Friday, May 14, 2021

RS सतसंग DB शाम 14/04

 **राधास्वामी!! 14-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) प्रीति सँग गहो गुरु सरना।।टेक।। या जग में कोई मीत न तेरा। सकल संग चित से तजना।।-(गुरु सतगुरु पद परस उमँग कर। राधास्वामी चरन सीस धरना।।)

 (प्रेमबानी-2-शब्द-31-पृ.सं.389

-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-49)                                                                

(2) भूल हुई या जग में भारी। सुद्ध निज घर की तज डारी।।-(काल का लो झकझोल बचाय। चरन में निस दिन सुरत समाय।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-21-पृ.सं.32)                                                             

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग-3           

                                                   

  सतसंग के बाद:-                                                 

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                     

 (**राधास्वामी!! 14-05-2021

-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-

 (1) प्रीति सँग गहो गुरु सरना।।टेक।। या जग में कोई मीत न तेरा। सकल संग चित से तजना।।-(गुरु सतगुरु पद परस उमँग कर। राधास्वामी चरन सीस धरना।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-31-पृ.सं.389-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-49) (2) भूल हुई या जग में भारी। सुद्ध निज घर की तज डारी।।-(काल का लो झकझोल बचाय। चरन में निस दिन सुरत समाय।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-21-पृ.सं.32) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग-3

 सतसंग के बाद:

- (1) राधास्वामी मूल नाम।।

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।

 (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)

 स्पैशल सतसंग-प्रे. भा. डा०विजय कुमार जी प्रेसीडेंट ऑफ राधास्वामी सतसंग सभा:-

 निज रुप पूरे सतगुरु का प्रेम मन मैं छा रहा।

बचन अमृत धार उनके सुन अमी में नहा रहा।

-(सुर्त ने जब धुन को पकडा। आस्माँ पर चढ गई। हो गई काबिल वहाँ पर फिर न कोई गम रहा।।)

(प्रेमबानी-3-गजल-3-पृ.सं.377-378) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                                   

स्पैशल सतसंग-प्रे. भा. डा०विजय कुमार जी प्रेसीडेंट ऑफ  राधास्वामी सतसंग सभा:-                            

 निज रुप पूरे सतगुरु का प्रेम मन मैं छा रहा।

बचन अमृत धार उनके सुन अमी में नहा रहा।-

(सुर्त ने जब धुन को पकडा। आस्माँ पर चढ गई। हो गई काबिल वहाँ पर फिर न कोई गम रहा।।)

(प्रेमबानी-3-गजल-3-पृ.सं.377-378)       

                                          🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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