Friday, May 21, 2021

सतसंग DB-RS शाम 21/05

 **राधास्वामी!! 21-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     

(1) समझ मोहि आई आज गुरु बात।।टेक।।

 निज घर है अति दूर ठिकाना। राह बिकट बल जोर न गात।।-(अलख अगम लख निज घर पाऊँ। राधास्वामी सतगुरु की निज दात।।) (प्रेमबिलास-शब्द-120-पृ.सं179,180

-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-74)                                                            

  (2) आज ही लो नर जन्म सम्हार। खोज गुरु धर चरनन में प्यार।।

सहज तब होवे जिव निस्तार। निरख ले घट में मोक्ष दुवार।।-(मेहर राधास्वामी ले कर संग। गाऐ गुरु आरत उमँग उमंग।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-25-पृ.सं.36,37)                                                               

 (3) यथार्थ-प्रकाश-भाग तीसरा-कल सेआगे।                                                                 सतसंग के बाद:-                                             

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                      

(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी -फ्राँस)                                             🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 21-05-2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 5)-

जोकि महापुरुषों की वाणी के पाठ को, इस कारण कि उससे अंतरी साधन में सहायता मिलती है, राधास्वामी-मत में विशेष महत्व दिया जाता है इसलिए स्वभावतः बहु-संख्यक सत्संगी लिखना पढ़ना जानते हैं और यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में ईसाई समुदाय को छोड़कर किसी भी धार्मिक समुदाय में इतनी प्रतिशत संख्या लिखे पढ़े लोगों की न मिलेगी। पर जोकि अंतरी साधनों में सफलता दिलाने के लिए सत्संगियों को आत्मनिग्रह का पाठ पढ़ाया जाता है, साथ ही उन्हें यह समझ आ जाती है कि लौकिक विद्याएँ और कलाएँ परमार्थ के लिए व्यर्ध है, इसलिए सहस्त्रो सत्संगी उच्च -शिक्षा प्राप्त होने पर भी अपनी विद्वत्ता के दिखावे से परहेज करते हैं, और ऊपरी दृष्टि वाले सज्जन असली बात से अनजान होने के कारण सत्संगियों पर आवाजे कसते हैं।

पर कोई कुछ ही कहे, सत्संगी अपने संकल्प का पक्का और विश्वास का सच्चा रहकर उन्नति के क्षेत्र में पग बढ़ाता है, और सिवाय इसके कि छिद्रान्वेषी जनों की दुर्भाग्यता पर जब तक खेद और सहानुभूति प्रकट करें, उनसे कोई संबंध नहीं रखता। यहाँ तक कि अत्यंत उत्तेजित किये जाने पर भी सिवाय दो एक शब्द मुख से निकालने के और कुछ नहीं करता। दृष्टांत के तौर पर ,जब कोई आक्षेपक सुरत- शब्द -योग का उपहास करता है तो उसे "अज्ञानी" जब कोई सतगुरु भक्ति का खंडन करता है तो उसे "कुटिल- मति" और जब कोई राधास्वामी दयाल की शान में अनुचित वाक्य प्रयुक्त करता है उसे "भाग्य-हीन" कह कर चुप हो जाता है ।  

क्रमशः                                                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                   


यथार्थ प्रकाश- भाग तीसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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