्मिक अनुभव होने लगे कि निजधार हुजूर डॉक्टर लाल साहब में सुस्थिर हो गई हैं और क्रियाशील है । धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती गई जिनका विश्वास हुजूर  डॉक्टर लाल साहब में हो गया था ।

राधास्वामी स्वामी सत्संग सभा ने अपने संविधान के अनुसरण में 15 मार्च 1976 को सत्संगियों की एक सभा आहूत की जिसमें 15000 से अधिक सतसंगी  उपस्थित हुए।

एक के बाद एक उन सभी व्यक्तियों के नाम पढ़े गए जिनके बारे में किसी ने भी सभा को लिखा था । कई लोगों ने जोरदार शब्दों में इस बात का खंडन किया कि वह संत सतगुरु है। देश के विभिन्न भागों से आये हुए 75 सत्संगियों ने जिनमें महिलाएं भी थी, अपने आध्यात्मिक अनुभवों को बताया जिनसे यह स्पष्ट हो गया कि हुजूर मेहताजी साहब के उत्तराधिकारी हुजूर डॉक्टर लाल साहब ही हैं।

जब सभा के प्रेसिडेंट ने हुजूर डॉक्टर लाल साहब का नाम पुकारा तो पूरा सभागार एक स्वर में राधास्वामी नाम से गूंज उठा और वह जय जयकार से राधास्वामी मत के साथ वे संसद्गुरु घोषित किए गये और सभा के प्रेसिडेंट साहब ने उनको माल्यार्पित किया।।

हुजूर डॉक्टर लाल साहब का जन्म 31 जनवरी 1907 को बिस्वां, जिला सीतापुर में हुआ था। उस समय के रीति रिवाज के अनुसार उनका जन्म उनके नाना के घर में हुआ था, जो बिस्वां कस्बे के कैंथी टोला मोहल्ले में रहते थे।

हुजूर के पिता श्री बांके बिहारी लाल जी अपने पैतृक मकान , सीतापुर में मोहल्ला तरिनपुर ,में रहते थे। श्री बांके बिहारी लाल जी एम. ए. एल .टी. उपाधि युक्त अध्यापक थे और उन्होंने फैजाबाद में और कुछ वर्षों तक इलाहाबाद में घोष मॉडर्न कॉलेज में पढ़ाया भी था।

 उनके स्थानांतरण पर उनका परिवार उनके साथ चला जाता था। अंत में परिवार लखनऊ में बस गया। शुरू में वह मोहल्ला वैरूमी खंदक में रहते थे जहां अब मॉडल हाऊसिज है।

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(3)-श्री बांके बिहारी जी के छोटे भाई,श्री कुंज बिहारी लाल, कानपुर के एक म्यूनिसिपल स्कूल में हेड मास्टर थे। ग्रैशस हुजूर की माता जी के भाई श्री गिरिजा प्रसाद श्रीवास्तव ने स्वंतत्रता आन्दोलन में भाग लिया और स्वतंत्रता सेनानी बने, दूसरे भाई मंशी काली प्रसाद जी मल्लपुर ऐस्टेट के मैनेजर थे।।

(4)-ग्रेशस हुजूर ने 1992 में स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट की परीक्षा विज्ञान, गणित ,हिंदी, इतिहास और भूगोल में गवर्नमेंट हाई स्कूल सीतापुर से पास की, इसके बाद 1924 में उन्होंने क्रिश्चियन इंटरमीडिएट कॉलेज, लखनऊ से जीव विज्ञान भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान में यू.पी. बोर्ड आफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एजुकेशन की इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की ।

1926 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. की उपाधि प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान रसायन विज्ञान में प्राप्त की। 1928 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्राणी विज्ञान में एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की ।

1929 में वे लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान  विभाग से डिमांस्ट्रेटर के रुप में संम्बद्ध हो गए और 27 मार्च 1931 को इस पद पर उनकी स्थाई नियुक्ति हो गई ।


