+91 92346 58709: **
राधास्वामी!! 04-02-2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-(47):- यह दुरुस्त है कि भीड़भाड़ के मौकों पर हजारों सतसंगियों का मिलकर उठना बैठना व खाना-पीना एक खास लुत्फ रखता है लेकिन दूर फासले से चलकर आने दो रास्ते की मुश्किलें झेलने और भारी रकमें किराये वगैरह में खर्च करने का अगर इतना ही फल मिले तो नाकाफी है। मुनासिब यह है कि सत्संग से लौटते वक्त हर एक प्रेमी सतसंगी यह महसूस करें कि वह कोई खास चीज लेकर लौट रहा है। जिसके दिल में प्रेम की चिनगी न हो वह चिनगी हासिल करें, जिसके दिल में चिनगी हो लेकिन मंद हो वह उसे तेज करावे, जिसके अंदर तेज चिनगी वह उसे और भी तेज करवा कर लौटे। अगर इन बातों का लिहाज न रक्खा गया और महज कारखानों व कॉलेजो की रौनक और सत्संग की भीड़ भाड़ या रुपये पैसे भेंट चढ़ाने ही पर संतोष कर लिया गया तो सख्त अफसोस होगा। मालूम होवे कि सत्संग के स्कूल, कॉलेज, कारखाने व अस्पताल वगैरह आध्यात्मिक संस्थाएं नहीं है। इनकी तरक्की व रौनक होने से लोगों को रुहानी तरक्की हासिल नहीं हो सकती। इनसे संगत की सिर्फ संसारी जरूरतें पूरी हो सकती हैं और संगत को आराम मिल सकता है । ये चीजें दरअसल सत्संग के पौधे के गिर्द बाढ़ के तौर पर लगाई गई है। मूर्ख बाड ही पर तवज्जुह रखते है लेकिन बुद्दिमान बाढ़ से गिरे हुए पौधे की तरफ तवज्जुह देते हैं।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻( सत्संग के उपदेश- भाग 3)**
[07/02, 14:38] +91 92346 58709: **राधास्वामी!! 06-02-2020-आज शाय के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(49)-सतसंगियों की मन व अभ्यास के सम्बंध में कुल शिकायतों की वजह से प्रेमी की कमी है। मालिक के चरणों का प्रेम ऐसी दवा है जिसके हृदय के अंदर दाखिल होते जीव के सब रोग सोग मिट जाते है।इसलिये हर सतसंगी को चाहिये कि रोजाना दिन में कई बार और कम से कम प्रातः काल जरूर ही प्रेम की दात के लिये प्रार्थना करे। प्रेम बाजार से नही मिल सकता, न दौलत से खरीदा जा सकता है। यह कुल मालिक का दरवाजा खटखटाने ही से मिलता है। इसके हासिल करने के लिये सतसंगियों को किसी तरह असावधानी या लज्जा नही करनी चाहिये।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[07/02, 14:41] +91 92346 58709: **राधास्वामी सत्संग सभा ने 21 जनवरी 1961 बसंत पंचमी के दिन राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह मनाने की योजना बनाई। सभी सत्संग ब्राँचेज, डिस्ट्रिक्ट एसोसिएशन्स,और रीजनल एसोसिएशन्स से अनुरोध किया गया कि वह अपने स्थानों पर इस अवसर का आयोजन दीप सज्जा के साथ करें। समारोह का आयोजन 19 से 22 जनवरी तक चला। जो शब्द बसंत पंचमी के दिन पढ़े गए उनमें राधास्वामी दयाल के स्वामीजी महाराज के मनुष्य के रूप में अवतरित होने का संदेश था। बसंत के दिन प्रातः काल के सतसंग के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने एक संदेश दिया जिसका अंत इस प्रार्थना से था " ऐ परमपिता सबको सुमति प्रदान करें ऐसी दया हो कि सत्संग संचालन पहले से कहीं बढ़ चढ़कर प्रगति और समृद्धि के पथ पर अग्रसर हो। राधास्वामी।" उसी दिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणकमलों