Thursday, February 13, 2020

शाम के सत्संग का बचन





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 *13-02- 2020-
 आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
 कल से आगे-*

( 56)-

 कहने को तो हर कोई मुक्ति का तलबगार है लेकिन हर शख्स इस लफ्ज़ को एक ही मायने में इस्तेमाल नहीं करता। जैसे बाज लोग मुक्ति का मतलब संसार के दुखों से छूट जाना लेते हैं-- ये दरअसल जन्म मरण व संसार के दुखों से डरते हैं। संतमत में मुक्ति का मतलब सच्चे मालिक से मिलकर एक हो जाना है। दुनिया की हर कौम के अंदर रिवाज है कि प्यार का अंग प्रगट होने पर एक शख्स दूसरे से अपने जिस्म का कोई हिस्सा स्पर्श करता है जैसे बाज लोग हाथ से हाथ मिलाते हैं, बाज नाक से नाक छूते हैं , बाज मुंह से मुंह जोड़ते हैं। इन कार्यवाही से दरअसल उनके जीवात्माएँ एक दूसरे से मिला चाहती हैं लेकिन चूँकि जिस्म स्थूल है इसलिए उनके द्वारा महज क्षणिक और ऊपरी मेल प्राप्त होता है । इससे समझ में आ सकता है कि अगर किसी आत्मा के ऊपर से तन व मन के गिलाफ कतई उतर जायँ और वह सच्चे मालिक के हुजूर में पहुंच जाए तो उस वक्त क्या हालत होगी?  हालत यह होगी कि एक तरफ तो प्रेमभरी चेतन बुंद सच्चे मालिक की तरफ बढ़ रही है और दूसरी तरफ चेतन शक्ति का अपार सिंधु उस सुरत को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है गोया गोवा सुरत सच्चे मालिक में समाया चाहती है और सच्चा मालिक सुरत को अपने में जज्ब किया चाहता है जिसका नतीजा बिल आखिरी यही होगा कि सुरत सच्चे मालिक के साथ मिलकर एक हो जाएगी ।।                      मुक्ति का यह तात्पर्य सिद्ध होने पर मुक्ति के हर चाहने वाले पर फर्ज हो जाता है कि इस दौलत के पाने के लिए जो जीना मुकर्रर किया गया है उस पर कदम जमाने के लिए पूरी कोशिश करें और वह जीना सतगुरु के साथ एक हो जाना है। जो शख्स ऐसे पुरुष से, जो मालिक के साथ एक हो रहा है, एक होने की योग्यता रखता है वही मालिक के साथ एक हो सकता है ।

राधास्वामी
(सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा)
प्रस्तुति - ममता शरण/रीना शरण


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