Wednesday, February 12, 2020

सत्संग के बचन




[22/01, 07:59] +91 79090 13535: *अच्छा होगा कि हम सब इस समय कम से कम पाँच मिनट के लिये चुप होकर मालिक के चरणों का ध्यान करें और अन्तर ही अन्तर उसका शुकराना बजा लायें। यह कार्रवाई अत्यन्त उचित व समयानुसार होगी।*
 (इन शब्दों के साथ ही उपस्थित जनों ने आज्ञानुसार चुप होकर मालिक के हुज़ूर में प्रार्थना की) हुज़ूर ने फिर फ़रमाया-

     इतिहास पढ़ने से ज्ञात होता है कि
*जब हज़रत मसीह पैदा हुए, आसमान पर फ़ रिश्तों ने ख़ुशी मनाई और बाजे बजाये।*
*हज़रत मोहम्मद साहब पैदा हुए,आसमान से सितारे टूटे और ख़ास क़िस्म की रोशनी हुई और बाजे बजे।*

 *कृष्ण महाराज पैदा हुए तो सख़्त अँधेरा छा गया और वर्षा हुई, उसी हालत में वसुदेव उन्हें नन्द के घर ले गये।*

 *हज़रत मसीह सूली पर चढ़ाये गये और उनके साथ वह बर्ताव किया गया जिसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।*
*हज़रत मोहम्मद साहब को 17 बार युद्ध करना पड़ा।*

*कृष्ण महाराज को पाँच वर्ष की अवस्था से ही राक्षसों से लड़ना पड़ा। उसके बाद महाभारत का दृश्य देखना पड़ा।*
[11/02, 17:01] +91 79090 13535: **राधास्वामी!! 11-02-2020-आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(54)- जैसे बाज लोग, जिनमें खास गुण होते है, राजाओं बादशाहों के दरबार में दखल पाये बिना हरगिज चैन नही लेते क्योंकि वह जानते है कि उनके गुणों का आदर मान राजा बादशाह ही कर सकते है लेकिन वे लोग, जिनमें कोई खास गुण नही होता, मामूली अलहकारों से ही तअल्लुक़ पैदा करने करके शांत हो जाते है, ऐसे ही बाज प्रेमी जन तो बिला संत सतगुरु से प्रेम कायम किये सन्तुष्ट नही होते और बाज महज उनकी इस्तेमाली चीजें स्पर्श करके शान्त हो जाते है। जिस शख्स के हृदय में मालिक के दर्शन की चाह है उसे चाहिये कि मालिक को छोड कर दूसरे किसी के मिलने पर संतुष्ट न हो वरना उसे पछताना पडेगा। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
[12/02, 17:43] +91 87892 86656: **राधास्वामी!! 12-02-2020-आज शाम के सतसंग मे पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 55) आजकल परमार्थ व परमार्थी संस्थाओं का नाम बदनाम हो रहा है। वजह यह है कि प्राय: परमार्थी संस्थाएं ऐसे लोगों के हाथों में है जिन्हें न आध्यात्मिकता से कोई संबंध है , न जनता की बेहतरीन से कोई वास्ता है। जब कोई महापुरुष अपना अमृतरुपी उपदेश जारी फरमाते हैं तो प्रेमी जन प्रभावित हो कर उनके चरणों के इर्द गिर्द जमा होने लगते हैं और जब वे देखते हैं कि वे महापुरुष अपना तन, मन धन जनता की निःस्वार्थ सेवा में सर्फ करते हैं और बावजूद दुनिया से बेगरज होने के अपनी विद्या आम लोगों को खुशी से सिखलाते है और अपनी ओर से प्रेम की दात बख्शिश फरमाते हैं तो स्वभाविक तन, मन, धन भेंट करने के लिए उनका भी दिल उमंगता है। धीरे-धीरे ऐसे प्रेमी जनों की तादाद काफी बढ़ जाने से वहां सोने चांदी की नदी बहने लगती है और कुछ अर्से बाद जब वह महापुरुष अपना काम पूरा करके दुनिया से रुखसत हो जाते हैं तो या तो कोई मतलबी शख्स खुद उनकी गद्दी संभाल लेता है यह कोई नाकाबिल शख्स गद्दी पर बिठा दिया जाता है जिससे स्वार्थियों को अपने हाथ रंगने का मौका मिले। महापुरुष का सिर से हाथ उठ जाने पर रुपए पैसे की तरक्की और रुहानियत ल पाकीजगी की मादूमी से कमी से संयोग में किस्म किस्म की खराब रस्में जारी हो जाती हैं और आम लोग इस बिगडी परमार्थी संस्था का हाल मुलाहिजा करके सच्चे परमार्थ  और सच्ची परमार्थी संस्थाओं की लाशों को सच्चा परमार्थ व परमार्थी संस्थाए ख्याल करते है। जैसे किसी जिस्म के अंदर से रुह के निकल जाने पर वह जिस्म मुर्दा हो जाता है और सडने लगता है ऐसे ही किसी परमार्थी सयोंग के अंदर से सच्चे महाप्रभु से रुखसत हो जाने पर संस्था के अंदर सड़न पैदा हो जाती है। मालूम होवे कि सच्चा महापुरुष या सच्चा सतगुरु दरअसल वह सूरत या रुह है जो किसी इंसानी जिस्म के अंदर वर्तमान है और जागृत या चेतन है और सच्चे मालिक से मेल प्राप्त किये है, उसका बाहरी जिस्म और दुनिया  में काम करने वाला मन केवल सुरत के वस्त्र या गिलाफ है और सच्चे सद्गुरु उनकी संतान को आमतौर पर महज उनके खून का कतरा मिलता है और चूंकि खून महज उनकी रुह के गिलाफ का अंश है इसलिये इस खून के रिश्ते की वजह से किसी महापुरुष की संतान में उनका जानशीन बनने की योग्यता नही आ सकती।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 (सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा)**
प्रस्तुति - ममता शरण /रीना शरण

No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...