Sunday, February 23, 2020

मिश्रित महत्वपूर्ण बचनांश प्रसंग






प्रस्तुति - उषा रानी /
  राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
** परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-


रोजनामचा वाकियात-13 जुलाई 1932-
बुद्धवार:-

 आज खान बहादुर अख्तर आदिल साहब मिलने के लिये तशरीफ लाये। आप बडे नेकदिल व मिलनसार है। आपसे मिलकर तबीयत को अत्यधिक सुख हासिल होता है। मैने जिक्र किया कि अखबारों से मालूम हुआ कि पिछले दिनों मेरी गैर हाजिरी में मौलाना शौकत अली साहब आगरा आये थे। मौलाना मोहम्द अली साहब ने दयालबाग देखने के लिये ख्वाहिश जाहिर की थी।बेहतर होता कि उनकी ख्वाहिश मौलाना शौकत अली साहब पूरी कर देते । मिस्टर हुई सुपरीटेंडिंग इंजीनियर, व मिस्टर पूरन चंद एग्जीक्यूटिव इंजनीयर पव्लिक हैल्थ डिपार्टमेंट भी तशरीफ लाये। मालूम हुआ कि दयालबाग की नालियों की स्कीम अब करीबन तैयार है। कुल व्यय डेढ लाख से ऊपर होगा। लेकिन एक मर्तबा खर्च कर देने के बाद तमाम बस्ती को मक्खियों मच्छरों से कतई छुटकारा हासिल हो जायेगा और सब घरों में फ्लश सिसटम कायम हो जायेगा। जो लोग पश्चिम के ढंग सीखना व अपनाना पसंद करते है उन्हे खर्च की ज्यादा परवाह नही करनी चाहिए। मरगिब के ढंग अगर विस्तृत पैमाने पर अख्तियार किये जावें तो अलबत्ता व्यय कम पडता है। इसलिये शुरु में डेढ लाख का व्यय ज्यादा मालूम पडता है लेकिन आयंदा चलकर यानी दयालबाग कॉलोनी के बढ जाने पर इस इंतजाम की कद्र मालूम होगी।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-सतसंग के उपदेश-भाग 2-(27)-【मनुष्य शरीर सिर्फ हाड, माँस व चाम का ढेर नही है।】:- संतमत की तालीम का एक बुनियादी उसूल यह है कि मनुष्य-शरीर निहायत अमूल्य है, इसकी पूरी कदर करनी चाहिए। इस शरीर को सिर्फ संसार के विषय भोगने व औलाद पैदा करने में सर्फ करना परले दर्जे की अभाग्यता है। इस शरीर के अंदर ऐसा इन्तिजाम है कि अगर मनुष्य कोशिश करे तो देवता, हँस और परमहँस गति को प्राप्त हो सकता है। किसी सिद्ध पुरुष की सेवा में हाजिर रहकर यह भेद बखूबी समझ में आ सकता है। जैसे लौकिक रहस्यों के समझने व सीखने के लिये काबिल उस्ताद की शागिर्दी जरुरी है ऐसे ही इस रहस्य के समझने व सीखने के लिये सच्चे सतगुरु की शागिर्दगी लाजिमी है।। बाज लोग कहते है कि देखने में मनुष्यशरीर हड्डियों व चमडे का ढेर ही तो है मगर ऐसी दृष्टि रखने वाले पुरूषों के लिये मनुष्म जीवन सिर्फ वासनाओं व इच्छाओं में बर्तने का जरिया है। गम्भीर दृष्टि वाले पुरुष जानते है कि हड्डियों और चमडे को जान देने वाला जौहर, जिसे सुरत या आत्मा कहते है, इस रचना में बहुमूल्य जौहर है। इस जिस्म के सूराखों या रौजनों की मार्फत मनुष्य रचना के पदार्थों व कुदरत की शक्तियों से मेल कर सकता है और जिस्म के अंदर कायम गुप्त चक्रों या कमलों के जगा लेने पर इसके अंदर उँचे घाट की शक्तियाँ जाग जाती है, यहाँ तक कि आत्मा व सच्चे कुल मालिक का साक्षात्कार होकर जन्म मरण का खात्मा और अमर आनंद व अविनाशी सुख की प्राप्ति हो जाती है इसलिये संतमत तालीम देता है कि ऐसा अमूल्य शरीर पाकर उसे वृथा खोना नहीं चाहिये।क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[21/02, 07:10] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- संत महात्मा अनेक रीति से समझाते हैं और तरह-तरह के डर नरको और 84 के दिखलाते हैं और अमर सुख और आनंद का, जो संतों के निज देश में प्राप्त होगा, भेद और जुगत उसकी प्राप्ति की बताते हैं। और किसी कदर यह मन भी अपने बर्ताव की परख करके मालूम कर लेता है कि फलां बात में उसका नुकसान है या फायदा, फिर भी झोका नुकसान ही की तरफ खाता है और फायदे के काम की सुध नहीं लाता है। ऐसा जो मन है उसकी तरफ से परमार्थी को खूब होशियार रहना चाहिए और चाहिए कि सच्चे मालिक राधास्वामी और सतगुरु की दया बल लेकर सत्संग खूब होशियारी के साथ करें और सुरत शब्द के अभ्यास को बराबर शौक के साथ जारी रखें, तो आहिस्ता आहिस्ता कोई अर्से में मुमकिन है कि मन दुरुस्त हो जावेगा। सिवाय इसके और कोई जतन मन की दुरुस्ती का नहीं है।। जवानी में मन की तरंगों का जोर का रोकना अलबत्ता किसी कदर कठिन है, पर अधेड़ अवस्था और जबकि बुढापे की अवस्था शुरू होती है मन और इंद्रियों का भोग विलास की तरफ से रोकना बहुत कठिन है। पर जो सच्चा शौकीन और अनुरागी है तो राधास्वामी दयाल की दया से उसका यह काम जवानी में भी किसी कदर आसानी के साथ बन सकता है, जो उसको सतगुरु का संग भाग से मिल जाए।। सच तो यह है कि हर एक जीव पर फर्ज है कि मन की सँभाल जिस कदर हो सके जरूर करें। वाजिबी और मुनासिब तौर पर तो उसका बर्ताव दुरुस्त है पर किसी बात में ज्यादती नहीं होनी चाहिए, नहीं तो परमार्थ की कार्रवाई और तरक्की में खलल पड़ेगा तो जो काम की थोड़े दिन में बन सकता है उसको बहुत अरसा लगेगा। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[21/02, 13:53] +91 94162 65214: *मालिक को प्यार*

