Saturday, January 30, 2021

रामायण शब्दार्थ

 l *श्रीरामचरितमानस* ☀️l 


                   

  *सप्तम सोपान*/ उतर  कांड 

                         *दोहा सं० ५५*

                 *(चौपाई सं० १ से ५ तक)*


*यह   प्रभु   चरित    पवित्र    सुहावा ।*

*कहहु   कृपाल   काग    कहँ    पावा ।।१।।*

*तुम्ह   केहि   भाँति   सुना    मदनारी ।*

*कहहु   मोहि   अति   कौतुक   भारी ।।२।।*

*गरुड़     महाग्यानी      गुन      रासी ।*

*हरि   सेवक  अति   निकट   निवासी ।।३।।*

*तेहिं   केहि   हेतु   काग   सन   जाई ।*

*सुनी   कथा   मुनि    निकर    बिहाई ।।४।।*

*कहहु    कवन    बिधि   भा   संबादा ।*

*दोउ      हरिभगत     काग    उरगादा ।।५।।*

अर्थ –हे कृपालु ! बताइये, उस कौए ने प्रभु का यह पवित्र और सुन्दर चरित्र कहाँ पाया ? और हे कामदेव के शत्रु ! यह भी बताइये, आपने इसे किस प्रकार सुना ? मुझे बड़ा भारी कौतूहल (आश्चर्य) हो रहा है । गरुड़जी तो महान्‌ ज्ञानी, सद्गुणों की राशि, श्रीहरि के सेवक और उनके अत्यन्त निकट रहनेवाले (उनके वाहन ही) हैं । (ऐसे महाज्ञानी) गरुड़जी ने मुनियों के समूह को छोड़कर, कौए से जाकर हरिकथा किस कारण सुनी ? कहिये, काकभुशुण्डि और गरुड़ इन दोनों हरिभक्तों की बातचीत किस प्रकार हुई ? (भाव यह है कि दोनों हरिभक्त हैं, उनका संवाद अवश्य सुनने योग्य होगा)

👉 *'पवित्र सुहावा'* (शोभायमान) कहकर दर्शाया है कि ऐसा चरित्र किसी प्रकार भी चाण्डाल, अपवित्र, अशोभित पक्षी कौवे के योग्य नहीं हो सकता अर्थात् काक शरीर में रामचरितमानस का मिलना असम्भव है ।

👉 _*काग कहँ पावा'*_ का भाव यह है कि जो मुनियों को भी दुर्लभ है, तब भला काक कैसे पा सकता है ?

👉 _*'केहि भाँति'*_ का भाव यह है कि मैं तो सदा साथ रहती हूंँ, उस समय मैं कहांँ थी ?

👉 _*'गरुड़ महाज्ञानी गुनरासी ।....'*_  श्रीपार्वतीजी ने पूर्व में काकभुशुण्डिजी के गुण बताये थे कि वे रामपरायण, ज्ञानरत, गुणागार और मतिधीर हैं और यहांँ गरुड़जी के विषय में कहती हैं कि ये महाज्ञानी, गुणराशि, हरी सेवक और हरि के अत्यन्त निकट निवासी हैं । काकभुशुण्डिजी के चार विशेषताएंँ बताकर गरुड़जी की भी चार विशेषताएं बतायी हैं । इससे दर्शाया है कि गरुड़जी भुशुण्डिजी से किसी बात में कम नहीं हैं । जैसे कि – भुशुण्डिजी ज्ञानरत हैं तो गरुड़जी महाज्ञानी हैंं, वे गुणागार हैं तो ये भी गुणराशि हैं, वे रामपरायण हैं तो ये भी हरिसेवक हैं और वे मतिधीर हैं तो ये हरि के अति निकट निवासी हैं । अतः दोनों ही मोह आदि विकारों से रहित हैं । मोह नहीं हो सकता और हरि से अलग हो नहीं सकते तब इतनी दूर कैसे जायेंगे और कथा क्यों जाकर सुनेंगे ? तब गरुड़जी किस कारण काक से कथा सुनने गये ?

👉 इस प्रकार श्रीपार्वतीजी ने महादेवजी से छः प्रश्न किये हैं –

(१) भक्ति की प्राप्ति। (२) काक शरीर की प्राप्ति। (३) रामचरित की प्राप्ति (४) भुशुण्डिजी  से शिवजी का कथा सुनना । (५) भुसुण्डिजी से गरुड़ का जाकर कथा सुनना । (६)भुशुण्डिजी-गरुड़जी संवाद

👉👉 श्रीपार्वतीजी के प्रश्न यहाँ समाप्त हुए ।ll  

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