अध्यापन कार्य के अतिरिक्त वह अपना शोध कार्य भी करते रहे। दिसंबर 1937 में विश्वविद्यालय विद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें डी. एस. सी. की उपाधि से अलंकृत किया गया।।

(5)-हुजूर 1 प्रखर शोधकर्ता थे। 1946 के शुरू में उन्हे उच्च शिक्षा हेतु सेंट्रल गवर्नमेंट स्कॉलरशिप प्रदान की गई और जीव विज्ञान विभाग में एडिनबरा  विश्वविद्यालय में मार्च 1946 में डी.एस.सी. की डिग्री के लिए शोध कार्य  हेतु प्रवेश लेकर मई ,1946 में उन्होंने कार्य शुरू किया।।

(6)- शिक्षा जगत में प्रगति के अपूर्व स्वरूप से समर्पित, हुजूर डा. लाल साहब अपने में एक प्रमुख शिक्षक , वैज्ञानिक और आध्यात्मिक अग्रणी का एक अतुल्य सामंजस्य  थे। जिस किसी को उनका शिक्षार्थी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उनको अत्यंत श्रद्धा और प्रेम से स्मरण करते हैं। वह एक अद्यतन शिक्षक थे और अपने विषय को पूर्ण समग्रता व स्पष्टता से पढ़ाते थे। वह अपने विचारों में प्रगतिशील थे।

ऐसे शिक्षार्थियों के लिए जो और अधिक ज्ञानार्जन करना चाहते थे, उनको प्रेरणा देने, उन्हें प्रोत्साहित करने और त उनसे विचार विनिमय के लिए उनके पास सदैव समय था।  जिनको सौभाग्य से उनसे पारस्परिक संपर्क में रहने का अवसर मिला l 

उन्होंने हुजूर से अनुशासन और समय निष्ठा काम का अनुभव किया। उनकी विनम्रता, दया और प्रेम के अद्भुत संगम से अद्भुत किरणें उनके विद्यार्थियों और अनुयायियों अमिट छाप डाल देती थी।वह अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत सादे और मितव्ययी थे, परंतु किसी अच्छे निमित्त अत्यंत उदार थे।

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डा. एम. बी. लाल साहब के दो भाई थे, एक बड़े और एक छोटे। बड़े भाई श्री मुकुट बिहारी लाल सिंचाई विभाग में अकाउंटेंट थे। उन्नाव और तदुपरांत इलाहाnबाद में सेवा करने के बाद वह मिर्जापुर से सेवानिवृत्त हुए। उनके चार पुत्र और एक पुत्री थी।

छोटे भाई डा. बिजन बिहारी   जी लखनऊ विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में डायरेक्टरेट की डिग्री प्राप्त की और कुछ समय तक सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा में सेवा करने के बाद उन्होंने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग में सेवा की।वह कालांतर में विभाग में मुख्य पुरातत्व विभाग में सेवा की। वह कालांतर में उस विभाग में मुख्य पुरात्तव रसायनिक के पद तक प्रोन्नत हुए औ र उसी पद से सेवानिवृत्त हुए। उनके 2 पुत्र और चार पुत्रियाँ थीl 

 डा० बिजन बिहारी लाल जी विद्यार्थी ही थे जब उनके पिता का देहांत हो गया। हुजूर ने ही उनके उच्च शिक्षा की देखभाल की और उनकी हर प्रकार से सहायता की।। डॉक्टर एम. बी.लाल साहब का विवाह 9 जुलाई 1932 को (स्वर्गीय) शंभू नाथ जी की सुपुत्री प्रेमी बहन सूरत कुमारी जी से संपन्न हुई था।

प्रेमी भाई शंभू नाथ जी की मृत्यु कम आयु में हो गई। संयुक्त परिवार था जिसके मुख्य सबसे बड़े भाई रायब हादुर भोला नाथ जी थे जिन्होंने फिर परिवार की देखभाल की।

