Tuesday, February 23, 2021

सतसंग RS सुबह DB 24/02


 **राधास्वामी!! 24-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-      

                                                                             

(1) सुरत तू कौन कुमति उरझानी।।टेक।। मन के साथ फिरे भरमानी। गुरु की सुने न बानी।।-(जम की घात बचा ले प्यारी। राधास्वामी कहत बखानी।।)

 (सारबचन-शब्द-11-पृ.सं.271,272)                                                          

 (2) आज गुरु आये जग तारन। अहा हा हा ओहो हो हो।।रूप उन धारा मन भावन। अहा हा हा ओहो हो हो।।-(गाऊँ क्या महिमा राधास्वामी। कोई उन गति नहीं जानी।। दया का वार नहिं पारन। अहा हा हा ओहो हो हो।।)

(प्रेमबानी-2-शब्द-10-पृ.सं.411,412)                                               

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल से आगे:-

 आपको यह ख्याल रखना चाहिए कि आप लोग यहाँ तालीम हासिल करने आये हैं इसलिए अपनी तालीम की तरफ खास तवज्जह देनी चाहिए। जो मजमून या सबक आप दिन में पढे,  शाम को उसे दोहरा लें और दूसरे रोज के लिए सबक पर पहले एक नजर डाल लें जिससे कि दूसरे दिन जब वह सबक आपको पढ़ाया जाय तो क्लास में उसे आप अच्छी तरह समझ लें। इस तरह से आपको हर बात में अपने पाँव पर खड़े होने की कोशिश करनी चाहिए।

 मिसाल के तौर पर जो भी काम आपके अध्यापक आपको घर पर करने को दें, आपको चाहिए कि अव्वल खुद बिना किसी की मदद के उसे करने की कोशिश करें। अगर कोई बात आपकी समझ में न आवे आप दोस्तों , सहपाठियों और अध्यापकों की मदद ले सकते हैं। अगर आप इस ढंग से चलेंगे तो आपकी व आपके अध्यापकों की मेहनत सफल होगी ।

 अभी एक गैर सत्संगी नये विद्यार्थी ने कहा था कि दयालबाग के कायदे व पाबंदियाँ विद्यार्थियों के हित के लिए ही बनाई गई हैं। अगर आपका भी ऐसा ही ख्याल है तो आपको उनकी पाबंदी पूरी तौर पर करनी चाहिए। आपको अपने खान-पान का प्रोग्राम एक हफ्ता पहले से ही बना लेना चाहिए। वैसे दयालबाग की मिठाइयाँ अच्छी व स्वादिष्ट होती है, लेकिन मेरी राय में मिठाइयों के मुकाबले में ताजे फलों और डेरी के ताजे दूध का इस्तेमाल बेहतर होगा।

 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

 कल से आगे

:- प्रसंग जारी रखते हुए श्रीकृष्ण जी ने फरमाया- जो शख्स फल का ख्याल छोड़कर और धर्म का कर्तव्य समझकर कर्म करता है वही सच्चा सन्यासी और सच्चा योगी है न कि वह सिर्फ हवन, यज्ञ वगैरह क्रियायें छोड़ बैठा है।

हे अर्जुन! सन्यास और योग तो बातें नहीं है क्योंकि संकल्प अर्थात् फल का ख्याल छोड़े बगैर कोई योगी नहीं बन सकता । जब कोई मुनी योग-गति की प्राप्ति के लिए कोशिश करता है तो उसके लिये कर्म साधन होता है और जब उसको योग-गति प्राप्त हो जाती है तो उसके लिए स्थिरता  साधन होता है।

 योग गति की प्राप्ति से मतलब यह है कि सब तरह के संकल्प  मिट कर मुनि के दिल में सरकारी सामान और कर्मों के लिए मोहब्बत न रहे । उसे चाहिये कि आत्मबल से अपने मन को ऊँचा चढ़ावे और नीचे गिरने न दे और ख्याल रक्खें कि मन हमारा दोस्त भी है, दुश्मन भी है l

【5】 क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूल महाराज

- प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:-

 संतो ने कहा है कि:-                                                                       

सुरत शब्द बिन जो गुरु होई । ताको छोड़ो पाप कटा ।।                                             

 ★ दोहा ★                                               

  ओछे गुरु की टेक को, तजत न कीजै बार। द्वार न पावै शब्द का,भटके बारम्बार।।                                               

  गुरु मिला है हद का, बेहद का गुरु और। बेहद का गुरु जब मिले, तब लगे ठिकाना ठौर।।                                                            

गुरु सोई जो शब्द सनेही।  शब्द बिना दूसर नहिं सेई।।                                                

 शब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की हो जा धूरा।।                                                 

और पहिचान करो मत कोई । लच्छ अलच्छ  ना देखो सोई।।                                        

 शब्द भेद लेकर तुम उनसे। शब्द कमाओ तुम तन मन से।।                                             

अब जो कोई ऐसी टेक बाँधते हैं कि एक गुरु करके दूसरा नहीं करना चाहते, उनको जानना चाहिए कि उनके मन में परमार्थ की चाह बिल्कुल नहीं है, नहीं तो वह परख कर गुरु धारण करते या जो गुरु पुरानी रस्म के मुआफिक उन दिनों में, कि जब परमार्थ का खोज और शौक नहीं था, कर लिया था, तो फिर सच्चा और पूरा गुरू खोज कर धारण करते।

लेकिन संत अथवा राधास्वामी मत का उपदेश संसारी और टेकी जीवो के वास्ते नहीं है, सिर्फ उन लोगों के वास्ते हैं कि जिनको अपनी और दुनिया की हालत देखकर सच्ची बिरह और ख्वाहिश अपने जीव के कल्याण के हृदय में पैदा हुई है।

 ऐसों की शांति सिवाय सच्चे और पूरे कोई दूसरा नहीं कर सकता है, और इन्हीं जीवो को पूरे गूरु की कदर और पहचान भी आवेगी।

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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