Friday, January 29, 2021

राधास्वामी सतसंग शाम DB 29/01

 **राधास्वामी!! 29-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                       

(1) कौन विधि मनुआँ रोका जाय। जतन कोइ देव बताय।।-(सरन दे राधास्वामी गुरु दातार। मेहर से दें निज घर पहुँचाय।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-8-पृ.सं.95,96)                                                           

(2) जब लग जिव जग रस चहे सहे दुक्ख बहु ताप। नीच ऊँच जोनी फिरे काल करम संताप।।-(यह जग हम बहु भोगिया दुःख सुख सहे अनेक। अंत दया जब गुरु भई मेटे भरम भुलेक।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-133 -दोहे-पृ.सं.198,199 )                                     

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा कल से आगे।।       

                      

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 29-01-2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे :-(135)-


अब बृहदारण्यक उपनिषद के दूसरे अध्याय का चौथा ब्राह्मण खोलकर देखिये। लिखा है- याज्ञवल्क्य ( जब वानप्रस्थ आश्रम में जाने लगा तो उस) ने कहा-" मैत्रेयि! नि:संदेह मैं इस स्थान (गृहाश्रम) से ऊपर जाना चाहता हूँ।

अहो!  तेरा अब इस कात्यायनी( मेरी दूसरी स्त्री) के साथ फैसला कर जाऊँ (१)। मैत्रेयी ने कहा- भगवन्! यदि यह सारी पृथ्वी धन से भरी हुई मेरी (मलकियत) हो तो क्या मैं इससे अमर हो जाऊँगी?  याज्ञवल्क्य ने कहा -नहीं (२)।  मैत्रेयी ने कहा- जिससे मैं अमर नहीं हो सकूँगी उसको लेकर मैं क्या करूँगी?

  जो (बात) भगवान् (अमर होने की बाबत) जानते हैं वही मुझे बतलाइये(३) "।  उसके उत्तर में याज्ञवल्क्य जी ने विस्तार से उपदेश किया जिसका सारांश यह है कि मनुष्य स्त्री, पुत्र, धन आदि से प्यार इसलिए नहीं करता कि उसे स्त्री, पुत्र या धन में प्यार है बल्कि इसलिए कि यें चीजें उसकी आत्मा को पसंद और प्यारी है।

 मनुष्य को अपनी आत्मा अर्थात अपना आप ही सबसे अधिक प्यारा है। और जो कुछ अपने आपको अच्छा लगे उसी को मनुष्य प्यार करता है।( आपने सुना होगा कि लैला काले रंग की थी। लोगों ने मजनूँ से कहा- तुम किस कुरुपा स्त्री के पीछे पागल हो गये हो?

  जरा होश में आकर उसकी शक्ल तो देखो। मजनूँ ने जवाब में कहा-" भले लोगों! मेरी आंखों से लैला को देखो। अपनी आँखों से न देखो"। अभिप्राय यह है कि लैला करुपा हो और संसार भर को कुरुपा दीखे पर जोकि मजनूँ के मन को उसका रूप भाता था इसलिए वह उससे प्रेम करता था । यही तात्पर्य इस उपदेश का है)।  अंत में याज्ञवल्क्य जी ने नतीजा निकाला कि कोई भी वस्तु खुद उसकी कामना के लिए प्यारी नहीं होती बल्कि "आत्मा की कामना के लिए " हर एक वस्तु प्यारी होती है। इसलिए निःसंदेह मनुष्य को आत्मा ही साक्षात करने योग्य है ।परंतु "यह समझ" मनुष्य को कब आती है इसके लिए फरमाया- "अरे मैत्रियि! आत्मा के दर्शन से, श्रवण से, मनन से और जानने से यह सब कुछ जाना जाता है"(५) ( देखो पृष्ठ १२९-१३३, अनुवाद पंडित राजाराम साहब का )।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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