Saturday, February 27, 2021

अपने आप को खुद परखे



कृष्ण मेहता: *


दूसरों के चश्मे से खुद को मत देखो


 उनकी नजरें धुंधली भी हो सकती हैं क्योंकि खुद को खुद से बेहतर कोई और समझ ही नहीं सकता,भगवान का डर और दुनियाँ की शर्म,यह दो वो चीजें हैं जो इंसान को इंसान बनाए रखती हैं इस खोज में मत उलझें कि भगवान हैं या नहीं,खोज यह रखें कि हम खुद इन्सान हैं या नहीं,हजारों रिश्तों को तराशा बस नतीजा एक ही निकला कि जरूरत ही सब कुछ है रिश्ते कुछ भी नहीं सच्चे प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती,प्रेम बस वही होता है जहाँ कोई आशा नहीं होती,वज़न तो सिर्फ हमारी इच्छाओं का ही होता है बाकि ज़िन्दगी तो बिलकुल हलकी फुलकी होती है चाय हो या चाह रंग एकदम पक्का होना चाहिए फिक्र हो या ज़िक्र रिश्तों में अपनापन होना चाहिए जीवन में हीरा परखने वाले से पीड़ा परखने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण होता है*                                   

                

 दर्शन की लालसा


एक बार राधाजी के मन में कृष्ण दर्शन की बड़ी लालसा थी, ये सोचकर महलन की अटारी पर चढ गई और खिडकी से बाहर देखने लगी कि tशायद श्यामसुन्दर यही से आज गईया लेकर निकले.अब हमारी प्यारी जू के ह्रदय में कोई बात आये और लाला उसे पूरा न करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता.


जब राधा रानी जी के मन के भाव श्याम सुन्दर ने जाने तो आज उन्होंने सोचा क्या क्यों न साकरीखोर से (जो कि लाडली जी के महलन से होकर जाता है)होते हुए जाए,अब यहाँ महलन की अटारी पे लाडली जी खड़ी थी.तब उनकी मईया कीर्ति रानी उनके पास आई.

और बोली -अरी राधा बेटी! देख अब तु बड़ी है गई है, कल को दूसरे घर ब्याह के जायेगी, तो सासरे वारे काह कहेगे, जा लाली से तो कछु नाय बने है, बेटी कुछ नहीं तो दही बिलोना तो सीख ले, अब लाडली जी ने जब सुना तो अब अटारी से उतरकर दही बिलोने बैठ गई.पर चित्त तो प्यारे में लगा है.

लाडली जी खाली मथानी चला रही है,घड़े में दही नहीं है इस बात का उन्हें ध्यान ही नहीं है,बस बिलोती जा रही है.उधर श्याम सुन्दर नख से शिख तक राधारानी के इस रूप का दर्शन कर रहे है,बिल्वमंगल जी ने इस झाकी का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है.

लाला गईया चराके लौट तो आये है पर लाला भी प्यारी जू के ध्यान में खोये हुए है और उनका मुखकमल पके हुए बेर के समान पीला हो गया है.पीला इसलिए हो गया है क्योकि राधा रानी गोरी है और उनके श्रीअंग की कांति सुवर्ण के समान है इसलिए उनका ध्यान करते-करते लाला का मुख भी उनके ही समान पीला हो गया है.


इधर जब एक सखी ने देखा कि राधा जी ऐसे दही बिलो रही है तो वह झट कीर्ति मईया के पास गई और बोली मईया जरा देखो, राधा बिना दही के माखन निकाल रही है, अब कीर्ति जी ने जैसे ही देखा तो क्या देखती है, श्रीजी का वैभव देखो, मटकी के ऊपर माखन प्रकट है.सच है लाडली जी क्या नहीं कर सकती,उनके के लिए फिर बिना दही के माखन निकलना कौन सी बड़ी बात है.

इधर लाला भी खोये हुए है नन्द बाबा बोले लाला - जाकर गईया को दुह लो. अब लाला पैर बांधने की रस्सी लेकर गौ शाला की ओर चले है, गईया के पास तो नहीं गए वृषभ (सांड)के पास जाकर उसके पैर बांध दिए और दोहनी लगाकर दूध दुहने लगे.

अब बाबा ने जब देखा तो बाबा का तो वात्सल्य भाव है बाबा बोले - देखो मेरो लाला कितनो भोरो है, इत्ते दिना गईया चराते है गए, पर जा कू इत्तो भी नाय पता है, कि गौ को दुहो जात है कि वृषभ को, मेरो लाल बडो भोरो है.

और जो बाबा ने पास आकर देखा तो दोहनी दूध से लबालब भरी है बाबा देखते ही रह गए,सच है हमारे लाला क्या नहीं कर सकते,वे चाहे गईया तो गईया, वृषभ को भी दुह सकते है



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