अगर हम वाकई सच्चे दिल से मालिक को प्यार करना चाहते है तो दुनियॉ के तानो और निन्दाओं की चिन्ता क्यों ? हमें किसी भी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए । हमें फर्क नहीं पडना चाहिए कि कोई हमारी तारिफ करें या बुराई । फर्क सिर्फ इतना पडना चाहिए कि क्या हम अपने मालिक की रजा में रहने की कोशिश कर रहें है या नहीं । क्या हम मालिक को उसके हिस्से का समय दे भी रहे है या नहीं.
Radhasoami all of you
[21/02, 15:14] +91 94162 65214: *राधास्वामी!! 21-02-2020-आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) सुन सुन महिमा गुरु प्यारे की। हुई मैं दरस दिवानी रे।। (प्रेमबानी-3,शब्द-4,पे.न.178) (2) स्वामी मेहर बिचार बचन धीरज अस बोले। सुनहु भेद अब सार कहत हूँ तुमसे खोले।। एक जतन यह होय चढे वह तरवर ऊपर। या फल नीचे आय पडे तरवर से गिर कर।। (प्रेमबिलास-शब्द -72,पे.न.99) (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-कल से आगे:- 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
[21/02, 15:14] +91 94162 65214: **राधास्वामी!! 21-02- 2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 64 ) कहने के लिए राधास्वामी मत का उपदेश तीन फिकरों में हो सकता है यानी (1) ऐ मनुष्य ! तेरे अंदर असली जोहर तेरी सुरत या रुह है, (2) तेरी सुरत सच्चे मालिक का अंश है और (3) तू अब कोशिश करके सुरतरूप हो जा । लेकिन इस उपदेश पर अमल करने के लिए सच्चे भेदी गुरु की और खुद सुरतरूप बनने की सच्ची इच्छा की जरूरत है । इसलिए जिनको सच्चे सतगुरु मिल गए या जिनके हृदय में सुरतरूप होने की सच्ची इच्छा मौजूद है वही इस मत से लाभ उठा सकते हैं । जो लोग अपनी वर्तमान दशा में प्रसन्न हैं उनके लिए राधास्वामी मत का उपदेश बेसुध है । न वे सतगुरु की खोज करेंगे, ना उन्हें सतगुरु मिलेंगे और ना ही उनसे सुरतरुप होने का साधन बन पड़ेगा।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।**
[21/02, 15:18] +91 70373 83505: एक संत के पास 30 सेवक रहते थे । एक सेवक ने गुरुजी के आगे अरदास की महाराजजी 🙏🏻 मेरी बहन की शादी है तो आज एक महीना रह गया है तो मैं दस दिन के लिए वहां जाऊंगा. कृपा करें. आप भी साथ चले तो अच्छी बात है. गुरुजी ने कहा बेटा देखो टाइम बताएगा. नहीं तो तेरे को तो हम जानें ही देंगे उस सेवक ने बीच-बीच में इशारा गुरुजी की तरफ किया कि गुरुजी मुझे कुछ की जरुरत हैं, और आखिर वह दिन नजदीक आ गया सेवक ने कहा गुरुजी कल सुबह जाऊंगा मैं गुरुजी ने कहा ठीक है बेटा.