में धन्यवाद देने के लिए सभा का एक विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें पारित प्रस्ताव में यह शब्द थे- " हम अपनी कृतज्ञता की समुचित अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है। अतः हम आपके चरण- कमलों में बड़ी दिनता व कृतज्ञता से नतमस्तक हैं और बारंबार हुजूर साहबजी महाराज के शब्दों में प्रार्थना करते हैं। " तन मन सेवा में लगे और सिंह तुम्हारी होय। दया दृष्टि मुझ पर रहे और न चाहत कोय।" मेहताजी महाराज की सेहत लगातार धीरे-धीरे गिरती गई और 1969 में कमजोरी अत्यधिक बढ गई। फिर भी जो काम वह कर रहे थे , उसमें कभी नहीं हुई। 16 फरवरी सन 1975 बसंत पंचमी के दिन उनकी दशा अत्यधिक नाजुक हो गई और उनके लिए सत्संग में आना भी संभव नहीं था। बसंत पंचमी के 1 दिन पश्चात 17 फरवरी सन 1975 को सांयकाल 5:00 बजे परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज हम सब को छोड़कर निजधाम सिधार गए। मेहताजी महाराज के तीन बेटे व 5 बेटियां थी ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻**
[07/02, 14:52] +91 92346 58709: **दिसंबर 1938 में मेहताजी महाराज ने सभा के प्रेसिडेंट का पद त्याग दिया और राय बहादुर गुरु सरन दास मेहता को प्रेसिडेंट चुना गया। 28 दिसंबर 1938 को सतसंगियों के जलसे में मेहताजी महाराज को साहबजी महाराज का उत्तराधिकारी जयघोषित किया गया। जैसा कि मेहताजी महाराज ने स्वंय बताया था कि उन्होंने साहबजी महाराज से नवम्बर 1933 में यह निवेदन किया था कि कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए कि बेरोजगारी, दुःख व दरिद्रता दूर की जा सके। वह समय व्यापार में मंदी और व्यापक बेरोजगारी का था। सन 1934 में पूरे वर्ष वह प्रतिदिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में सुबह शाम अपना भोजन करते समय यह प्रार्थना करते रहे कि सतसंगियों को अपना जीवन व्यतीत करने के लिये प्रर्याप्त भोजन, कपडे व प्रर्याप्त धन प्रदान करें। साहबजी महाराज ने सभा में यह प्रस्ताव पास कराया था कि दयालबाग की इंडस्ट्रीज को विकसित किया जाए ताकि 5 वर्ष के अंदर उनका वार्षिक उत्पादन एक करोड हो जाए ।सभा के प्रेसिडेंट बनने के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने इस प्रस्ताव की पुष्टि करा दी। सभा की प्रार्थना पर उन्होंने "डायरेक्टर ऑफ इंडस्ट्रीज " का कार्यभार संभाला और औद्योगिक इकाइयों तथा संगठन को निर्देशित करते रहे। उनके उत्पादन में माल की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रभावकारी बड़े कदम उठाए गए। पहले से स्थापित यूनिटों का विस्तार किया गया और दयालबाग और बाहर नई इंडस्ट्रीज स्थापित की गई। औद्योगिक उत्पादनों की बिक्री हेतु देशभर में स्टोर्स स्थापित किए गए और नियमित रूप से प्रदर्शनिया लगाई गई। सतसंगी समाज के हर वर्ग के लोगों ने घर-घर जाकर बहुत उत्साह के साथ माल की बिक्री करने में भाग लिया। मेहता जी महाराज ने सतसंगियों को यथा आवश्यक सलाह व निर्देश दिए। बचध फरमाने के स्थान पर वे हर व्यक्ति तथा समुदाय को निर्धनता और संभावित विपत्तियों से बचने का रास्ता बता रहे थे। सतसंगियों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने कई