Wednesday, February 24, 2021

सतसंग RS शाम 24/2

 **राधास्वामी!! 24-02-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

  (1) सुरतिया हरष रही। निरखत गुरु चरन बिलास।।-(अधर चढत सुन २ धुन अक्षर। सुन में हंसन संग बिलास।। ) (प्रेमबानी-4-शब्द-12-पृ.सं.115,116)                                                     

 (2) शेरो सखुन का गाना कोई हमसे सीख जाय। कहता हूँ एक तराना कोई हमसे सीख जाय।। आँखो की पुतली खींच कर कस कर कमान को। नावक का फिर चलाना कोई हमसे सीख जाय।।-(सोहबत का राधास्वामी की गर शौक हो गया। उनकी जुगत कमाना कोई हमसे सीख जाय।।) (प्रेमबिलास-शब्द-10-पृ.सं.14)                               

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे।।                                                  

   सतसंग में पढा गया बचन। कल से आगे :-(162 )


-इस भूमिका के अनंतर पहले प्रश्न का उत्तर देना सहज हो जाता है। उत्तर यह है कि यह संसार उस सच्चे कुलमालिक ने बनाया और यह उस मसाले या जौहर से बना है जो सृष्टि की उत्पत्ति के आरंभ होने से पूर्व मालिक के भीतर गुप्त था।।                              

(163)- प्रश्न 2 और 3 का उत्तर यह है कि मौज गुण है। मौज का अर्थ वास्तव में लहर है किन्तु यह ध्यान रहे कि यहाँ साधारण जल या समुद्र की लहर से अभिप्राय नहीं है। यहाँ अभिप्राय चेतन शक्ति के भंडार कुलमालिक के भीतर क्षोभ से है।  संतमत में और हिंदू- शास्त्रों में इसी क्षोभ को 'ईक्षण'( सोचना, ख्याल करना)  कहा गया है।

 देखिए ऐतरेय उपनिषद के पहले अध्याय के पहले खंड के आरम्भ में आया है- ओं आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीत। स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति।  ।१।                                                                   

अर्थात् आरंभ में (सृष्टि से पहले) निःसन्देह यह (सब) आत्मा था केवल एक, और कुछ भी आँख झपकता हुआ (जीवंत जागृत) न था। उसने सोचा " मैं लोको को रचूँ"?

(पृष्ठ 71, अनुवाद पंडित राजाराम, प्रोफेसर डी.ए.वी. कॉलेज का  मुद्रित सन् 1906)

उन्मुनि किसी पदार्थ का नाम नहीं है।  उन्मुनि उस अवस्था या दशा का नाम है जिसका ऊपर सविस्तार वर्णन हुआ। जैसे समुंद्र की लहर उठकर समुंद्र  के भीतर छिपी हुई सीप, घोंघे, मूंगे, मछलियाँ आदि वस्तुओं को तट पर फेंक देती है ऐसे ही रचना के आरंभ में चेतनता के अपार सिंधु सच्चे कुलमालिक में एक लहर उठी जिसने उसके अंदर से रचना के वर्तमान सब सामान का मसाला प्रकट किया।

 मनुषीय अनुभव बतलाता है कि बिना क्रिया के कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।  इसलिए रचना से पहले हैरत रुप अवस्था में परिवर्तन होने के लिये कोई क्रिया होनी चाहिए । और जोकि मालिक के अतिरिक्त और कुछ चेतन न था इसलिए सृष्टि के आरंभ में स्वयं उसके भीतर लहर उठी।

यह चेतन लहर थी। इसमें रचना प्रकट करने की इच्छा और रचना करने की शक्ति दोनों विद्यमान थीं।  इस लहर के उठते ही उस चेतन सिंधु के भीतर से रचना की आदिम सामग्री प्रकट हो गई। यदि यह उत्तर पर्याप्त न हो तो सत्यार्थ़- प्रकाश का सातवाँ समुल्लास अवलोकन करें ।

तेरहवें हिंदी एडिशन के पृष्ठ 197 पर लिखा है - "जो परमेश्वर निष्क्रिय होता तो जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, न कर सकता इसलिए वह विभु तथापि चेतन होने से उसमें क्रिया भी है"।

      🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु जी साहबजी महाराज!


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