Wednesday, May 5, 2021

सतसंग वचन 05/05

- सतयुग, त्रेता और द्वापर तीन युग बीत गये पर किसी को शब्द की चाल समझ में न आई। लोगों ने शब्द या नाम को तो पकड़ा परंतु उन्हें यह समझ में आई कि वास्तविक लाभ सारशब्द ग्रहण करने से होता है।

उन्हें यह भी ज्ञात न हुआ कि निज नाम या सारशब्द क्या है और आवरणों या गिलाफों के शब्द क्या है। कलियुग में कुलमालिक ने कृपा करके अवतार धारण फ़र्माया और शब्दों अर्थात् नामों का भेद तथा वह सारशब्द (राधास्वामीनाम), जिसके पकड़ने से मनुष्य की आत्मा का सच्चे मालिक से मेल हो सकता है, स्पष्ट रूप से प्रकट किया।                                        ( 221)- आपने कबीर साहब का जो शब्द उपस्थित किया है उसी को देखिये। सब स्थानों के शब्द वर्णन करते हुए अंत की कड़ी में" पुरुष अनामी सब पर स्वामी" कह कर वर्णन समाप्त कर दिया है । राधास्वामी उसी अनामी पुरुष का नाम है जो सब पर स्वामी है ,जो ब्रह्मांड के पार बतलाया जाता है, और यह नाम स्वामी जी महाराज ने प्रकट फर्माया।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻            

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


: राधास्वामी!! 05- 05- 2021 -

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे-( 219)- प्रश्न- जरा रुक जाइये- पर आपकी पुस्तक सारबचन में तो लिखा है:- सतयुग त्रेता द्वापर बीता, काहू न जाने शब्द की रीता।                                                           कलयुग में स्वामी दया बिचारी, परघट करके शब्द उचारी।।।                                                 

 इन कड़ियों से तो ज्ञात होता है कि 3 युग बीत गये और किसी को शब्द कृति का पता ही नहीं लगा। अब कलयुग में आपके स्वामीजी महाराज ने दया करके शब्द की रीति बतलाई है, हरचंद आप स्वयं स्वीकार करते हैं कि किसी किसी मत में किसी न किसु ध्वन्यात्मक नाम की महिमा वर्णन की गई है ।जैसे कबीर साहब के एक शब्द में आया है:-                                                        


तू सूरत नैन निहार अंड के पारा है ।                                                           

 सुरत शब्द दोउ भेद बताई,तब देखें अंड के पारा है।                                                          

   इस प्रमाण से प्रकट है कि कबीर साहब शब्द में सुरत लगाने का उपदेश करते थे । इसके अतिरिक्त कबीर साहब का एक और शब्द है:- है तिल के तिल के तिल भीतर बिरलै साधु पाया है, चँहु दल कमल त्रिकुटी साजे ओंकार दरसाया है।।                                      

  रंरकार पद सेत सुन्न पद षटदल कमल बताया है, पारब्रह्म महासुन्न मँझारा सोई निःछर गाया है।                                               

 भँवरगुफा में सोहं राजे मुरली अधिक बजाया है, सन्तलोक सन्तपुरुष बिराजे अलख अगम दोऊ भाया है।                                       

  पुरुष अनामी सब पर स्वामी ब्रह्मांड पार जो गाया है।।  क्या अब आपका यह दावा मिथ्या नहीं हो जाता कि स्वामीजी महाराज के अतिरिक्त शब्द का भेद किसी ने नहीं बतलाया?  उत्तर- यदि आप पुस्तक सारबचन की कड़ियों के ठीक अर्थ समझे होते तो यह आक्षेप उत्पन्न न होता। उन कड़ियों में जो कुछ फर्माया है वह सुनिये और उस पर विचार कीजिये।


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