उपाय किए जैसे अपने निजी खर्चे से कॉलोनी के विद्यार्थीयों लड़के व लड़कियों को मुफ्त दूध दिए जाने का प्रबंध किया। जब सन् 1942 में 5 वर्ष की अवधि से पहले ही इंडस्ट्रियल प्रोग्राम पूरा हो गया, साहबजी महाराज के बड़े भाई श्री द्वारकादास जी को इंडस्ट्रीज का डायरेक्टर नियुक्त किया गया। सभा के आग्रह पर मेहताजी महाराज ने सभा के "आर्थिक सलाहकार के रूप में आर्थिक विषयों पर प्रदर्शन करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। और तब सभा ने औद्योगिक व वाणिज्यिक क्षेत्र में कार्य करना छोड़ दिया । बहुत सी सरकारी और प्राइवेट लिमिटेड कंपनीज इस कार्य के लिए गठित की गई । कई धर्मार्थ समितियों स्थापित की गई ताकि धर्मार्थ कार्यकलापो जैसे चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने को गति प्रदान कर सकें। महिलाओं के सामाजिक उत्थान के लिए कदम उठाए गए। सन 1938 में महिला एसोसिएशन का गठन हुआ और विवाह में होने वाले व्यय को नियंत्रित करने, सरल तथा सुधार करने के लिए एक मैरिज पंचायत का गठन किया गया।**
[07/02, 14:52] +91 92346 58709: 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *【परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज ,गुरुचरन दास मेहता जी महाराज :-20 दिसंबर 1885- 17 फरवरी 1975-】:- राधास्वामी सत्संग के छठे संत सतगुरु मेहताजी महाराज, गुरुचरन दास माता जी महाराज का जन्म बटाला में एक सम्मानित पंजाबी परिवार में 20 दिसंबर 1885 को हुआ था। उनके पिता श्री आत्माराम मेहता साहब थे। मेहताजी महाराज बचपन से ही असाधारण मेधावी थे । लड़कपन से ही उन्होंने पढ़ाई में कड़ी मेहनत की और कुछ उच्च श्रेणियां प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से बी.ए. की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। थामसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग रुड़की से सिविल इंजीनियर की परीक्षा पास की जिसमें उनको सर्वोत्तम इंजीनियरिंग डिजाइन व सर्वेइंग और ड्राइंग में पदक मिले। उन्होने पंजाब पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में कार्य प्रारंभ किया और सेवा निवृत्ति तक उत्तरोतर उन्नति प्राप्त करते हुए चीफ इंजीनियर और शासन के सचिव पद को प्राप्त किया।। 13 वर्ष की उम्र में हुजूर महाराज अपने पिता जी के साथ हुजूर महाज के सत्संग में पीपलमंडी आये थे। हुजूर महाराज ने उनका नाम पूछा और नाम हरचरन दास बताये जाने पर उन्होंने उसे बदल कर गुरु चरन दास रख दिया । सन 1905 में इलाहाबाद में एक नाटक के प्रदर्शन के बाद महाराज साहब जी ने मेहताजी महाराज के पिता से कहा मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ। सन 1914 में जब साहबजी महाराज सोलन में रूके हुए थे तब उन्होने हुजूर मेहताजी को "मंजूर-ए- नजर " कहा था। सन 1920 में जब साहबजी महाराज हरदा मध्य प्रदेश में बहुत बीमार हो गए थे तब उन्होंने फरमाया था कि गुरुचरन दास मेरे बाद सत्संग का मार्गदर्शन करेंगे।। 