Monday, May 17, 2021

सतसंग DB सुबह 18/05

राधास्वामी!! 18-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                            

   (1) घामर घूमर करूँ आरती। स्वामी हुए दयाल जी।।-(ख़फा होव तो रूसूँ नाहीं। चरन तुम्हारे पकड रहूँगी।।)

(सारबचन-शब्द-14-पृ.सं.551,552-

टिमरनी ब्राँच-56)          

                                             

 (2) गुरु प्यारे सिखावें भक्ति रीत।।टेक।। निरमल भक्ति रीत है झीनु। कौन सिखावे बिन गुरु मीत।।-(और चाह सब दूर बहाओ। चरन गहो तज माया तीत।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-55-पृ.सं.48,49)                                                                                                                                   सतसंग के बाद:-                                             

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                              

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                        

(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



*परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- बचन- भाग -1- कल से आगे:-


 पिछले दिनों में आपको कई ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिन्हें नियमों पर न चलने वालों को न्यूनतम पर चलने के लिए जोर दिया गया और उन्होंने उसको सख्ती समझा। यदि आप अपने आसपास देखें तो आपको ऐसे उदाहरण मिल जावेंगे। जो लोग इन नियमों को कठोर समझते हैं उनको इस बात पर विचार करना चाहिए कि जिन लोगों ने ये नियम बनायें हैं उन्हें उनके साथ कोई ईर्ष्या, बैर व द्वेष नहीं था और न ही वे उनसे किसी प्रकार का बदला लेने का ख्याल रखते थे। और यदि ऐसा नहीं था और न ही फिर यह स्वीकार करना होगा कि उन्होंने यह नियम लोगों के लाभ ही के लिये बनाये होंगे।

इसलिए उन्हें अपने दिल को नियम बनाने वालों के लिए खुला रखना चाहिए, और इस बात के लिए उनका कर्तव्य होना चाहिए कि वे उनके लाभ का इतना ख्याल रखते हैं उन्हें यकीन करना चाहिए कि संगत को किसी उच्च आदर्श तक पहुंचने के लिए यह नियम बनाये गये हैं।।            

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-


[ भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-

और वह शख्स भी जो मुँह से अनुचित बचन न निकालता हुआ श्रद्धा के साथ यह संवाद सुनेगा उन्हें भी संसार से छूटकर पुण्य कर्मियों के मंगलमय लोको में बासा पावेगा। हे अर्जुन! क्या तुमने मेरी बातें एकाग्रचित्त होकर सुनी ? क्या अज्ञान बस जो तुम्हारे अंदर भ्रम पैदा हो गया था अब मिट गया?

 अर्जुन ने जवाब दिया- हे अच्युत! मेरा भ्रम मिट गया है, मुझे आप की कृपा से होश आ गया है। मेरे चित्त को अब स्थिरता प्राप्त है। मेरे सब संशय दिल से दूर हो गये हैं। मैं आपकी आज्ञानुसार कर्म करूँगा ।                      

संजय कहता है कि वासुदेव (श्रीकृष्ण) और महात्मा अर्जुन का यह अद्भुत संवाद सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये। व्यास जी की कृपा से मुझे स्वयं योगेश्वर कृष्ण महाराज के श्रीमुख से यह गुप्त और परम योग अर्थात् उपदेश सुनने का अवसर मिला।

【 75】                                

हे महाराज! श्री कृष्ण और अर्जुन का यह अद्भुत और पावन संवाद स्मरण करते मेरा हृदय बार-बार हर्ष को प्राप्त होता है और हरि के उस अत्यंत अद्भुत रूप ( विश्वरुप) को ख्याल में लाकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता है मेरा चित्त बराबर प्रफुल्लित होता है । मैं निश्चय से कहता हूँ कि जहाँ योग के ईश्वर श्री कृष्ण महाराज विराजमान हैं, जहाँ धनुषधारी पार्थ( अर्जुन) मौजूद है वहाँ श्री (लक्ष्मी), विजय और सुख चैन और अटल नीति जरुर मोजूद होंगे।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                               

🌹हुजूर राधास्वामी दयाल की अपार दया व मेहर से आज (भगवद् गीता के उपदेश) पुस्तक संपूर्ण हुई।

  हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में कोटि-कोटि प्रार्थना है कि हमसे जाने अनजाने में कोई त्रुटि या भूल हुई हो तो उसके लिए वह दाता दयाल हम सबको क्षमा करें ! राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय🌹                        

【 इती संपूर्ण】

🙏🙏🙏🙏🙏🙏


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 2-

कल से आगे:-( 10 )-

 ऊपर के लिखे हुए हाल से मालूम होगा कि राधास्वामी मत में जो अभ्यास मन और सुरत के समेटने  और चढ़ाने का निश्चित है, उसमें इस ओर ध्यान सिर्फ एक सच्चे और कुल मालिक राधास्वामी दयाल का धारण किया जाता है और उन्हीं के चरणों में प्रीति और प्रतीति दिन दिन बढ़ाई जाती है और जो कि हर एक स्थान पर उनके चरण मौजूद हैं, उन्हीं का ध्यान करता हुआ और शब्द की धुन सुनता हुआ अभ्यासी रास्ता तै करता है।                  

  ( 11)- अब ख्याल करो कि अभ्यासी या उलटने वाली सुरत हर एक स्थान पर अपने ही स्वरुप को सम्हालती हुई यानी धारण करती हुई चली जाती है और राधास्वामी दयाल के चरणों की धार अथवा धुन की डोरी पकड़कर रास्ता सुखाला तै करती है। और किसी गैर की पूजा और ध्यान का सिवाय कुल मालिक के इस मत के अभ्यास में दखल नहीं है। जब कुल स्थान तै हो गये, तब सुरत अपने सच्चे माता पिता राधास्वामी दयाल के सम्मुख पहुँच कर दर्शन का आनंद और बिलास करती है और उसको ताकत हासिल हो जाती है कि जब चाहे जब चरणों में मिल जावे और जब चाहे जब अलग होकर सन्मुख दर्शन का रस लेवे ।।                  

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



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