रायबहादुर गोरखनाथ जी हुजूर डॉक्टर प्रेमसरन सत्संगी साहब के नाना थे। वह बनारस राज्य महालेखाकार के पद तक पहुंच गये थे। वह सतसंग से सन्निहित थे और** **महालेखाकार के पद तक पहुंच गए थे। वैसे सतसंग में सन्निहित थे और हुजूर साहबजी महाराज के निकट थे रायबहादुर भोला नाथ जी राधास्वामी सत्संग सभा के ज्ञापन पत्र के प्रारंभिक हस्ताक्षर कर्ताओं में से थे जब 1921 में सभा पंजीकरण हुआ था तब हुजूर लाल साहब जी की शादी तय हो रही थी- उनकी माता जी से (उनके पिता का देहांत पहले ही हो चुका था) पूछा गया कि क्या उनका विवाह ऐसे परिवार में करना उचित होगा जिसमें भावी वधू के भाई,प्रेमी भाई सोम प्रकाश जी, का विवाह कायस्त जाति के बाहर किया गया हो।

 प्रेमी भाई सोम प्रकाश जी का विवाह परम गुरु हजूर साहिबजी महाराज की सुपुत्री प्रेमिन बहन प्रेम सखी जी की और उनका संकेत था। जब यह मामला परिवार के प्रमुख हुजूर के चाचा जी के सामने पेश किया गया तो उन्होंने कहा कि "कर लो"  गुरु की कोई जात नहीं होती"। 

प्रेमी बहन सुरत कुमारी जी की माता जी रायबरेली रहती थी और वही उनके मेरे भाई बाबू अमृतराय जी एडवोकेट के घर से विवाह हुआ।

रायबहादुर भोलानाथ जी ने कन्यादान किया। घर के कामकाज में निपुण, प्रेमिन बहिन सुरत कुमारी जी एक प्रतिभावान महिला थी जिनकी मुख्य अभिरुचि घर को चलाने में थी। वह एक समर्पित सत्संगी थी।

उनके कोई संतान नहीं हुई ।उनका देहांत 23 मई 1969 को लखनऊ में हो गया था । उनके चार भाई थे एक प्रेमी भाई सूरज प्रकाश जो कम आयु में नहीं रहे। दूसरे भाई प्रेमी भाई सोमप्रकाश जी दयालबाग में पढ़े और आर. ई. आई. कॉलेज दयालबाग में शिक्षक के रूप में सेवा की। वह लीग आफ सर्विस तथा सभा के सदस्य थे।

उनका विवाह हुजूर साहबजी महाराज की सबसे बड़ी पुत्री प्रेम सखी से हुआ ।उनके छोटे भाई प्रेमी भाई भक्त प्रसाद जी बनारस स्टेट में सेवा करते थे और उनके सबसे छोटे भाई प्रेम भाई आनंद प्रकाश जी की शिक्षा विभाग में हुई। बाद में वह भी बी.एन.एस.डी.  कॉलेज कानपुर में अध्यापक हो गये और तदुपरांत वह के. पी. ट्रेनिंग कालेज इलाहाबाद में शिक्षक नियुक्त हुए जहां से प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत्त हुए ।।

विवाह के बाद से डॉक्टर लाल साहब नियमित रूप से विशेष कर भंडारों के अवसर पर दयालबाग आने लगे थे । पहली बार 1934 में जब उन्हे साहबजी महाराज के समक्ष  प्रस्तुत किया गया तो सासबजी महाराज ने टीका लगाया और चार लड्डू का प्रसाद दिया।

 कई साल बाद जब हुजूर डा. लाल साहब से पूछा गया कि क्या उन्हे इस अवसर का स्मरण है तो उन्होने कहा कि "क्या मैं उसको भूल सकता हूंँ।" लखनऊ में डॉक्टर लाल साहब सत्संग कार्यक्रमों और दयालबाग से सम्बन्धित मामलों को राज्य सरकार से अनुसरण करने में सक्रिय रूप से सन्निहित थे।