24 जून 1937 को साहबजी महाराज के निज धाम पधारने पर उनके उत्तराधिकारी के विषय में कोई भी संदेह नहीं था। एक वर्ष पहले से ही ऐसे बहुत से संकेत मिलने के अतिरिक्त कई सतसंगियों को अनुभव प्राप्त हुए जिसको उन्होने दूसरों को भी बताया। पंडित मनीराम शास्त्री ने स्वपन में हुजूर साहबजी महाराज को देखा और उनसे साहबजी जी महाराज ने कहा कि वह अब हुजूर मेहताजी साहब के रूप में मौजूद है। तिमरनी में एक दिन जब सत्संगी सुबह का सतसंग शुरू कर रहे थे तो प्रत्येक सतसंगी ने देखा कि हुजूर साहबजी जी महाराज की फोटोग्राफ के बजाय मेहताजी महाराज कुर्सी पर विराजमान है। 28 अगस्त सन 1937 को साहबजी महाराज के भंडारे के अवसर पर साहबजी महाराज के स्थान पर मेहताजी महाराज को सभा का प्रेसिडेंट चुना। 17 अप्रैल 1938 को मेहताजी महाराज ने दया करके सतसंग हाल में फरमाया " सतसंगी भाई व बहने यह जानकर अत्यंत प्रसन्न होगें कि राधास्वामी दयाल की दया और मेहर इस समय बडे जोर से बह.रही है और समस्त संगत पर उनकी दया का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है क्योंकि इस समय जो काम हाथ में लिया जाता है उसमें सफलता प्राप्त होती है। इस वास्ते सत्संगी भाई और बहनों को अपनी कमर कस कर मैदान में आ जाना चाहिए और सेवा बलिदान के लिए तत्पर रहना चाहिए**
प्रस्तुति - संत रीना अम्मी शरण
[07/02, 14:41] +91 92346 58709: **राधास्वामी सत्संग सभा ने 21 जनवरी 1961 बसंत पंचमी के दिन राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह मनाने की योजना बनाई। सभी सत्संग ब्राँचेज, डिस्ट्रिक्ट एसोसिएशन्स,और रीजनल एसोसिएशन्स से अनुरोध किया गया कि वह अपने स्थानों पर इस अवसर का आयोजन दीप सज्जा के साथ करें। समारोह का आयोजन 19 से 22 जनवरी तक चला। जो शब्द बसंत पंचमी के दिन पढ़े गए उनमें राधास्वामी दयाल के स्वामीजी महाराज के मनुष्य के रूप में अवतरित होने का संदेश था। बसंत के दिन प्रातः काल के सतसंग के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने एक संदेश दिया जिसका अंत इस प्रार्थना से था " ऐ परमपिता सबको सुमति प्रदान करें ऐसी दया हो कि सत्संग संचालन पहले से कहीं बढ़ चढ़कर प्रगति और समृद्धि के पथ पर अग्रसर हो। राधास्वामी।" उसी दिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणकमलों में धन्यवाद देने के लिए सभा का एक विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें पारित प्रस्ताव में यह शब्द थे- " हम अपनी कृतज्ञता की समुचित अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है। अतः हम आपके चरण- कमलों में बड़ी दिनता व कृतज्ञता से नतमस्तक हैं और बारंबार हुजूर साहबजी महाराज के शब्दों में प्रार्थना करते हैं। " तन मन सेवा में लगे और सिंह तुम्हारी होय। दया दृष्टि मुझ पर रहे और न चाहत कोय।" मेहताजी महाराज की सेहत लगातार धीरे-धीरे गिरती गई और 1969 में कमजोरी अत्यधिक बढ गई। फिर भी जो काम वह कर रहे थे , उसमें कभी नहीं हुई। 16 फरवरी सन 1975 बसंत पंचमी के दिन उनकी दशा अत्यधिक नाजुक हो गई और उनके लिए सत्संग में आना भी संभव नहीं था। बसंत पंचमी के 1 दिन पश्चात 17 फरवरी सन 1975 को सांयकाल 5:00 बजे परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज हम सब को छोड़कर निजधाम सिधार गए। मेहताजी महाराज के तीन बेटे व 5 बेटियां थी ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻**
