Saturday, February 15, 2020
धार्मिक लोक कथाएं
एक चोर भागा कबीर बाबा के घर में घुसा, बोला, मै चोर हूँ, छिपने की जगह दे दो,
कबीर जी ने कहा, गोदडियों में छिप जाओ,
चोर छिप गया सिपाही आए और बोले,
कबीर कबीर, तूने चोर को देखा ? कबीर जी ने कहा- हाँ, गोदडियों के ढेर में छिपा है,
चोर के प्राण सूख रहे थे के आज किस कबीर बाबा के चक्कर में पड गया।
सिपाही ने सोचा, मजाक कर रहा है।
ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके सामने कोई गोदडियों के ढेर में छिप जाए,
वे चले गए।
चोर निकल आया और बोला, बाबा जी, आज तो मरवा ही डालते आप,
कबीर बाबा ने कहा- अरे, क्या मैं झूठ बोलता ?
क्या सत्य में इतनी ताकत नहीं, जो तुम्हें बचा सके ?
सत्य क्या मिट गया है ?
झूठ में ताकत नहीं सत्य में ताकत है।
मुझे विश्वास था, मेरा सत्य तेरी रक्षा करेगा,
गुरु, संत जो कहें उसे मान लो किन्तु परंतु मत करो,,,
[15/02, 05:27]
Morni कृष्ण मेहता:
साधना क्या है...???
〰〰〰〰〰〰
पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा।
फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा।
किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा।
इसी प्रकार निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।
चक्की में दो पाटे होते हैं।
उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तोअनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है।
यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा।
इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं -
एक मन और दूसरा शरीर।
उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है।
अपने मन को भगवान के प्रति स्थिर किया जाए और शरीर से गृहस्थी के कार्य किए जाएं।
प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा,
लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है।
देह को तो प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए औरमन को नाम-सुमिरन में विलीन कर दिया जाए -
यही नाम साधना है।
जय श्री महाकाल
[15/02, 05:27] Morni कृष्ण मेहता: *आदेश।,, जय माँ।* 🕉🕉🕉
*जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।*
ज्ञान और भक्ति का जाति या लिंग से कोई भी संबंध नही है।
भक्ति और ज्ञान जात-पात, कुल-गोत्र, पुरुष या स्त्री देख कर नही आते,
यदि जाति के आधार पर ज्ञान या भक्ति मिलती तो बाल्मीकी रामायण नही लिख पाते,
कर्माबाई की खिचड़ी खाने द्वारकाधीश दौड़े दौड़े नही आते,
मीरा बाई सा-शरीर श्रीकृष्ण के विग्रह में ना समा जाती,
लंकापति रावण बैजनाथ ज्योर्तिलिंग की स्थापना नही कर पाता,
विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को अस्त्र-शस्त्र नही दे पाते,
रविदास की चमड़े की कठौती से गंगा नही निकलती,
शबरी के बेर राम नही खाते,
गोपियों को प्रेम भक्ति का मणिमुकुट ना कहा जाता,
जनाबाई की चक्की पीसने भगवान विट्ठल नही आते,
और दत्त महाप्रभु साधारण मानव से ले कर पशु-पक्षी से ज्ञान नहीं लेते,
गज की पुकार पर नारायण वैकुंठ से दौड़े नही आते।
ऐसे लाखो उदाहरण है जिनमे भगवान बिना जाती देखे अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण किये।
उन्हें मुक्ति दी।
ईश्वर सिर्फ सच्चा प्रेम भाव और समर्पण ही चाहते है आपसे,
जो व्यक्ति अपने गुरु, इष्ट, मातृभूमि, धर्म, परिजनों की सच्चे हृदय से सेवा करता है ईश्वर सदैव उसके साथ ही होते है।।
जात-पात को छोड़िये, सबसे ऊपर भक्ति,प्रेम और ज्ञान,
जो जाती देख संशय करे उसे ना मुक्ति मिले ना मिले भगवान।।
प्रस्तुति - अर्चना चौहान
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