Saturday, May 15, 2021

सतसंग DB सुबह 15/05

 **राधास्वामी!! 15-05-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                     

(1) जग भाव तजो प्यारी मन से। सतसँग में चित्त धरो री।।टेक।। सब करम धरम दुखदाई। इन सँग क्यों भरम बहो री।।- राधास्वामी सतगुरु प्यारे। उन चरनन जाय पडो री।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-6-पृ.सं.251-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-83)                                                      

 (2) भूल भरम हुई या जग में भारी। सुद्ध निज घर की तज डारी।। कहूँ क्या मन मेरा नाकार। चेत कर नहिं चलता गुरु लार।।-(भजन और सुमिरन नित बनि आय। रुप राधास्वामी नित्त घियाय।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-21-पृ.सं.33)                                                               

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग-3-कल से आगे!                                                             

  सतसंग के बाद:-                                           

    (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                             

(3)बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस) 

                                          

 स्पैशल सतसंग:- के. मोहित जी-   

                                    

गुरु प्यारे चरन मेरे प्रान अधार।।टेक।।                    

 क्या महिमा चरनन की गाऊँ। जीव पकड उध उतरें पार।।-(राधास्वामी दया चली अब घट में। सुन सुन धुन स्रुत हो गई सार।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.13-14)                                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 15-05-2021-

 आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे:

- यथार्थ- प्रकाश भाग तीसरा कल से आगे:-

 इतिहास बतलाता है की सदा से यह रीति चली आई है कि महापुरुषों ने अपनी शिक्षा का सर्व-साधारण में प्रचार करते समय खण्डन और मण्डन दोनों से काम लिया। क्योंकि उनकी हार्दिक इच्छा यह थी कि सर्व-साधारण अपने समय में प्रचलित दोषों से सचेत होकर उन से बचें और अभिमत लक्ष्य के सीधे मार्ग पर चलें। यह ठीक है कि उनके इस प्रकार के उचित और उपयुक्त खण्डन से प्रायः अनजान लोग अप्रसन्न हुए और उन्हें अपने धर्म का शत्रु समझने लगे।

 पर सच बात यह है के महापुरुषों का कभी यह उद्देश्य न था और न आगे कभी होगा कि व्यर्थ ही किसी के हृदय को चोट पहुँचावें। उनका अभिप्राय केवल उन असत् विचारों और कुत्सित आचारों के दोष और उनसे होने वाली हानियाँ दिखलाना होता है जो महापुरुषों की शिक्षा के नाम से धार्मिक संप्रदायों में प्रचलित हो जाते हैं।

 उनका आक्षेप किसी पुरुष के व्यक्तित्व या किसी महापुरुष के आचरण पर नहीं होता, किंतु धार्मिक संप्रदायों में वर्तमान आचारों और व्यवहारों पर होता है। और जो कि उन्हें भली भाँति मालूम होता है कि इस प्रकार का खंडन वास्तव में मनुष्य के मन के लिए नश्तर का काम देता है इसलिए - और जैसे शरीर में नश्तर लगने के बाद उसकी पीड़ा दूर करने और घाव भरने के लिए मरहम काम में लाया जाता है वैसे- वे भी अपने समय में प्रचलित दूषित विचारों और आचारों का खंडन करके सच्ची आध्यात्मिक शिक्षा के मरहम का प्रयोग करते हैं।

 पर इतिहास यह भी बतलाता है कि बहुत से अज्ञानी लोग महात्माओं के इन रहस्यों से अनजान रहते हुए दूसरे धर्मों के महापुरुषों का अपमान करना और उनकी पवित्र शिक्षा को तोड़ मरोड़ कर उसकी हँसी उड़ाना शुभ कार्य समझते लगते हैं।क्रमशः                                                                    

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️




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