Saturday, November 6, 2010

सेक्स, बाबा, पीएम, वेश्या, अफसर, मौत, मानव

नींद की दुनिया में, सपनों की आवाजाही में क्रम नहीं होता. कभी कुछ, कभी कुछ दिखता चलता रहता है. सपने वाले जगे-अधजगे माहौल में बहुत कुछ चलता रहता है पर नींद खुलने के कुछ घंटों बाद बहुत गहरे तक याद नहीं रहता कि सपने में हुआ क्या क्या था, चला क्या क्या था. बिना सपने की अवस्था में हम फिर मशगूल हो जाते हैं अपनी-अपनी खुली आंखों वाली दुनिया में. पर कई बार खुली आंखों वाले सीन को ठेल कर सपनों में ले जाने का मन करता है और उस सपने में अपने मन मुताबिक खुद की भूमिका को जीने का मन करता है. कई बार सपनों को नींद से निकाल कर रीयल दुनिया में ले आने का दिल होता है. कई बार सपनों की दुनिया को रीयल और रीयल दुनिया को सपने की दुनिया में तब्दील करने का मन करता है. अक्सर खुली आंखों वाली दुनिया के दृश्य गड़बड़ व मिक्सचर से लगते हैं तो कई बार सपनों के गड़बड़ व मिक्सचर वाले न समझ में आने वाले दृश्य अनोखे संदेश देकर आंखें खोलते प्रतीत होते हैं.


सो, जाने क्यों खुली आंखों की दुनिया की कई घटनाओं को सपनों में ले जाकर और फिर उन्हें पटक पटक कर एक दूसरे में मिक्स कर कुछ नया निकालने का मन करता है, मिस्टर बीन की बेवकूफाना लेकिन मासूम हरकतों की तरह, टॉम एंड जेरी के सुपर फैंटेसी लेकिन गजब मानवीय दृश्यों की तरह जिसे देखकर ढेर सारे लोग तो हंसें लेकिन कुछ लोग हंसी के साथ बहुत अंदर तक भेद जाने वाले अर्थ को महसूस करें जो पूरी तरह समझ में आवे भी और न  भी आवे. आइए आज कुछ ऐसी ही बेतरतीब बातें करते हैं, बेवकूफाना प्रयोग करते हैं.
जैसे सपने में कोई सीन घटित हो, फिर नींद उचटे, करवट बदले और पुराना सीन कट हो रहा हो, नई कहानी शुरू हो रही हो... हम खुद सारी कहानियों में किसी न किसी रूप में इनवाल्व होते हुए भी एक संवेदनशील दर्शक के रूप में सिर्फ देखते रहने को मजबूर हों,  भावुक होने के लिए बाध्य हों, कुछ न कर पाने के क्षोभ से भरे हों... कभी व्यथित, कभी क्रोधित, कभी सम्मोहित हो रहे हों.... कभी सफाई दे रहे हों, कभी आदेश.... कभी गुहार कर रहे हों.... कभी सब कुछ खुद अकेले दम पर हल कर ले जा रहे हों.... कभी आसमान में बैठकर धरती कंट्रोल कर रहे हों और कभी धरती के लोगों के चंगुल में फंसकर आसमान की ओर निहार रहे हों... और सांसों के उतार-चढ़ाव के दबाव में कभी कभी नींद उचट जा रही हो और नींद खुलने के बाद यह एहसास होते ही कि डरने जैसी कोई बात नहीं, सब सपने में हो रहा है, फिर से सपने को जीने, सपने में डूब जाने की जिद ठानते हुए अचानक सो जाने को गोता लगा देने को तत्पर हो जाते हों और गजब देखिए कि ये सपना जहां से टूटा था वहीं से कड़ियां जुड़ गईं और सपने में मानव जीवन के खेल या फिर जीवन व्यापार के खेल का सपना फिर शुरू हो गया हो. सपने सरीखे कुछ ओरीजनल दृश्य. सब सच-सच. सब गड़बड़-सड़बड़. सब मिक्सचर माफिक....
रामदेव बोल पड़े पत्रकारों से कि..... : विदेशियों के हाथ में भारतीय मीडिया का जाना खतरनाक है. भारत में लोकतंत्र के तीन स्तंभ लड़खड़ा रहे हैं, इसलिए मीडिया की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है. भारतीय अखबार भारतीय क्रांति के प्रतीक रहे हैं पर कुछ समय से भारतीय मीडिया में विदेशी निवेश बढ़ा है जो ठीक नहीं है.  कई अखबार - चैनलो में विदेशी निवेशक काफी ज्यादा हो चुका है. विदेशी निवेशक अपनी विचार धारा और संस्कृति थोपेंगे, इसलिए यह अच्छा संकेत नहीं है. बाबा रामदेव पेड न्यूज से भी दुखी हैं और भारतीय मीडिया से पेड न्यूज से बचने का आग्रह किया.