38 वर्ष की आयु में 1945 को उपदेश लिया यह कहा जाता है कि तब हुजूर मेहताजी महाराज ने कहा था कि "तुम बीमा करा कर सुरक्षा चाहते हो "इस कथन का महत्व तब स्पष्ट हुआ डॉक्टर लाल साहब जिस ट्रेन से एडिनबरा से लंदन वापिस आ रहे थे वह गाडी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी ।इस घटना के उल्लेख पहले किया जा चुका है ।

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने पर अंत में दयालबाग रहने आ गए। उनकी संस्तुति पर 1971 में दयालबाग शिक्षण संस्था संगठित हुआ और वह उसके अवैतनिक निदेशक हुए।।  

                                             

बसंत 1973 की बात है।ग्रैशस हुजूर अपने निवास 4 / 99 में गहरी नींद से सो रहे थे। लगभग 3:00 बजे रात को चोर आए और उन्होंने हुजूर के मकान के अगले मकान 4 / 100-101 का:-***ताला तोड़ने की कोशिश की आवाज सुनकर डॉक्टर लाल साहब ने  बाहर आकर बत्ती जला दी और आवाज दी कि कौन है।

चोर घूमकर छर्रा वाली देसी पिस्तौल चलाते हुए भाग गये। शोर सुनकर आसपास के घरों से लोग निकल आए उनके मकान से अगले मकान की एक महिला ने हुजूर की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन पर चोरों ने गोली चलाई है और घायल हो गए और अपने हाथ से अपना सिर पकड़े हुए थे और सिर से खून बह रहा था। परंतु हुजूर ने कहा कि पहले चोरों का पीछा करो जो गली में भाग गए थे और फिर प्रोफेसर वी.जी. शास्त्री प्रिंसिपल इंजीनियर कॉलेज और प्रेमी भाई भटनागर साहब जगाये जायें।  उनके आने पर चोट की प्राथमिक चिकित्सा की गई।

उस समय लगभग 4 बज चुके थे और सभी लोग खेतों की सेवा के लिए डेरी गये जहां उन दिनों काम चल रहा था परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज डेरी में कुछ सतसंगियो के साथ एक कमरे में बैठे थे और नाश्ता कर रहे थे ।डा. लाल साहब भी अंदर  जाकर एक कोने में बैठ गये।डा. लाल साहब की ओर मुखातिब होकर हुजूर मेहताजी महाराज ने कहा कि "तुमने बहुत बहादुरी का काम किया है लेकिन ऐसी परिस्थिति में तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं था।"  फिर हुजूर मेहताजी साहब ने  डॉक्टर लाल साहब को मिठाइयों का डिब्बा दिया और कहा दिल्ली जाकर उसे बसंत के उपहार स्वरूप राष्ट्रपति श्री वी .वी. गिरी को दें।

राष्ट्रपति दयालबाग और हुजूर मेहताजी महाराज से भलीभांति परिचित थे।डॉक्टर लाल साहब फौरन ही दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गए और वहां प्रेमी भाई टी. सत्यनारायण जी के साथ वे राष्ट्रपति भवन गये और राष्ट्रपति गिरी को मिठाई देकर वापस आए।

बसंत का दिन था हुजूर मेहताजी महाराज ने सभा के सदस्यों को टीका लगाया। जब डॉक्टर लाल साहब की बारी आई तो उन्हें भी सब की तरह टीका लगा। परंतु मेहताजी महाराज ने डा. लाल साहब को फिर अपने सामने बुलाया।।हुजूर मेहताजी महाराज ने ढेर सा गुलाल लिया और डा. लाल साहब के मस्तक पर गुलाल ऊपर की ओर लगाया जिससे उनके सिर के घाव पर भी गुलाल लग गया।

बसंत के समारोह के बाद ही डा. लाल साहब घाव की पट्टी कराने डाक्टर के पास गये। डाक्टर ने घाव से छर्रे निकाल कर पट्टी बांध दी। कुछ दिनों में घाव अच्छा हो गया।

