Sunday, February 14, 2021

सतसंग सुबह 14/02

 **राधास्वामी!! 14-02-2021-(रविवार) आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                             

(1) सुरतिया सिमट गई। गुरु दर्शन दृष्टी जोड़।।s

-(राधास्वामी दयाल दया की भारी। आप घटाया काल का ज़ोर।।)

(प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.108,109)                                                          

 (2) सतगुरु मेरे पियारे। धुर धर से चल के आये।

सुपने में दर्श देकर। चरनन लिया लगाये।।-(अद्भुत बनी यह आरत। कल मल गई सfब आफत। निज धाम की तैयारी। सूरत रही कराये।।) (प्रेमबिलास-शब्द-6-पृ.सं.7)                  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!! 14-02-2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे-( 155)-

भगवद्गीता के छठे अध्याय के अंत में आया है कि अर्जुन ने प्रश्न किया-" महाराज! यह तो बतलावें कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसको अपने ऊपर अधिकार प्राप्त नहीं हुआ किंतु उसे श्रद्धा पूरी है और उसका मन योग से भाग गया और उसे सिद्धि प्राप्त नहीं हुई तो उस बेचारे की क्या गति होगी? 

वह गरीब न दीन का रहा न दुनियाँ का। क्या वह बेचारा ब्रह्मप्राप्ति के  रास्ते से भरमाया जाकर, फटे बादल की तरह नष्ट हो जाता है ?"

इसके उत्तर में श्री कृष्ण जी ने फरमाया-" हे अर्जुन! ऐसा मनुष्य न इस लोक में नाश को प्राप्त होता है, न परलोक में । जो कल्याण के लिए यत्न करता है वह कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। पुण्य कर्म करने वालों के लोक को प्राप्त होकर और वहाँ (असंख्य वर्षों तक विश्राम करने के अनन्तर योगभ्रष्ट पुरुष )इस संसार में किसी पवित्र और उच्च कुल में जन्म पाता है।

और यह भी संभव है कि उसे किसी बुद्धिमान योगी के ही कुल में जन्म मिल जाय, यद्यपि ऐसा जन्म मिलना अत्यंत दुर्लभ है। जन्म धारण करने पर उसमें पिछले जन्म के बुद्धि- संबंध अर्थात स्वभाव फिर से प्रकट हो जाते हैं और उनके फुर आने पर योगसिद्धि के लिए फिर यत्न आरंभ कर देता है और पुराने अभ्यास के कारण उसकी चाल अपने आप उस और चलने लगती है।

अजी! ऐसे लोगों का तो कहना ही क्या है, वे लोग तक, जो केवल योग के जिज्ञासु हैं, शब्दब्रह्म अर्थात् वेदों की हद से परे की गति प्राप्त करते हैं। किंतु वह योगी, जो पहले जन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, तवज्जुह के साथ साधन करके, पापों की मैल से रहित होकर कुछ जन्मों में सिद्ध बनकर परम गति को प्राप्त होता है।•••••••••••

 इसलिए हे अर्जुन! तुम भी योगी बनो। और योगियों में जो श्रद्धा से पूर्ण है और अपनी आत्मा मुझमें जोड़कर मेरी उपासना करता है वह मेरे मत में सिद्ध पुरुष है"।       

                                                  क्या

 कृष्ण महाराज ने भी यह वचन स्वार्थ- सिद्धि ही के लिए फरमाया था? उनके शरणागत योगी के लिए भी तो दूसरे जन्म में आकर शिकायत करने का अवसर नहीं है? 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...