रसिया पीएम की पार्टी में वेश्याएं.... ब्रेकिंग न्यूज... : प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी कहते हैं कि हे मेरे (इटली) देश की जनता, अखबार मत पढिए. ये अखबार धोखा देते हैं, झूठी खबरें पढ़ाते हैं. इटली के पीएम ने ऐसा इसलिए बोला क्योंकि वे एक नए सेक्स स्कैंडल से दुखी हैं. इटली के अखबारों में यह स्कैंडल खूब छप रहा है और जनता चाव से पढ़ रही है. इटली के विपक्षी नेताओं का बर्लुस्कोनी पर आरोप है कि उन्होंने मई में पुलिस द्वारा कथित चोरी के आरोप में पकड़ी गई एक लड़की रूबी के मामले में पुलिस पर लड़की छोड़ने के लिए दबाव बनाया, कानूनी मामले में दखलंदाजी की. इस प्रकरण पर सफाई देते देते इटली के पीएम बोल पड़े कि गे होने से तो अच्छा है लड़कियों का दीवाना होना. जब मैं किसी सुंदर लडकी के साथ होता हूं तो उसकी ओर देखता हूं. मुझे लगता है कि सुंदर लड़कियों का दीवाना होना समलैंगिक होने से बेहतर है. सुंदर लडकियों से प्यार जायज है. मेरे खिलाफ नया सेक्स स्कैंडल बकवास है. अखबार पढ़िए ही मत क्योंकि ये धोखा देते हैं. अपने महिला प्रेम के लिए दुनिया भर में मशहूर इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का ये सब बयान सुर्खियों में है. मोरक्को की 17 वर्षीय मॉडल रूबी के साथ अपनी मुहब्बत के किस्से सामने आने के बाद उठ रही इस्तीफे की मांग को दरकिनार करते हुए उन्होंने यह बात कही. पर इस बयान को गे एक्टिविस्टों ने दिल पर ले लिया और विरोध शुरू कर दिया. गे एक्टिविस्टों ने बर्लुस्कोनी से माफी मांगने या इस्तीफा देने की मांग की है.
बर्लुस्कोनी इस विवाद में आए कैसे, इसके पीछे की कहानी ये है कि इटली के दो अखबारों में एक उद्योगपति से पुलिसिया पूछताछ के कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं. भ्रष्टाचार के आरोपी इस उद्योगपति ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित पार्टियों के लिए वह वेश्याएं लाता था.  कोरिएरे देला सेरा और ला स्टैम्पा ने बुधवार को प्रकाशित अपनी खबरों में कहा था कि उद्योगपति गियानकालरे तारान्तिनी, बर्लुस्कोनी के रोम  और सारदिनिया स्थित आवासों पर सितंबर 2008 से जनवरी 2009 के बीच आयोजित 18 पार्टियों में 30 वेश्याएं लेकर आया था. लेकिन इन आरोपों से इटली के पीएम की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है. वे तो खुद को और पाक-साफ और आम आदमी की तरह पेश कर रहे हैं. इटली के पीएम की उम्र 72 साल है और वे अरबपति हैं. अपनी पार्टी के युवाओं के एक समूह से बुधवार को राजनीतिक मुलाकात के दौरान 72 वर्षीय अरबपति बर्लुस्कोनी ने कहा कि उनकी लोकप्रियता की रेटिंग 68.4 फीसदी है. बर्लुस्कोनी ने खुद को तीसरे व्यक्ति की तरह पेश करते हुए कहा मेरी लोकप्रियता आर्थिक संकट के दौर में, उन पर हो रहे हमलों के बावजूद बरकरार है. बर्लुस्कोनी ने हंसते हुए कहा- मुझे लगता है कि इतालवी नागरिक खुद को मुझमें देखते हैं. मैं उनमें से एक हूं, मैं गरीब हूं, मैं भी उन्हीं बातों में दिलचस्पी लेता हूं जिसमें वह लेते हैं, मुझे फुटबॉल खेलना पसंद है, मैं मुस्कुराता हूं, मैं दूसरों को खास कर खूबसूरत महिलाओं को प्यार करता हूं.
