Friday, February 7, 2020

प्रेम की चिंगारी / पंकज निगम

**प्रेम की चिनगी**
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प्रेम नगर से निकला मैं,
प्रेम की दात लेकर!
दया मेहर की ओढ़ चुनरिया,
करमों का भार देकर!
सेवा भी बहु करी न पाई,
आलस भी दिन रात सताई!
खेतन सेवा मन से कीन्हा,
दरशन कर बहु भाग्य बढ़ाई!
सतसंग नित्य होय होत भोरा,
आधी रात गुरू मन झझकोरा!
तन भागा गुरू दरशन ओरा,
लागा मन गुरू चरनन मोरा!
पहुंच खेत फिर करम कटाई,
उठा दंतारी पौध कीन्ह छटाई!
गन्नों का हम गठ्ठर बांधा,
सतसंगीयन का देकर कांधा!
चने, मूंग की करी निराई,
आलस निदरा सभई हराई!
सुपरमैन सब दौड़ लगांवें,
बहिनन पीटी काल भगांवे!
छिन छिन हम परशादी पाई,
अमरित धारा रस पान कराई!
बचन सुने हम देकर काना,
प्रेम की चिनगी हम तबहीं जाना!
राधास्वामी नाम की सुरत चढ़ा कर,
प्रेम नगर में कदम बढ़ा कर!
मधुर चाल फिर देखन लागी,
प्रेम की चिनगी जागन लागी!
तब मन पाया पूरन सुख चैना,
छोड़त दयाल देश नीर भीगे नैना!
अब दाता भर देव झोली,
बीता बसंत अब खेंलू होली!
माफी कलम फेर देओ हमरी बिनती,
औगुन हमरे लाओ न गिनती!
यही है हमरा सतसंग पूरा,
हम हैं तीली तुम हमरे धूरा!
प्रेम की चिनगी से भर कर झोली,
निकलत प्रेम नगर से सुरत राधास्वामी बोली।।
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राधास्वामी।
पकंज निगम
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