सुबह हो गई जब सेवक जाने लगा *तो गुरुजी ने उसे 5 किलो अनार दिए और कहा ले जा बेटा भगवान तेरी बहन की शादी खूब धूमधाम से करें दुनिया याद करें कि ऐसी शादी तो हमने कभी देखी ही नहीं* और साथ में दो सेवक भेज दिये जाओ तुम शादी पूरी करके आ जाना, जब सेवक घर से निकले 100 किलोमीटर गए तो उसके मन में आया जिसकी बहन की शादी थी वह दुसरे सेवक से बोला गुरुजी को पता ही था कि मेरी बहन की शादी है और हमारे पास कुछ भी नहीं है फिर भी गुरुजी ने मेरी मदद नहीं की, दो-तीन दिन के बाद वह अपने घर पहुंच गया. उसका घर राजस्थान रेतीली इलाके में था वहां कोई फसल नहीं होती थी. वहां के राजा की लड़की बीमार हो गई तो वैद्यजी ने बताया कि इस लड़की को अनार के साथ यह दवाई दी जाएगी तो यह लड़की ठीक हो जाएगी. *राजा ने मुनादी करवा दी थी अगर किसी के पास आनार है तो राजा उसे बहुत ही इनाम देंगे.* इधर मुनादी वाले ने आवाज लगाई *अगर किसी के पास आनार है तो जल्दी आ जाओ, राजा को अनारों की सख्त जरूरत है, जब यह आवाज उन सेवकों के कानों में पड़ी तो वह सेवक उस मुनादी वाले के पास गए और कहा कि हमारे पास आनार है, चलो राजा जी के पास,* राजाजी को अनार दिए गए अनार का जूस निकाला गया और लड़की को दवाई दी गई तो लड़की ठीक-ठाक हो गई. *राजा ने पूछा तुम कहां से आए हो, तो उसने सारी हकीकत बता दी तो राजा ने कहा ठीक है तुम्हारी बहन की शादी मैं करूंगा, राजा जी ने हुकुम दिया ऐसी शादी होनी चाहिए कि लोग यह कहे कि यह राजा की लड़की की शादी है सब बारातियों को सोने चांदी गहने के उपहार दिए गए बरात की सेवा बहुत अच्छी हुई लड़की को बहुत सारा धन दिया गया. लड़की के मां-बाप को बहुत ही जमीन जायदाद व आलीशान मकान और बहुत सारे रुपए पैसे दिए गए, लड़की भी राजी खुशी विदा होकर चली गई, अब सेवक सोच रहे हैं कि गुरु की महिमा गुरु ही जाने. हम ना जाने क्या-क्या सोच रहे थे गुरुजी के बारे में, और गुरुजी के वचन थे जा बेटा तेरी बहन की शादी ऐसी होगी कि दुनियां देखेगी.*

*_गुरु के वचन हमेशा सच होते हैं...❗_*

*_शिक्षा......_*
*गुरु के वचन के अंदर ताकत होती है लेकिन हम नहीं समझते जो भी वह वचन निकालते हैं वह सिद्ध हो जाता है, हमें गुरुदेव के वचनों के ऊपर अमल करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए ना जाने गुरु कब क्या दे दे और रंक से राजा बना दे...❗*
[21/02, 21:52] +91 91792 77541: *मालिक की भक्ति भी एक चुम्बक की तरह होती है,*

