Saturday, May 22, 2021

सतसंग DB -RS शाम 22/05

 *राधास्वामी!!22-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     

 (1) कोई जतन बताओ। मेरे उठत कलेजे झाल री।।टेक।।प्रीतम पीर सतावत निस दिन। खटकत रहे ज्यों भाल री।।-(प्रीतम मेरे राधास्वामी दाता। कीजे आप सँभाल री।।)

 (प्रेमबिलास-शब्द-40-पृ.सं.52,53-

डेढगाँव ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-45)                                                          

(2) सजनी चेतो री। क्यों खोये जनम बरबाद।।-(राधास्वामी धाम अजब गत। वोहि सब का निज आदि।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-26-पृ.सं.38)                                   

 (3) यथार्थ-प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।                                                 

  सतसंग के बाद:-                                               

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                       

(3)बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)         

 मौज से पढा गया पाठ:-                              

   चुनर मेरी मैली भई। अब का पै जाऊँ धुलान।।

-(राधास्वामी धुबिया भारी। प्रगटे आय जहान।।)

 सारबचन-शब्द-6-पृ.सं.550,551)                                                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 22-05-2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन -

कल से आगे:-(6)-

सारांश यह है की सत्संगी कुलमालिक और कुलमालिक की भक्ति, धर्म और धर्म के पथदर्शकों,आध्यात्मिक शिक्षा और आध्यात्मिक साधन तथा शुभ कर्मों में श्रद्धा रखता है। वह हर धर्म के अनुयायियों के विचारों और भावों का आदर करता है । और जोकि उसे जीवन लाभदायक बनाने का ढंग तथा शुभ और अशुभ का विवेक प्राप्त है इसलिए:-                                                        

 ( क)- वह सृष्टि में सबसे अधिक महत्व जीवित गुरु को देता है। और गुरु से उसका अभिप्राय ऐसे महापुरुष से है जिसे सच्चे परमार्थ का लक्ष्य-पद प्राप्त है अर्थात् जिसकी आत्मा कुलमालिक से एक हो गई है।।                                                                

(ख)- वह बिना समझे कोई बात चित्त में बसाने के लिए तैयार नहीं है।                                                                                           

(ग)- वह किसी ऐसे व्यक्ति के वचन या उपदेश को, जो उसपर आचरण नहीं करता, महत्व देने के लिए तैयार नहीं है।।                                 

( घ)- वह किसी ऐसे कार्यशैली को, जो प्रकट-रूप से मनुष्य को कुलमालिक की भक्ति से हटाने वाली और संसार के खेल-कूद में फँसाने वाली है, ग्रहण करने के लिए उद्यत नहीं है।                                        

(च)- वह दूसरों के मुआमलों में दखल देना नापसंद करता है और अपना सारा समय, अपनी सारी शक्ति, अपना तन-मन-धन लाभदायक और विशेषकर आध्यात्मिक उन्नति के कामों में लगाना चाहता है।                                                               

(छ)- उसका हृदय अपने भगवंत अर्थात कुलमालिक के प्रेम से परिपूर्ण रहता है और वह भगवंत से सच्चे मिलाप की अभिलाषा को दूसरी सब इच्छाओं से बढ़कर समझता है। उसने भगवंत के चरणों का मिलाप अपने जीवन का लक्ष्य निश्चित कर लिया है। और वह इस लक्ष्य का किसी दशा में परित्याग करने के लिए उद्यत नहीं हो सकता । और जोकि आध्यात्मिक उन्नति इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक और सहकारी है इसलिए उस पर इतना मोहित है।। 

क्रमशः                                                          

 🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻   

                                      

  यथार्थ का भाग तीसरा

 परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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