Friday, February 7, 2020

परम पुरूष पूरन धनी मेहता जी महाराज

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *【परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज ,गुरुचरन दास मेहता जी महाराज :-20 दिसंबर 1885- 17 फरवरी 1975-】:- राधास्वामी सत्संग के छठे संत सतगुरु मेहताजी महाराज,  गुरुचरन दास माता जी महाराज का जन्म बटाला में एक सम्मानित पंजाबी परिवार में 20 दिसंबर 1885 को हुआ था। उनके पिता श्री आत्माराम मेहता साहब थे। मेहताजी महाराज बचपन से ही असाधारण मेधावी थे । लड़कपन से ही उन्होंने पढ़ाई में कड़ी मेहनत की और कुछ उच्च श्रेणियां प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से बी.ए. की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। थामसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग रुड़की से सिविल इंजीनियर की परीक्षा पास की जिसमें उनको सर्वोत्तम इंजीनियरिंग डिजाइन व सर्वेइंग और ड्राइंग में पदक मिले। उन्होने पंजाब पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में कार्य प्रारंभ किया और सेवा निवृत्ति तक उत्तरोतर उन्नति प्राप्त करते हुए चीफ इंजीनियर और शासन के सचिव पद  को प्राप्त किया।।           13 वर्ष की उम्र में हुजूर महाराज अपने पिता जी के साथ हुजूर महाज के सत्संग में पीपलमंडी आये थे। हुजूर महाराज ने उनका नाम पूछा और नाम हरचरन दास बताये जाने पर  उन्होंने उसे बदल कर गुरु चरन दास रख दिया । सन 1905 में इलाहाबाद में एक नाटक के प्रदर्शन के बाद महाराज साहब जी ने मेहताजी महाराज के पिता से कहा मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ। सन 1914 में जब साहबजी महाराज सोलन में रूके हुए थे तब उन्होने हुजूर मेहताजी को "मंजूर-ए- नजर " कहा था।  सन 1920 में जब साहबजी महाराज हरदा मध्य प्रदेश में बहुत बीमार हो गए थे तब उन्होंने फरमाया था कि गुरुचरन दास मेरे बाद सत्संग का मार्गदर्शन करेंगे।।                          24 जून 1937 को साहबजी महाराज के निज धाम पधारने पर उनके उत्तराधिकारी के विषय में कोई भी संदेह नहीं था। एक वर्ष पहले से ही ऐसे बहुत से संकेत मिलने के अतिरिक्त कई सतसंगियों को अनुभव प्राप्त हुए जिसको उन्होने दूसरों को भी बताया।  पंडित मनीराम शास्त्री ने स्वपन में हुजूर साहबजी महाराज को देखा और उनसे साहबजी जी महाराज ने कहा कि वह अब हुजूर मेहताजी साहब के रूप में मौजूद है। तिमरनी में एक दिन जब सत्संगी सुबह का सतसंग शुरू कर रहे थे तो प्रत्येक सतसंगी ने देखा कि हुजूर साहबजी जी महाराज की फोटोग्राफ के बजाय मेहताजी महाराज कुर्सी पर विराजमान है। 28 अगस्त सन 1937 को साहबजी महाराज के भंडारे के अवसर  पर साहबजी महाराज के स्थान पर मेहताजी महाराज को सभा का प्रेसिडेंट चुना।                 17 अप्रैल 1938 को मेहताजी महाराज ने दया करके सतसंग हाल में फरमाया " सतसंगी भाई व बहने यह जानकर अत्यंत प्रसन्न होगें कि राधास्वामी दयाल की दया और मेहर इस समय बडे जोर से बह.रही है और समस्त संगत पर उनकी दया का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है क्योंकि इस समय जो काम हाथ में लिया जाता है उसमें सफलता प्राप्त होती है। इस वास्ते सत्संगी भाई और बहनों को अपनी कमर कस कर मैदान में आ जाना चाहिए और सेवा बलिदान के लिए तत्पर रहना चाहिए**

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