जैसे लोहे को जब चुम्बक अपनी ओर खिंचता है तो लोहा उस पर चिपक जाता है,
उसी प्रकार मालिक की भक्ति भी चुम्बक की तरह ही है, जो अपनी ओर खिंचती है और वो भी अपने भक्तों को चिपका लेती है।

*मालिक की भक्ति करोगे तो हमेशा सुखी रहोगे* और
मालिक की भक्ति करना छोड़ दी तो समझो की *जीवन भर पछताना पड़ेगा* और मालिक के गुनहगार बनकर सारा जीवन अंधकार में बिताना पड़ेगा।

इसलिये हमको
*निरंतर मालिक की "भक्ति" व "सेवा" में लगे रहना चाहिए।*

🙏🙏🙏राधास्वामी🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[21/02, 21:52] +91 91792 77541: 👉 *राधास्वामी दयाल की भक्ति*👈
👇
मालिक की भक्ति का *रस* उतना ही *मीठा* होता है, जितना हम
सतसंग मे *सुमिरन ध्यान सच्चे मन से और चित्त लगाकर करते है।*

*राधास्वामी नाम का सुमिरन* और उनकी *युक्ति का अभ्यास* हमे
नित नियम से और लगातार सुबह और शाम करना चाहिए,

*हमे मालिक की भक्ति के अलावा और किसी की भक्ति नही करनी चाहिए।*

🙏🌹🙏 *राधास्वामी*🙏🌹🙏
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *।।दयालबाग एवं सतसंग संस्कृति ।।*
*(28) 1943 की एक सुबह हुजूर मेहताजी महाराज अपने साथ कुछ दर्जन आदमियों को लेकर झाड़ियों से भरे ऊंची नीची जमीन के हिस्से पर तशरीफ़ ले गये। वे अपने साथ फावडे ले गये और मैदान को साफ करना व समतल करना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे खेत में काम करने वाले सत्संगियों की संख्या बढ़ गई और यह सुबह के सत्संग के बाद का रोजाना का कार्यक्रम हो गया। ऊँचे भू- स्थलों से मिट्टी को खींचकर लाने के लिए पाटे बनाए गए और सख्त व उबड खाबड दिखाई देने वाले खेत समतल होने लगे। तथा शाम को हर तरह का काम करने वाले सत्संगी इस सेवा में जाने लगे। जाडे की ठंडी सुबह में, गर्मी की तपती दोपहर में और बारिश के मौसम में हुजूर मेहताजी महाराज काम करने वालों को निर्देश देने और उत्साहित करने हेतु दया कर स्वयं वहाँ मौजूद रहते थे। समतल किये गये खेत जोते गए। उनमें विभिन्न फसलों के बीज बोए गए और माइनर नहर और ट्यूबवेल से सींचे गये। करते करते समय कुछ समय में 1250 एकड का एक कृषि फार्म बनकर तैयार हो गया और क्विंटलों अनाज, दालें तिलहन, मूँगफली, गन्न र सब्जियों आदि की फसल पैदा होने लगी ।"अधिक अन्न उपजाओ" योजना के अंतर्गत दशको तक लगातार श्रम के परिणामस्वरूप दयालबाग अपनी जरुरत भर खदानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया था। इस रैती और ऊसर भूमि को हरे भरे खेतों में बदलना किसी चमत्कार से कम नहीं था। (29) 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दयालबाग और उसके आसपास के क्षेत्रों के नागरिकों की देखभाल के लिए दयालबाग में टाउन एरिया कमेटी की स्थापना एक प्रभावशाली कदम था। 1995 मे टाउध एरिया नगर पंचायत बन गई जो एक छोटी म्यूनिसिपल (नगर पालिका )है (30) 1961 में राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह एक प्रमुख घटना थी। समारोह लगभग 1 सप्ताह तक चला और हुजूर मेहताजी महाराज ने दया कर बसंत पंचमी के दिन सुबह संदेश दिया इसका हिंदी में अनुवाद परिशिष्ट 2 में प्रकाशित।। (31) भारत और भारत के बाहर के अंग्रेजी जानने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी संख्या में सत्संग की पोथियों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और प्रकाशित किया गया। हुजूर मेहताजी महाराज ने दया कर अधिकांश पवित्र पोथियाँ के अनुवाद करने का दुरुह कार्य स्वयं सरंजाम दिया जिसके परिणाम स्वरूप अब बड़ी संख्या में अंग्रेजी में पोथियां उपलब्ध है । (32) सितंबर 1937 में विद्यार्थियों को मुफ्त दूध वितरण की योजना शुरू की गई ।