Sunday, January 17, 2021

सतसंग शाम DB 17/01

 **राधास्वामी!! 17-01;2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

  (1) आओ री सखी चलो गुरु के पासा। भक्ति दान आज लीजिये।।-(समरथ सतगुरु राधास्वामी पाये। सीस चरन में दीजिये।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.84,85)                                                       

   (2) सजीले सज तुम अकह अपारी।।टेक।। सत चित आनँद रूप तुम्हारि तेजपुंज हो भारी।।-(फिर कैसे लख पावे कोई लीला जस तुम धारी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-127-पृ.सं.186।।)                                                       

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


*राधास्वामी!!  / 17-01- 2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- 121 का शेष भाग:-                                                    

संत न विद्या पढ़ते कोई ।उनके अनुभव समुँद समानी।३०।                                  

उनका प्यार लगा प्यारे से। विद्या क्योंकर याद रहानी।३१।                                             

 तन मन की सुध बिसरानी। विद्या बुद्धि फिर क्यों ठहरानी।३२।                                     

  सब परकार प्रेम की महिमा। विद्या अविद्या दोनों हानी।३३।                                          

    संत लौकिक विद्याओ की परवाह नहीं करते क्योंकि उनकी अनुभव शक्ति जगी होती है और प्रातिभ ज्ञान का स्रोत खुला होता है। उनकी सुरत सच्चे मालिक के चरणो में लवलीन रहती है ।भला बताओ, त्रिगुणात्मक विद्या का उन्हें कैसे स्मरण रह सकता है? और जबकि उनको अपने तन और मन की सुधि नहीं रहती तो विद्या और बुद्धि की उन्हें कैसे परवाह हो सकती है ?

 यदि सच्ची बात सुनना चाहते हो तो सुन लो, हर हालत में महिमा प्रेम ही की है।  हर मनुष्य क्रियात्मक जीवन ही व्यतीत करके अपना मनुष्य जन्म सफल कर सकता है और बिना प्रेम के क्रियात्मक जीवन असंभव है। लौकिक विद्या में उलझना या अलौकिक विद्या से शून्य रहना दोनों बातें मनुष्य के लिए हानिकारक है।

*जिनका प्रेम शब्द में नाहीं। उनको विद्या ख्वार करानी।३४)                                     

जन्म मरण से छुटें न भाई। चौरासी में बहें बहानी।३५।                                               

  विद्या भूल चढो अब घट में। सुरत शब्द में लाओ तानी।३६।                                     

  विद्या भी बुद्धि विषय पिछानो। यह आसक्ती भली न जानी।३७।                                          

 जिनका अंतरी शब्द में प्रेम नहीं है और बहिर्मुखी विद्या में पच रहे हैं उन्हें एक दिन अवश्य अपमान सहना पड़ेगा। वह   और मरण के चक्कर में बराबर फँसे रहेंगे। यह विद्या उन्हें चौरासी के चक्कर से नहीं छुड़ा सकती। यदि हमारी मानो तो विद्या की महिमा चित्त से दूर करो और अंतर में सुरत जोड़ने की लिए यतन करो। विद्या, जिस पर तुम मोहित हो रहे हो, वास्तव में बुद्धि का रस ही तो है। और जैसे संसार के और रस जीव के लिए हानिकारक है, इस रस की आसक्ति अर्थात् प्रीति भी हानिकारक है।                                                

   कथनी बदनी काम न आवे। भक्ति बिना जम के सहे डानी।३८।                                   

 गुरुभक्ति बिन सब जग चूका। अनेक सियानप में भरमानी।३९।                               

और जतन मिथ्या सब जानो। यही जतन मैं कहा प्रमानी।४०।                                    

शब्दकमाई करो प्रेम से। राधास्वामी कहत बखानी।४१।                                         

  मनुष्य का डींग हाँकना मृत्यु के समय व्यर्थ हो जाता है। और सिवाय सच्चे मालिक की भक्ति के कोई व्यक्ति यमराज के दंड से उसको नहीं बचा सकता।  संसार गुरु-भक्ति के बिना असली लक्ष्य से चूक रहा है। लोग सैकड़ों प्रकार की चतुराईयों में लगे हैं पर ज्ञात रहे कि उनके यह सब प्रयत्न निष्फल सिद्ध होंगे।

 मैं जोर के साथ कहता हूँ कि केवल एक ही यत्न लाभदायक है। और वह यत्न यह है कि बात प्रेम से अंतरी शब्द की कमाई करो। राधास्वामी तुम्हारे हित की बात खोलकर सुनाते हैं।           🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻  

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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