Sunday, February 14, 2021

सुख की मोह माया"*

 *"सुख की मोह माया"*


एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम हो चुकी थी इसलिए अंधेरे में उसे कुआं दिखाई नहीं पड़ा और वह उसमें गिर गया।


गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे झांका तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी क्यूंकि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं; और जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे।


इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। आदमी घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा!


उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता लगा था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी।


उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूंद में गजब की मिठास थी। 


कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया।


तभी उस जंगल से शिवजी एवं पार्वती अपने वाहन से गुजरे। माँ पार्वती ने उसकी दयनीय स्थिति को देखकर भगवान शिव से उसे बचाने का अनुरोध किया।


भगवान शिव ने उसके पास जाकर कहा-"मैं तुम्हें बचाऊंगा, मेरा हाथ पकड़ लो"। उस इंसान ने कहा कि "एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूं।"


एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार।


आखिर थक-हारकर शिवजी चले गए। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं की उस इंसान का क्या हाल हुआ होगा।  


ठीक ऐसा ही हाल हमारा भी है, 


वह आदमी जिस जंगल में जा रहा था, वह जंगल है संसार और अंधेरा है अज्ञान - पेड़ की डाली है - आयु, जिसे दिन-रात रूपी चूहे कुतर रहे हैं। घमंड का मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। शहद की बूंदें सांसारिक सुख हैं, जिनके कारण मनुष्य संकट को भी अनदेखा कर देता है, और उन संकटो से निकलने वाले रास्तों की ओर से भी मुंह फेर लेता है।  


*अतः सुख की मोह माया में फंसे व्यक्ति को परमात्मा भी नहीं बचा सकते..!!*


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  *🌻अंत समयके बोल*🌻


*एक सज्जन ने तोता पाल रखा था और उस से बहुत स्नेह करते थे, एक दिन एक बिल्ली उस तोते पर झपटी और तोता उठा कर ले गई वो सज्जन रोने लगे तो लोगो ने कहा: प्रभु आप क्यों रोते हो? हम आपको दूसरा तोता ला देते हैं वो सज्जन बोले: मैं तोते के दूर जाने पर नही रो रहा हूं।*

*पूछा गया: फिर क्यों रो रहे हो?*


*कहने लगे: दरअसल बात ये है कि मैंने उस तोते को रामायण की चौपाइयां सिखा रखी थी वो सारा दिन चौपाइयां बोलता रहता था आज जब बिल्ली उस पर झपटी तो वो चौपाइयाँ भूल गया और टें टें करने लगा। अब मुझे ये फिक्र खाए जा रही है कि रामायण तो मैं भी पढ़ता हूँ लेकिन जब यमराज मुझ पर झपटेगा, न मालूम मेरी जिव्हा से रामायण की चौपाइयाँ निकलेंगी या तोते की तरह टें टें निकलेगी।*


*इसीलिए महापुरुष कहते हैं कि विचार-विचार कर तत्त्वज्ञान और प्रभु ध्यान इतना पक्का कर लो कि हर समय, हर जगह भगवान के सिवाय और कुछ दिखाई न दे, हर समय जिव्हा पर "प्रभु सुमिरन" चलता रहे। अन्तिम समय ऐसा न हो हम भी तोते की तरह भगवान के नाम की जगह हाय-हाय करने लगें..!!*


ओमशान्ति!

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