बाद में उनके शिक्षण शुल्क की अदायगी , मुफ्त यूनिफार्म, स्वेटर और जूते आदि महय्या करनें एवं उनकी स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रबंध किये गये।। (33) इस दौरान निर्माण कार्यों के अंतर्गत विद्युत नगर , और कार्यवीर नगर मोहल्लों का विस्तार हुआ, व लेदर गुड्स फैक्ट्री की इमारत, इंजीनियरिंग कॉलेज, उसकी प्रयोगशाला सहित एक भवन का निर्माण कार्य हुआ तथा लड़कों के लिए छात्रावास में स्थान बढ़ाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(34) 2 जनवरी 1956 को पंडित जवाहरलाल नेहरू दयालबाग आये और हुजूर मेहताजी महाराज ने उनका स्वागत करते हुए फरमाया-...... "दयालबाग आगरा शहर से दूर गाँव की तरह शांत है, साथ ही यहाँ शहरों की तरह पूर्ण स्वच्छता व सफाई का प्रबंध है। यहाँ विद्यार्थी, वैज्ञानिक व साधक एकांत में शांति पूर्वक अपना-अपना कार्य करते है और बेरोजगारों, कृषक व श्रमिक जीविका कमाने का अवसर पाते है। न यहाँ दौलत बहती है और न यहाँ कोई भूखा रहता है, न यहाँ बडे महल व कोठियाँ है, न टूटी-फूटी झोपडियाँ। न यहाँ कोई महान या बडा है न छोटा या अकिंचन। अगर यहाँ किसी का दूसरे से अधिक आदर होता है तो उसी का जो दूसरों से बढकर औऋ बेहतर काम करता है। दयालबाग सभी निवासियों का है लेकिन किसी भी निवासी का यहाँ किसी भी प्रकार का कोई मालिकाना अधिकार नही है।।" यह एक प्रकार से दयालबाग के सामाजिक आदर्शों का सार है।। (35) 1937 से 1975 का समय सतसंग के संगीकरण consolidation का समय था। इंडस्ट्री के विस्तार और कृषि द्वारा संगत में एक मौन क्रांति आई, साथ ही सदस्यों के आध्यात्मिक विकास को कायम रखते हुए बहुत समय से आवश्यक समझे जा रहे सामाजिक व सांस्कृतिक सुधार किये गये।। (36) सतसंग की शानदार प्रगति हुई। सतसंगियों की संख्या निरंतर बढती रही। 1975 तक विदेश की 5 शाखाओं को मिलाकर सभा से सम्बद्ध 578 ब्राँचें थी तथा 10 प्रांतीय एसोसिएशंस जिनमें 3 विदेश की भी सम्मलित थी, बनाई गई। रीजनल तथा ब्राँच स्तर पर पुनर्गठन का कार्य किया गया।। (37) हुजूर मेहताजी महाराज के द्वाप दयालबाग के विभिन्न कार्यों की प्रगति जिस रफ्तार से शिक्षा, उद्योग, कृषि और सतसंगियों के कल्याण के क्षेत्रों में हुई थी वह रफ्तार 1975 से अब तक उसी वेग से जारी है। दयालबाग की शिक्षा निती का एक प्रलेख 1977 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार को भेजा गया। इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का शारिरीक, बौद्धिक, भावात्मक तथा नैतिक एकीकरण करके उसे एक पूर्ण मानव के रुप में.विकसित करना था। एजुकेशन पॉलिसी का मूल-पाठ परिशिष्ट 3 में प्रकाशित है। इन शिक्षा निति के अनुसार एक नई तरह की शिक्षा पद्धति का निर्धारण करके उसके तत्वों को संस्थाओं में जारी किया गया। इस.शिक्षा पद्धति ने देश भर के शिक्षाविदों का ध्यान तत्काल आकार्षित किया और तबसे यह कई अन्य संस्थाओं द्वारा अपनाई गई है। नवीन शिक्षा पद्दति की पुनः संरचना करने और उसे अपनाने में पूरी तरह सक्षम डी.ई.आई. को केंद्र सरकार ने 1981 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्रदान किया। यह दयालबाग में.