राधास्वामी।
(15/02, 08:29) +91 78707 84148: 💥💥💥💥
*नोट-आज सुबह का सतसंग 3:05 पर शुरू हुआ और लॉग इन 3:07 पर शुरु हुआ। और ग्रैशस हुजूर कोठी से 3:18 पर रवाना हुए।*
*अत:हम सभी सतसंगी भाई बहनों को सतसंग के समय से लगभग आधा-पौना घंटा पहले अपने को तैयार रखना चाहिये।*
*हम सब ये दोहा याद रक्खें "जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है वो पावत है"*
*राधास्वामी*
[15/02, 08:29] +91 78707 84148: *सतसंग के उपदेश*
भाग-2
*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*
बचन (15)
*नाम का असली सुमिरन।*
*‘जिन्ही नाम ध्याइया, गए मुशक्क़त घाल।*
*नानक ते मुख उज्जले, केती छूटे नाल।।’*
*श्री गुरु ग्रन्थ साहब में गुरु नानक साहब की ऊपर लिखी कड़ी आती है। इसके मानी हैं कि जो लोग नाम को ध्याते हैं उनकी मुशक़्क़त यानी जन्म मरण की तकलीफ़ का ख़ातमा हो जाता है,उनके चेहरे उज्जवल यानी रोशन हो जाते हैं और कितने ही उनके संग जन्म मरण से छूट जाते हैं। गुरू साहब का यह बचन सुनहरे अक्षरों में लिखने लायक़ है क्योंकि जिस अमल के लिये इस बचन में उपदेश फ़र्माया गया है वह सन्तमत का बुनयादी उसूल है और कई एक दूसरे मतों की जान है।* इसी उसूल पर कारबन्द रहते हुए सिक्ख, हिन्दू, मुसलमान व ईसाई वग़ैरह असहाब रोज़ाना अपने अपने इष्टदेव के पवित्र नाम का जप करते हैं या अपने मज़हब के पवित्र ग्रन्थों का पाठ करते हैं मगर अफ़सोस के साथ लिखना पड़ता है कि नाम के ध्यान यानी सुमिरन करने की असली युक्ति से अक्सर भाई क़तई नावाक़िफ़ हैं। ये बेचारे अपनी जानिब से हर तरह की कोशिश करते हैं यानी सबेरे उठकर स्नान करते हैं या हाथ मुँह धोते हैं, माला या तसबीह से हज़ार या लाख बार जप करते हैं या बाक़ायदा मुतबर्रिक पुस्तकों का समझ समझ कर पाठ करते हैं- और ऐसा करने से उनको बहुत कुछ तक़वियत व शान्ति भी प्राप्त होती है- मगर चूँकि इनमें से कोई भी नाम के ध्याने की असली तरकीब नहीं है इसलिये वे इस अमल के असली नफ़े से महरूम रहते हैं। शेख़ फ़रीदुद्द्दीन अत्तार फ़र्माते हैं-
‘यादे हक़ आमद ग़िज़ा ईं रूह रा।
मरहम आमद ईं दिले मजरूह रा।।
मोमिना ज़िक्रे ख़ुदा बिसयार गोय।
ता बयाबी दर दो आलम आबरूय।।
ज़िक्र बर सह वजह वाशद बेख़िलाफ़।
तू नदानी ईं सख़ुन रा अज़ गज़ाफ़।।
आम रा न बुवद बजुज़ ज़िक्रे ज़बाँ।
ज़िक्रे ख़ासाँ बाशद अज़ दिल बेगुमाँ।।
ज़िक्र ख़ासुल्ख़ास ज़िक्रे सिर्र बुवद।
हरकि ज़ाकिर नीस्त ओ ख़ासिर शवद।।”
यानी “मालिक के नाम का सुमिरन रूह की ख़ुराक है और जख़्मी दिल के लिये मरहम का काम देता है। ऐ प्रेमी जन! मालिक का सुमिरन ख़ूब कर ताकि दोनों आलम में तेरी इज़्ज़त हो। सुमिरन के तीन तरीक़े हैं लेकिन तू हँसी समझता है और इसलिये इस भेद से नावाक़िफ़ है। आम लोग सिर्फ़ ज़बान से सुमिरन करते हैं। यह पहिला तरीक़ा है, लेकिन ख़ास ख़ास लोग बिलाशुबह दिल से सुमिरन करते हैं यह दूसरा तरीक़ा है, मगर ख़ासुल्ख़ास यानी बिरले प्रेमी गुप्त तरीक़े से सुमिरन करते हैं, यह तीसरा तरीक़ा है। जो कोई सुमिरन नहीं करता वह नुक़्सान उठाता है।”
राधास्वामी
प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
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