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ग्रेशस हुजूर ने एक बार यह फरमाया था कि मुरार में भंडारा इसलिए मनाया था कि हम सबको बता दें कि हम सरकार साहब के अनुयाई हैं ।यह तो हर कोई जानता है कि हम स्वामीजी महाराज, हुजूर महाराज व महाराज साहब के अनुयाई हैं, यह भी जानते हैं कि हम साहबजी महाराज और मेहताजी महाराज के अनुयाई हैं ।हम उनको बताना चाहते थे कि हम सरकार साहब के भी अनुयाई हैं ।।

 अधिक नहीं तो कम से कम दो अवसरों पर हुजूर ने मौज से यह फरमाया था कि वह पवित्र कुलों की पीढ़ियों की क्रमिक गणना निम्नवत करते हैं:-**


*[परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज कुल मालिक (पितामह)]- [परम गुरु हुजूर महाराज (या परम गुरु महाराज साहब) ( पिता)]-[परम गुरु महाराज साहब (या परम गुरु सरकार साहब ) (पुत्र)]-[ परम गुरु  सरकार साहब (या परम गुरु साहब जी महाराज) ( पौत्र)]-[परम गुरु  साहब जी महाराज (या परम गुरु  मेहता जी महाराज) ( प्रपौत्र)]- एक बार जब खेतों में हुजूर विराजमान थे तो उन्होंने सत्संगियों के  मिलने और इंटरव्यू की प्रार्थना करने के कार्यक्रम का जिक्र करते हुए फरमाया था कि परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज ने इस सिलसिले में कहा था कि उन्होंने सत्संग की बाढ़ का द्वार खोल दिया है । खेतों पर हुजूर का खुला दरबार था जहाँ हर कोई छोटा व बड़ा सभी अपनी अपनी आध्यात्मिक व सांसारिक समस्याओं को उनके सामने रखकर उनका सीधा मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते थे। बच्चे भी अपने परीक्षाफल को दिखा कर उनका आशीर्वाद लेने को उत्सुक रहते थे। इस शुभ अवसर के लिए देश के हर कोने से आये हुए लोगों की लंबी कतारें खेतों पर एक सामान्य दृश्य थी।

🙏🏻राधास्वामी!🙏🏻🌹🌹🌹🌹**



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परम गुरु हुजूर डा० लाल साहबजी के संदेश]:-

अगर सहयोग हो ,संगठन हो, तो सफलता अवश्य होगी। तो सहयोग, संगठन और सफलता- ये तीन शब्द जो हैं- हमें याद रखने हैं।। हुजूर राधास्वामी दयाल हम सबको, अधिक सुमति प्रदान करें, और हमारा आपस में पारस्परिक प्रेम बढ़े, हम सत्संग की सेवा अधिक लगन से निरंतर करते रहें, और हमारी प्रीति और प्रतीति हुजूर हुजूरी चरणों में दिन दिन बढ़े और पक्की हो। हम हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करते हैं कि हमें सुमति दे जिससे जो सेवा हमको मिली है उसको हम दीन ता पूर्वक और पूरी लगन और बड़े उत्साह व उमंग के साथ पूरा करने की कोशिश करें ।। स्वतंत्रतापूर्वक विचार कीजिए, विनम्र व विवेकशील व्यवहार कीजिए, और स्वेच्छा व तत्परता से आज्ञा का पालन कीजिए ।राधास्वामी!                                

राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय परम गुरु परम प्रिय नाथ डॉ  मुकुंद बिहारी लाल साहब जी का पावन जन्मदिन समस्त सत्संग जगत व प्राणी मात्र को बहुत-बहुत मुबारक राधास्वामी!🙏🏻🙏🏻

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परम गुरु परम पितु परम प्रिय नाथ हुजूर डा०एम०बी०लाल साहबजी का पावन जन्मदिन समस्त सतसंग जगत् व प्राणी मात्र को बहुत बहुत मुबारक।! 

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