[07/02, 14:52] +91 92346 58709: **दिसंबर 1938 में मेहताजी महाराज ने सभा के प्रेसिडेंट का पद त्याग दिया और राय बहादुर गुरु सरन दास मेहता को प्रेसिडेंट चुना गया। 28 दिसंबर 1938 को सतसंगियों के जलसे में मेहताजी महाराज को साहबजी महाराज का उत्तराधिकारी जयघोषित किया गया। जैसा कि मेहताजी महाराज ने स्वंय बताया था कि उन्होंने साहबजी महाराज से नवम्बर 1933 में यह निवेदन किया था कि कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए कि बेरोजगारी, दुःख व दरिद्रता दूर की जा सके। वह समय व्यापार में मंदी और व्यापक बेरोजगारी का था। सन 1934 में पूरे वर्ष वह प्रतिदिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में सुबह शाम अपना भोजन करते समय यह प्रार्थना करते रहे कि सतसंगियों को अपना जीवन व्यतीत करने के लिये प्रर्याप्त भोजन, कपडे व प्रर्याप्त धन प्रदान करें। साहबजी महाराज ने सभा में यह प्रस्ताव पास कराया था कि दयालबाग की इंडस्ट्रीज को विकसित किया जाए ताकि 5 वर्ष के अंदर उनका वार्षिक उत्पादन एक करोड हो जाए ।सभा के प्रेसिडेंट बनने के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने इस प्रस्ताव की पुष्टि करा दी। सभा की प्रार्थना पर उन्होंने "डायरेक्टर ऑफ इंडस्ट्रीज " का कार्यभार संभाला और औद्योगिक इकाइयों तथा संगठन को निर्देशित करते रहे। उनके उत्पादन में माल की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रभावकारी बड़े कदम उठाए गए। पहले से स्थापित यूनिटों का विस्तार किया गया और दयालबाग और बाहर नई इंडस्ट्रीज स्थापित की गई। औद्योगिक उत्पादनों की बिक्री हेतु देशभर में स्टोर्स स्थापित किए गए और नियमित रूप से प्रदर्शनिया लगाई गई। सतसंगी समाज के हर वर्ग के लोगों ने घर-घर जाकर बहुत उत्साह के साथ माल की बिक्री करने में भाग लिया। मेहता जी महाराज ने सतसंगियों को यथा आवश्यक सलाह व निर्देश दिए। बचध फरमाने के स्थान पर वे हर व्यक्ति तथा समुदाय को निर्धनता और संभावित विपत्तियों से बचने का रास्ता बता रहे थे। सतसंगियों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने कई उपाय किए जैसे अपने निजी खर्चे से कॉलोनी के विद्यार्थीयों लड़के व लड़कियों को मुफ्त दूध दिए जाने का प्रबंध किया। जब सन् 1942 में 5 वर्ष की अवधि से पहले ही इंडस्ट्रियल प्रोग्राम पूरा हो गया, साहबजी महाराज के बड़े भाई श्री द्वारकादास जी को इंडस्ट्रीज का डायरेक्टर नियुक्त किया गया। सभा के आग्रह पर मेहताजी महाराज ने सभा के "आर्थिक सलाहकार के रूप में आर्थिक विषयों पर प्रदर्शन करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। और तब सभा ने औद्योगिक व वाणिज्यिक क्षेत्र में कार्य करना छोड़ दिया । बहुत सी सरकारी और प्राइवेट लिमिटेड कंपनीज इस कार्य के लिए गठित की गई । कई धर्मार्थ समितियों स्थापित की गई ताकि धर्मार्थ कार्यकलापो जैसे चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने को गति प्रदान कर सकें। महिलाओं के सामाजिक उत्थान के लिए कदम उठाए गए। सन 1938 में महिला एसोसिएशन का गठन हुआ और विवाह में होने वाले व्यय को नियंत्रित करने, सरल तथा सुधार करने के लिए एक मैरिज पंचायत का गठन किया गया।**
