Tuesday, March 17, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग





प्रस्तुति - संत शरण /
रीना शरण / अमी शरण


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजानावाकियात-8अगस्त 1932-सोमवार:-

तेलुगु की किताब में यह वाक्य पढा"मूढू अनागा तेलवी लेनी वाडु" इस वाक्य के मानी यह है मूढ यानी "बेकल आदमी " अर्थात हिंदी की तरह तेलुगू जबान में भी मूढ के मानी बेअक्ल आदमी है। वैसे इस लफ्ज के असली मानी "मोह में फंसा हुआ" है । लेकिन जब इंसान किसी वस्तु के मोह में गिरफ्तार हो जाता है तो उसके अक्ल फौरन गायब हो जाती है।

उस वस्तु के हासिल करने या उसके नजदीक पहुंचने के लिए उसे हर एक तरीका उचित और उपयुक्त मालूम होता है । जो शख्स या बात उसके और उसकी वांछित वस्तु के दरमियान दूरी कायम करें उसे बुरी मालूम होती है ।अपने तन, मन, धन ,इज्जत, आबरू, परमार्थ स्वार्थ का नुकसान उसे तुच्छ मालूम होता है ।

नतीजा यह  होता है कि धीरे-धीरे वह इंसान लट्टू की तरह मोहित करने वाली वस्तु के केंद्र पर घूमता रहता है और दीन व दुनिया से लापरवाह हो जाता है। उसके दिमाग के किवाड़ बंद हो जाते हैं और उसकी अक्ल का चिराग हो जाता है और लत्फ यह है कि उसे इन विषयों की तनिक भी खबर नहीं होती। इसलिए वह बेअक्ल कहलाता है और जब ठोकर लगकर उसे होश आता है तो अपनी बीती हुई कारोबारियों को बेअक्ली की पैदावार तस्लीम करता है।

 यह बातें जबरदस्त मोह में पड़कर जागृत होने से पूरु पूरी समझ में आ सकती है। "प्रेमी लागो रे सत्संग में मोह की नींद बिसार"

क्रमश:🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **

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*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 सत्संग के उपदेश- भाग दो-

कल से आगे

 :-शुरू में अपनेतई आद्दी बनाने के लिए समय का मुकर्रर करना जरूरी है और नीज दुनियावी कामकाज के झमेलो और मन की कमजोरियों से बचने के लिए हमेशा मुकर्ररा वक्तों पर अभ्यास में बैठना मुफीद है लेकिन साथही यह भी याद रखना चाहिए कि वह सच्चा मालिक, जिसकी पूजा की जाती है, किसी वक्त गाफिल नहीं होता और ना ही किसी वक्त खास वक्त अपने भक्तों की तरफ खासतौर पर मुखातिब होता है। उसका दरवाजा 24 घंटे खुला रहता है और वह हर वक्त दया व बक्शीश करने के लिए तैयार रहता है। समय नीयत करने की जरूरत हमारी अपनी कमजोरियों की वजह से पैदा होती है न कि सच्चे मालिक के समयविभाग के कारण।  इस बयान से जाहिर है कि अगर कोई शख्स दिन रात में सिर्फ एक मरतबा मालिक की याद में हो और अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लें तो वह शख्स उन लोगों से, जो दिन में 5-7 मर्तबा नमाज पढ़ते हैं लेकिन अपनी तवज्जुह पर काबू नहीं रख सकते, हजार दर्जे नफे में है । लेकिन अगर यह लोग 5-7 मर्तबा की नमाज में हरबार या अक्सर अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ लेते हैं तो ये नफा में है ।


क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज-
 प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:

- दूसरे दर्जे का धुन्यात्मक नाम ओंकार है । इस दर्जे में निर्मल चैतन्य और निर्मल माया की मिलोनी है ।इसी को अनहद शब्द और मूल नाद कहां है। इसी से हिंदुओं के सूक्ष्म वेद की धुन, कि जो लिखने में नहीं आ सकती है, प्रगट हुई और इसे में से 3 लोक के रचना का मसाला निकला और इही को ओंकार पुरुष कहते हैं । इस नाम का वेद मत की महाप्रलय और संतों की प्रलय में नाश हो जाता है। पर सत्तपुरुष और राधास्वामी नाम हमेशा कायम रहते हैं। वहां किसी दर्दे की प्रलय या महाप्रलय का असर नहीं पहुंच सकता ।।             रचना के तीसरे दर्जे में भी, जहां के निर्मल चैतन्य और मलीन माया की मिलौनी है , धुन्यात्मक नाम है। पर यह नाम सुरत या निर्जीव चैतन्य की जिसको विराट स्वरूप कहते हैं, और मन के नाम है। और संतमत में इनका अभ्यास नहीं कराया जाता , क्योंकि सुरत की बैठक छठे चक्कर में है जोकि तीसरे दर्जे का सिर या चोटि है और उसके ऊपर से संतों का अभ्यास शुरू होता है । ओंकार पुरुष को गुरु और सतनाम सत्पुरुष को सतगुरु और राधास्वामी को कुल मालिक कहते हैं।

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**





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