Saturday, February 20, 2021

मनसुख बाबा / कृष्ण मेहता

 *वृन्दावन में एक संत हुए मनसुखा बाबा*

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वो सदा चलते फिरते ठाकुर जी की लीलाओं में खोये रहते थे ।ठाकुर की सखा भाव से सेवा करते थे।


सब संतो के प्रिय थे इसलिए जहां जाते वहा प्रसाद की व्यवस्था हो जाती। और बाकी समय नाम जप और लीला चिंतन करते रहते थे।


एक दिन उनके जांघ पे फोड़ा हो गया असहनीय पीड़ा हो रही थी। बहोत उपचार के बाद भी कोई आराम नहीं मिला।


 तो एक व्यक्ति ने उस फोड़े का नमूना लेके आगरा के किसी अच्छे अस्पताल में भेज दिया।

वहां के डॉक्टर ने बताया की इस फोड़े में तो कैंसर बन गया है 


तुरंत इलाज़ करना पड़ेगा नहीं तो बाबा का बचना मुश्किल है।

जैसे ही ये बात बाबा को पता चली की उनको आगरा लेके जा रहे हैं


 तो बाबा लगेे रोने और बोले हमहूँ कहीं नहीं जानो हम ब्रज से बहार जाके नहीं मरना चाहते।


हमें यहीं छोड़ दो अपने यार के पास हम जियेंगे तो अपने यार के पास और मरेंगे तो अपने यार की गोद में। हमें नहीं करवानो इलाज़।


और बाबा नहीं गए इलाज़ करवाने। बाबा चले गए बरसाने। बहोत असहनीय पीड़ा हो रही थी। उस रात बाबा दर्द से कराह रहे थे।


इत्ते में क्या देखते हैं वृषभानु दुलारी श्री किशोरी जू अपनी अष्ट सखियों के साथ आ रही हैं।


और बाबा के समीप आके ललिता सखी से बोली अरे ललिते जे तो मनसुखा बाबा हैं ना।


तो ललिता जी बोली हाँ श्री जी ये मनसुखा बाबा हैं और डॉक्टर ने बताया की इनको कैंसर है देखो कितना दर्द से कराह रहे हैं।


परम दयालु करुनामई सरकार श्री लाडली जी से उनका दर्द सहा नहीं गया और बोली ललिता बाबा को कोई कैंसर नहीं हैं ।ये तो एक दम स्वस्थ हैं।


जब बाबा इस लीला से बहार आये तो उन्होंने देखा की उनका दर्द एक दम समाप्त हो गया।

 और जांघ पर यहाँ तक की किसी फोड़े का निशान भी नहीं रहा। देखो कैसी करुनामई सरकार हैं श्री लाडली जी हमारी।

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