Saturday, May 8, 2021

सतसंग शाम 08/05

 **राधास्वामी!! 08-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                         

(1) मन चंचल चहुँ दिस धाय। सखी मैं नहिं जाने दूँगी।।-(बिन राधास्वामी नाम। और कुछ नहिं गाने दूँगी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.73,74-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-62)                                                               

(2) भूल भरम जग में अति भारी। सतसँग महिमा कोई न बिचारी।। हुई प्रतीति उमँग हिये जागी। हुरत हुई चरनन अनुरागी।।-(जगत आस अब सभी बिसारूँ। राधास्वामी नाय हियै बिच धारूँ।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-17-पृ.सं. 25,26)                                                              

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।                                                                     

  सतसंड के बाद:-                                                

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                   

 (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो.हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                                

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!!                                           

  08- 05- 2021-आज शाम सत्संग पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 225)- '

सूरत' शब्द 'स्व' (= अपने में) और 'रत' ( = मग्न) के मेल से बना है । प्रेमी और प्रीतम शब्दों को लेकर जो निन्द्य परिणाम निकालने की चेष्टा की जाती है वह घृणास्पद है ।भक्ति- मार्ग में साधारणतया इष्ट या भगवंत को प्रीतम आदि शब्दों से स्मरण किया जाता है। किंतु प्रीतम से तात्पर्य यहाँ सच्चा भगवंत है और भगवद् भक्ति को तो आज तक किसी ने भी बुरा नहीं कहा।                                          

 (226)- कान आँख बंद करके जो शब्द सुनाई देते हैं वे असली चेतन शब्द नहीं है। पर सुनिये तो, यदि राधास्वामी-मत में इन शब्दों ही का सुनना सुरत -शब्द -योग माना जाता है तो 'सुरत' का अर्थ पति-पत्नी की क्रिया क्यों मुख से निकाला जाता है ? यदि वास्तव में राधास्वामी मत का अभ्यास वही कुछ होता जो आप वर्णन करते हैं तो आपके आक्षेप से उचित और युक्तिसंगत होते। किंतु  किसी मर्म या रहस्य से नितांत अनभिज्ञ रहते हुए इसके विरूद्ध मुँह खोलना केवल दूसरों के हृदय को दुःखित करना है।                         

  ( 227)- राधास्वामी नाम की श्रेष्ठता के विषय में ऊपर के प्रश्न के उत्तर में संकेत कर दिया गया है। सविस्तर उत्तर के लिए इस पुस्तक का पहला भाग देखें अथवा 'अमृतबचन' पुस्तक का दूसरा भाग पढें। वर्तमान समय में आपके या किसी और के चित्त में राधास्वामी नाम के विरुद्ध आक्षेपो को का उत्पन्न होना कोई नई बात नहीं है। राधास्वामी दयाल का एक बचन है कि संतों का उपदेश वर्षा के समान होता है । जैसे वर्षा होने से जिस स्थान में जो कुछ दबा होता है प्रकट हो जाता है, ऐसे ही संतों का उपदेश सुन कर जो कुछ किसी के हृदय में छिपा रहता है, प्रकट हो जाता है ।

क्रमशः                               

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                         

  यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा -

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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