शिक्षा कु प्रगति तथा पूज्य आचार्यों के आदेशों के पालन की दिशा में विकास का एक महत्वपूर्ण कदम था। 1986 में टेक्निकल कॉलेज और 1995 में प्रेम विद्यालय को इसकी छत्रछाया में लाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(38) 1977 मे स्कूल ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर की स्थापना की गई।। (39) सतसंगी परिवारों के बालक एवं बालिकाओं में सहयोग पूर्वक मिलजुल कर रहने की आदत डालने तधा उन्हे राधास्वामी मत की शिक्षाओं एवं नैतिक मूल्यों से पूर्व रुप से अवगत कराने के उद्देश्य से 1983 में ग्रीष्मकालीन स्कूलों (Summer Schools) का कार्यक्रम जारी किया गया। रीजनल एसोसिएशनस से इन स्कूलों का आयोजन करने को कहा गया।। (40) एक अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्य था सतसंग कॉलोनी की स्थापना करना। ये कॉलोनीज दयालबाग का एक लघु रुप होती है जो सतसंगियों को उनकै धार्मिक कार्यों के लिये सही वातावरण मुहय्या करती है तथा सतसंगियों व उनके साथियो के फायदे के वास्ते सामाजिक और आर्थिक गतिविधियाँ क्रियान्वित करने में सहूलियत भी प्रदान करती है। कॉलोनीज के निर्माण की शुरुआत रुडकी से हुई जो 1978-79 में बन कर तैयार हुई।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(41) एक अन्य महत्वपूर्ण कदम इंडस्ट्रियल उत्पादन का विकेन्द्रीकरण रहा जिसका देश के विभिन्न भागों में कुटीर उद्योगों या लघु उद्योग के रुप में सगंठन किया गया है। इस प्रकार की 107 इकाइयाँ (दिसंबर 2001 तक) आजकल विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ जैसे अनेक डिजाइनों व रंगो मे सूती वस्त्र, होजरी का सामान, साबुन तेल, बुने कपडे, डिटरजेंट, चमडे का सामान, आयुर्वेदिक दवाइयां तधा अन्य उपभोक्ता वस्तुएं बना रहु है। इस समय 146 नियमित सटोर्स और 4 स्टोर ऐजेन्सीज है जो सम्पूर्ण देव में फैले हुए है और जो इकाइयों द्वारा निर्मित माल को उपल्बध कराते है इसके अतिरिक्त समय-समय पर इध उत्पादनों कु विभिन्न ब्राँचों और जिलों में प्रदर्शनियाँ लगाई जाती है जिनमें विभिन्न इकाइयों कै द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जाता है।। (42) इन सभी उपर्युक्त गतिविधियों में युवाओं और युवतियों को पूर्णतय: शामिल करने का प्रयास किया गया है। समाज के सेवा कार्यों जैसे भंडारे के मौके पर बाहर से आने वाले सतसंगियों की देख-भाल स्वचछता और नागरिक निर्माण-कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के उद्देश्य से विशिष्ट समूह बनाये गये है। उन्हे सतसंग की कार्यवाही में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित किया गया है. अधिकतर ब्राँचों में सामान्यत:विद्यार्थियों एवं छोटे बच्चो की पाठ पार्टियां है।। (43) सतसंगियों की बहुत सी महिला एसोसिएशंस बन गई है जो अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ जैसे तैयारशुदा वस्त्र, मसाले, अचार आदि तैयार करके उन्हे बिना लाभ-हानि के आधार पर उपल्बध कराती है।**
[24/02, 12:14] +91 94162 65214: जब परमात्मा अपनी
रज़ा से कुछ देता है
तो वो हमारी सोच से
परे होता है

हमे हमेशा उसकी रज़ा
में ही रहना चाहिए
क्या पता मालिक हमे
पूरा समुन्द्र देना चाहता हो

और हम हाथ में चम्मच
लेकर खड़े हो।

प्रभु की रज़ा मे ही मजा है।

*🌹🙏🙏🌹*🙏🌹🙏👍

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