Saturday, May 8, 2021

DB सतसंग सुबह RS 09/05

 **राधास्वामी!! 09-05-2021-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                      

  (1) आरत गावे स्वामी दास तुम्हारा। प्रेम प्रीति का थाल सँवारा।।-(दया कऱ अब राधास्वामी।देव प्रसाद मोहि अन्तरजामी।।                                                      

 (2) गुरु प्यारे की लीला देख नई।।टेक।।-कोई दिन सतसंग करा के। शब्द का सहज उपदेश दई।।-(मैं गुन उनके कैसे गाऊँ। हार हार उन चरन पई।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-47-पृ.सं.42)                                                              

सतसंग के बाद:-                                                 

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                    

(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो ।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस!)          

विद्यार्थियों के सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                    

 (1) छबीले छबि लगे तोरी प्यारी।। (प्रेमबानी-2-शब्द- 1-पृ.सं.406)                                                         

(2) गगन में बाजत आज बधाई।। (प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.270)                                                               

(3) गुरु दयाल (मेरे दयाल) अब सुधि लेव मेरी। मँझधारा में पडी है नैया डुबन में नहिं देरी।।(प्रेमबिलास-शब्द-121-पृ. सं.177)                                                             

  (4) भाग जगे गुरु चरनन आई।राधास्वामी संगत सेवा पाई।(प्रेमबानी-2-शब्द-11-पृ.सं.14)                                                                   

 (5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरुँ या कि मेहनत करूँ। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलू कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक  न हो रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।                                                                              

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

भाग 1- कल से आगे:-( 82)

- गत सप्ताह सत्संग में 'सत्संग के उपदेश' भाग 1 से बचन नंबर 10 'भौरे से सबक' पढ़ा गया। हुज़ूर ने नीचे के अंश को दोबारा पढवाया -                                                                               हुजूर राधास्वामी दयाल ने हम लोगों के अंदर कमजोरी  मुलाहिजा फरमा कर और हम लोगों को मुनासिब रास्ता दिखलाने की गरज से संगत के दुनियवी इंतजाम के कठिन भाग को सत्संग के इंतजाम का हिस्सा बना लेना मंजूर फरमाया और दया करके अपनी जेरे निगरानी एक के बाद एक संस्था के जारी करने की मौज फरमाई।"                                 

इसमें आगे चलकर फरमाया गया है "अगर राधास्वामी मत आवाम के लिए है और एक दिन इसके दरवाजे सर्व साधारण के लिए खुलने हैं तो कम हिम्मती व पस्त- हौसलगी  से काम नहीं चलेगा।"                                       

हुज़ूर मेहताजी महाराज ने फरमाया- संभव है कि जब यह बचन लिखा गया हो तो उस समय की हालत पर घटता हो। परंतु यदि आप सतसंग की मौजूदा हालत को देखें तो आपको पता चलेगा कि यह बचन जैसा आजकल की सत्संग की हालत के मुताबिक है उतना कभी नहीं था । अभी आपने केवल एक करोड ही की स्कीम जारी की है परंतु न मालूम आगे चल कर यह काम कहाँ तक बढे और उनको अपने प्रबंध कहाँ तक और बड़े पैमाने पर बढ़ाने पड़े। इसलिए हमको चाहिए कि जो भी काम हम करें उसको बड़े पैमाने पर करें और अपने दिल में बड़े हौसले रक्खें।  आखिर यह काम किसी एक मनुष्य या संस्था का नहीं है बल्कि जो कुछ हो रहा है वह हुजूर राधास्वामी दयाल की मर्जी से हो रहा है। इसलिए सब काम उन्ही की शान के अनुकूल होने चाहिए।

🙏🏻राधास्वामी


**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज

-[भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-

जो यज्ञ फल की इच्छा छोड़कर और निज धर्म समझकर ठीक विधि से अर्थात् शास्त्रोक्त  विधान के अनुसार किया जाता है वह सत्त्वगुणी है और जो यज्ञ फल की इच्छा से और नाम वालों की गरज से किया जाता है वह रजोगुणी है और जो यज्ञ शास्त्रलोक विधि के विरुद्ध, अन्न दान रहित और बिना मंत्र व दक्षिणा के, ऊपरी दिली श्रद्धा के बगैर) से किया जाता है वह तामसी कहलाता है।

देवताओं, ब्राह्मणों, गुरुओ और ज्ञानियों की पूजा, पवित्रता, निष्कपटता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा यानी किसी को दुख न देना शारीरिक जाने शरीर के तप कहलाते हैं। नरम, सच्चे, मीठे और भलाई के बचन बोलना और शास्त्रों का पाठ करना वाक्मय  यानी वाणी के तप कहलाते हैं।

【15】                

 क्रमशः                                                        

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 2- कल से आगे:-[ विरोध का वर्णन] :-                                                                    

 (1) यह अंग अक्सर क्रोध या ईर्ष्या के पीछे पैदा होता है और कभी भरम करके भी मन में धंस जाता है और फिर बढ़ता चला जाता है। यह अंग भी दूसरे की तरफ से अंतर में जलन और गुस्सा पैदा करने वाला है और जब और जिस घट में यह अंग प्रगट होगा, भक्ति और दीनता और बिरहा और प्रेम को सिखा देगा।                                                      

 (2)- यह संसारी जीवों का हाल है कि जिस किसी से किसी बात पर नाराज हो जावें तो उसके विरोधी हो जावें, पर सच्चे परमार्थी जीवो को हुक्म है कि जहाँ तक मुनासिब होवे औरों के कसूरों को माफ करें और उनकी बुराई और बुरी आदत को याद न लावें यानी अपने मन में धसने न देवे, क्योंकि इसमें उनके परमार्थ का नुकसान है ।                                                                   

(3) सच्चे मालिक को यह अंग, जैसे ईर्ष्या और विरोध और क्रोध वगैरह, निहायत नापसंद है और जिस घट में इनका स्थान है, वहाँ उसका प्रकाश प्रगट नहीं हो सकता। सच्चा मालिक दीनता और प्रेम को पसंद करता है।

और सच्चे परमार्थी को चाहिए कि अंतर में अपने इन्हीं अंगो का जहाँ तक बने बर्ताव रक्खें और ईर्षा और विरोध और क्रोध को न आने देवे, लेकिन बाहर बंदोबस्त के वास्ते और खास कर संसारी लोगों से व्यवहार और बरताव के वास्ते, जैसा जहाँ मुनासिब होवे, जाहिरी तौर पर बर्ताव करें।

पर अपने मन में किसी से असली विरोध या ईर्ष्या को ठहरने न देवे और जिस कदर जल्दी हो सके इन खयालों को हटाकर सफाई कर लेवे , ताकि अभ्यास और सत्संग में बहुत विघ्न न डालने पावें। क्रमशः                           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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