बाबा और सेक्स : सेक्स के मसले पर दो बाबाओं में बहस होती है. ये दो बाबा हैं बाबा रामदेव और स्वामी सत्य वेदांत. एक योग गुरु हैं तो दूसरे ओशो के शिष्य व दार्शनिक. एक दिन एक प्रोग्राम में दोनों का आमना सामना हो गया. 'सेक्स ऐंड स्पिरिचुअलिटी' विषय पर चर्चा हुई. दोनों के तर्क ऐसे ऐसे कि दातों तले उंगलियां दबा लें और तय न कर सकें कि सच क्या है, झूठ क्या है. रामदेव कहते हैं- फ्री सेक्स जैसा कुछ भी नहीं है. कुछ भी पूर्ण नहीं है, हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं, सेक्स से सृजन होता है लेकिन आपको ज्ञान की जरूरत पड़ती है और निश्चित दायरे में रहकर ईमानदार बनना पड़ेगा. अगर सेक्स शादीशुदा संबंधों से बाहर किया जाए तो तमाम बुराइयों, बलात्कारों और बीमारियों की वजह बन जाएगा. किशोर लड़कियां गर्भवती होने लगेंगी और मैं समझता हूं कि लोग इसे मान्यता नहीं देंगे. लोगों को यही पता नहीं होगा कि उनका पिता कौन है, नाजायज संतानें नाजायज काम ही करती हैं. अगर आप इस तरह का असभ्य समाज चाहते हैं तो आप जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र हैं. अगर आप ईमानदार हैं तो शादी हो या नहीं, यह मायने नहीं रखता. सेक्स सुख देता है जो क्षणिक होता है जबकि योग ऊर्जा का प्रवाह करता है जो आपको बड़ी खुशी देने लायक बनाता है. लोगों को 25 से 75 साल की उम्र के बीच सेक्स करना चाहिए और इसके बाद अध्यात्म और योग अपना लेना चाहिए. होमो सेक्सुएलिटी बीमारी की तरह है.
स्वामी वेदांत मानते हैं कि जब आप फ्री माइंड के साथ सेक्स में शामिल होते हैं तो यह फ्री सेक्स होता है, कोई भी व्यक्ति कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोच्च है. सेक्स एक ऊर्जावान माहौल है. अगर दो युवा कुछ करने के लिए राजी हों तो मैं उसमें दखल देने वाला कौन होता हूं? किसी अन्य व्यक्ति को मॉनिटर क्यों बनना चाहिए? शादी दो लोगों का मिलन है. अगर उनमें मिलन नहीं है, तो कोई शादी नहीं है. सेक्स आपकी चेतना को बहुत ऊंचे स्तर तक ले जाता है, इसे सिर्फ ज्यादा ध्यान के जरिए ही नियंत्रित किया जा सकता है. अगर सेक्स लाइफ संतोषजनक हो तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति के लिए अच्छी होती है.
जिंदगी और मौत : वे यूपी के पीसीएस अधिकारी थे. अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने कानपुर जा रहे थे. लेकिन ट्रक ने टक्कर ऐसी मारी की उनकी मौत हो गई और परिवार के लोग जिंदगी मौत से जूझ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में शुक्रवार को एक सड़क दुर्घटना में वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव नलिन अवस्थी की मौत हो गई, जबकि उनके दो बच्चे और पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गए. राजधानी लखनऊ से करीब 200 किलोमीटर दूर सोरान क्षेत्र में एक तेज गति से आ रहे ट्रक ने उनकी कार को कुचल दिया. अवस्थी परिवार के साथ दीपावली मनाने कानपुर जा रहे थे. उनकी मौके पर ही मौत हो गई. इलाहाबाद में पत्रकारों से पुलिस इंस्पेक्टर धनंजय वर्मा ने कहा, "प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक चालक ट्रक पर से नियंत्रण खो बैठा और कार को टक्कर मार दी. इस दुर्घटना में अवस्थी की पत्नी, 15 वर्षीय बेटे और आठ वर्षीय बेटी को गंभीर चोटें आई हैं." उन्होंने कहा कि तीनों का इलाज चल रहा है लेकिन स्थिति गंभीर बनी हुई है. दुर्घटना के बाद फरार ट्रक चालक को गिरफ्तार कर लिया गया है.