[07/02, 14:52] +91 92346 58709: 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *【परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज ,गुरुचरन दास मेहता जी महाराज :-20 दिसंबर 1885- 17 फरवरी 1975-】:- राधास्वामी सत्संग के छठे संत सतगुरु मेहताजी महाराज, गुरुचरन दास माता जी महाराज का जन्म बटाला में एक सम्मानित पंजाबी परिवार में 20 दिसंबर 1885 को हुआ था। उनके पिता श्री आत्माराम मेहता साहब थे। मेहताजी महाराज बचपन से ही असाधारण मेधावी थे । लड़कपन से ही उन्होंने पढ़ाई में कड़ी मेहनत की और कुछ उच्च श्रेणियां प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से बी.ए. की परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। थामसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग रुड़की से सिविल इंजीनियर की परीक्षा पास की जिसमें उनको सर्वोत्तम इंजीनियरिंग डिजाइन व सर्वेइंग और ड्राइंग में पदक मिले। उन्होने पंजाब पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में कार्य प्रारंभ किया और सेवा निवृत्ति तक उत्तरोतर उन्नति प्राप्त करते हुए चीफ इंजीनियर और शासन के सचिव पद को प्राप्त किया।। 13 वर्ष की उम्र में हुजूर महाराज अपने पिता जी के साथ हुजूर महाज के सत्संग में पीपलमंडी आये थे। हुजूर महाराज ने उनका नाम पूछा और नाम हरचरन दास बताये जाने पर उन्होंने उसे बदल कर गुरु चरन दास रख दिया । सन 1905 में इलाहाबाद में एक नाटक के प्रदर्शन के बाद महाराज साहब जी ने मेहताजी महाराज के पिता से कहा मैं उनसे बहुत प्रसन्न हूँ। सन 1914 में जब साहबजी महाराज सोलन में रूके हुए थे तब उन्होने हुजूर मेहताजी को "मंजूर-ए- नजर " कहा था। सन 1920 में जब साहबजी महाराज हरदा मध्य प्रदेश में बहुत बीमार हो गए थे तब उन्होंने फरमाया था कि गुरुचरन दास मेरे बाद सत्संग का मार्गदर्शन करेंगे।। 24 जून 1937 को साहबजी महाराज के निज धाम पधारने पर उनके उत्तराधिकारी के विषय में कोई भी संदेह नहीं था। एक वर्ष पहले से ही ऐसे बहुत से संकेत मिलने के अतिरिक्त कई सतसंगियों को अनुभव प्राप्त हुए जिसको उन्होने दूसरों को भी बताया। पंडित मनीराम शास्त्री ने स्वपन में हुजूर साहबजी महाराज को देखा और उनसे साहबजी जी महाराज ने कहा कि वह अब हुजूर मेहताजी साहब के रूप में मौजूद है। तिमरनी में एक दिन जब सत्संगी सुबह का सतसंग शुरू कर रहे थे तो प्रत्येक सतसंगी ने देखा कि हुजूर साहबजी जी महाराज की फोटोग्राफ के बजाय मेहताजी महाराज कुर्सी पर विराजमान है। 28 अगस्त सन 1937 को साहबजी महाराज के भंडारे के अवसर पर साहबजी महाराज के स्थान पर मेहताजी महाराज को सभा का प्रेसिडेंट चुना। 17 अप्रैल 1938 को मेहताजी महाराज ने दया करके सतसंग हाल में फरमाया " सतसंगी भाई व बहने यह जानकर अत्यंत प्रसन्न होगें कि राधास्वामी दयाल की दया और मेहर इस समय बडे जोर से बह.रही है और समस्त संगत पर उनकी दया का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है क्योंकि इस समय जो काम हाथ में लिया जाता है उसमें सफलता प्राप्त होती है। इस वास्ते सत्संगी भाई और बहनों को अपनी कमर कस कर मैदान में आ जाना चाहिए और सेवा बलिदान के लिए तत्पर रहना चाहिए**
प्रस्तुति - संत रीना अम्मी शरण
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