बुंगा-बुंगा, सुपरमैन,  दो दांत तोड़ डाले : पता नहीं आपको याद हो या कि न हो. बर्लुस्कोनी का 'बुंगा बुंगा' शब्दकोष का हिस्सा बन चुका है. इटली के रसिया पीएम के ढेरों किस्से हैं. बहुत कहानियां हैं. इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की पार्टियों के लिए इस्तेमाल हुआ वाक्य 'बुंगा बुंगा' अब इतलावी शब्दकोष का भी हिस्सा बन गया है. हाल ही में मोरक्को मूल की एक किशोरी करीमा केयेक ने बर्लुस्कोनी की 'बुंगा बुंगा' पार्टियों में शिरकत करने का दावा किया था. इस बेले डांसर के अनुसार इस तरह की पार्टियों में बर्लुस्कोनी अपने खास लोगों के लिए मौज-मस्ती का इंतजाम करते थे.अब यह वाक्य पूरे इटली में चर्चा का विषय बन गया है. ब्रिटिश समाचार पत्र 'डेली टेलीग्राफ' के मुताबिक माना जा रहा है कि यह वाक्य बर्लुस्कोनी से जुड़े किसी मजाक के संदर्भ में आया होगा. इतालवी मीडिया का कहना है कि 'बुंगा बुंगा' अब शब्दकोष का हिस्सा बन चुका है और इसका कई संदर्भो में इस्तेमाल होने लगा है. इटली की विपक्षी पार्टी 'इटली ऑफ वैल्यू' ने बर्लुस्कोनी को लेकर एक अभियान शुरू किया है और इसको 'इवोल्यूशन ऑफ द स्पेसीज' नाम दिया गया है. पार्टी ने बर्लुस्कोनी की तीन तस्वीरें बनाई हैं जिनमे से एक में उन्हें लीबियाई नेता गद्दाफी से मिलता-जुलता कपड़ा पहने दिखाया गया है. इटली के प्रमुख फुटबाल क्लब 'एसी मिलान' के एक मैच में हारने पर भी यहां के एक खेल अखबार का शीर्षक 'बुंगा बुंगा जुवे' था. उल्लेखनीय है कि एसी मिलान के मालिक बर्लुस्कोनी हैं.
सिल्वियो बर्लुस्कोनी खुद को ‘सुपरमैन’ की तरह पेश करते हैं. बर्लुस्कोनी की एक प्रकाशन कंपनी है जिसने उन पर एक किताब जारी की है, जिसमें बर्लुस्कोनी की तुलना ‘सुपरमैन’ से की गई है. किताब का नाम है ‘लव आलवेज विन्स ओवर इन्वी एंड हेट्रेड’. इसमें बलरुस्कोनी की तुलना सुपरमैन से करते हुए कई भावनात्मक संदेश दिए गए हैं. किताब के मुख्य पृष्ठ पर बलरुस्कोनी की तस्वीर छपी है, जिसमें वह और जवान लग रहे हैं. किताब में बर्लुस्कोनी के समर्थकों ने हमलावर मास्सिमो टारटाग्लिआ को घृणास्पद व्यक्ति की संज्ञा दी है. ज्ञात हो कि मिलान में आयोजित एक रैली में एक व्यक्ति ने हमला करके उनके दो दाँत तोड़ दिए थे. एक समर्थक ने कहा कि हम आपके साथ हैं महान बर्लुस्कोनी, आप हमारे देश के इंजन हैं. इस बीच 15 यूरो में बिक रही इस किताब की वामपंथी समाचार पत्र रेपुबलिका ने जमकर खिल्ली उड़ाई है. पत्र ने इसकी तुलना लीबिया के नेता कर्नल गद्दाफी की ग्रीन बुक से की है.
सबको मिलाएं, पटक-पटक कर : उपरोक्त चारों-पांचों सच्ची कहानियों को आपने पढ़ लिया होगा. इनके मर्म को बूझ भी लिया होगा. इन चारों -पांचों प्रकरणों, कहानियों को अब तब याद करिएगा जब आप आंख मूंद कर लेटे हुए हों, अकेले हों. बार बार इन किस्सों के दृश्यों को आपस में मिलाइए. खूब फेंटिए. जिंदगी, मौत, मीडिया, पीसीएस, रसिया, पीएम, उद्योगपति, बुंगा बुंगा, बाबा, सेक्स, बहस, तर्क-वितर्क, अनंत-अंत, रुबी, सुंदर लड़की, प्यार, गे, पीएम, पार्टी, अखबार, पूछताछ, दिवाली, मौत, टक्कर, सेक्स, 72 वर्ष, अध्यात्म, वेश्या, जनता, विपक्षी, हालत गंभीर, मौके पर मौत, शादी, ध्यान, फ्री सेक्स, योग, इंस्पेक्टर, सुपरमैन, जीवन, नियंत्रण खोना, स्थिति गंभीर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक ढांचा, बहस..... सारे दृश्यों को इस तरह आपस में मिलाइए  फेंटिए दौड़ाइए चलाइए परकाया प्रवेश कराइए कि बाबा रामदेव में रसिया पीएम की आत्मा प्रवेश कर जाए, रसिया पीएम सब छोड़ छाड़कर योग करने लगे, रसिया पीएम और दो बाबाओं की एक साथ बैठकी हो जाए और तीनों की जाते समय टक्कर से मौत हो जाए, कुछ अधिकारी मौत के महात्म्य को समझ अपने जीवन काल में ठीकठाक चिंतन मनन करने लगें और उनकी बातों व कार्यों से उम्मीद लगने लगे कि सब ठीक होगा.  डिस्को डांस करती भारतीय मीडिया के लिए भारत में कानून बन जाए और विदेशी पूंजी निवेश खत्म कर मीडिया हाउसों को प्राइवेट लिमिटेड से मुक्त कर जनता लिमिटेड बना दिया जाए..... सोचते जाइए, सपने देखते जाइए, कभी न कभी तो कोई क्रम बनेगा, कोई फ्रेम तैयार होगा, कोई सच्ची तस्वीर बनेगी, क्योंकि अभी जो छवियां हैं और छवियों को जिस फ्रेम में दिखाया जा रहा है, वे सच और सुंदर नहीं हैं. इनमें भयानक असहजता और अनर्थ व्यवस्थित तरीके से प्रविष्ट है. आइए छवियों को तोड़ते हुए परकाया प्रवेश करें और सबको बूझ-महसूस कर एक अदभुत मनुष्य सृजित करें, खुद के अंदर.
ऐसे गुरु का पता बताएं : दिवाली बीती जा रही है. हजार से ज्यादा मैसेज आए. जवाब कुछ एक को भी दिया या नहीं, ठीक से याद नहीं. अब औपचारिक उत्सवी संदेशों, शुभकामनाओं, बधाइयों से कोई भाव नहीं पैदा होता. पलट कर जवाब देने को भी जी नहीं चाहता. बहसों, तर्कों, घटनाओं, जीवनचर्या में भावुक संलिप्तता खत्म होती जा रही है. ये बुढ़ापे का भाव है या जवान होने का, तय नहीं कर पाता. दुनियादार के लिहाज से देखूं तो पूरी तरह बुढ़ापा तारी होने लगा है. खुद सोचता हूं तो लगता है कि अब जीवन जीना शुरू कर रहा हूं, अभी तक तो नरक भोगा है, अभी तक तो भोग किया है, अभी तक तो चेतना को घटनाओं के झंझावातों से धारधार कर पैना बनाया है. अब अलख जगा है. अब कुछ अंदर जागृत सा दिखता है लेकिन बाहर वह जब प्रकट होता है तो भाव तटस्थ वाला होता है, खुद के प्रति भी, परिवार के प्रति भी और समाज-देश के प्रति भी. खुद, परिवार, समाज, देश, दुनिया, ब्रह्मांड.... ये सारे शब्द जब मिट जाएंगे या आपस में मिलकर एक हो जाएंगे तो क्या बनेगा. वो शायद आप और हम बनेंगे, ढेर सारे लोग अलग अलग हिस्सों में, अलग अलग सोच वाले, अलग अलग रंग रूप वाले, अलग अलग प्रजाति वाले, अलग अलग चेतन रूप में. घास से लेकर हाथी तक में प्रकट होगा यह एक जागृत चेतन और सब एक दूसरे से अलग अलग स्वायत्त स्वतंत्र लेकिन एक दूसरे पर बेहद निर्भर आश्रित और संबद्ध. इस विसंगति में कैसी संगति है, इस विरोधाभाष में कैसी एकता है, यह महसूस कर पा रहा हूं. पता नहीं, आप करते हैं या नहीं. इस महसूसने के भाव को और गहरे ले जाना चाहता हूं. शायद इसीलिए गुरु की तलाश होती है. पर ऐसा गुरु मिलेगा कहां. कोई दिखे तो सुझाएं.
लेखक यशवंत फिलहाल भड़ास4मीडिया से जुड़े हुए हैं. उन तक अपनी बात yashwant@bhadas4media.com This e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it के जरिए पहुंचा सकते हैं.

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