Sunday, May 23, 2021

सतसंग DB Rs सुबह 23/05

 **राधास्वामी!! 23-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                 

 (1) सतगुरु दीजे मोहि इक दात।।टेक।।

 नीच निबल मैं गुन नहिं कोई। बल पौरुष कुछ जोर न गात।।-

(राधास्वामी प्यारे होउ सहाई। बाल तुम्हारा रहा बिलकात।।)

 (प्रेमबिलास-शब्द-78-पृ.सं.110,111-

दयालनगर ब्राँच(विशाखापत्तनम)-

आधिकतम उपस्थिति-116)                                                        

(2) अरे मन भूल रहा जग माहिं। पकडता क्यों नहिं सतगुरु बाँह।।-(गुरु समझावें बारम्बारः शब्द गुरु धारो हिये पियार।।)

 (प्रेमबानी-1-शब्द-27-पृ.सं.39,40)                                                              

(3) यथार्थ-प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।                                                               

सतसंग के बाद:-                                               

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                                  

 (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 23-05-2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन -कल से आगे:

-(6) का शेष:-                                                             

(छ)- उसका हृदय अपने भगवंत अर्थात कुलमालिक के प्रेम से परिपूर्ण रहता है और वह भगवंत से सच्चे मिलाप की अभिलाषा को दूसरी सब इच्छाओं से बढ़कर समझता है। उसने भगवंत के चरणों का मिलाप अपने जीवन का लक्ष्य निश्चित कर लिया है। और वह इस लक्ष्य का किसी दशा में परित्याग करने के लिए उद्यत नहीं हो सकता । और जोकि आध्यात्मिक उन्नति इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक और सहकारी है इसलिए उस पर इतना मोहित है।।**

(ज)- उसे पूरा विश्वास है कि रचना के आदि से जितने भी धार्मिक पथदर्शक संसार में प्रकट हुए उनकी असली शिक्षा एक ही रही है पर जोकि उनकी अविद्यमानता के कारण इस शिक्षा में भारी मिलावट होगई है इसलिए वह महापुरुषों की असली शिक्षा और इस मिलावट में भेद मानता है और असली शिक्षा और मिलावट को समान महत्व देना अनुचित समझता है।                                                    

(झ)- उसे दृढ़ विश्वास है कि धार्मिक रहस्यों का अर्थ केवल जीवित गुरु समझते हैं या वे लोग, जिन्होंने उनसे विधिपूर्वक शिक्षा- दीक्षा ले कर रहस्यों का निजी अनुभव प्राप्त किया है ।                                                     

(ट)-वह अपने को कुल मालिक राधास्वामी दयाल का बच्चा, राधास्वामी-मत का एक सच्चा अनुयायी और राधास्वामी सत्संग की मशीन का एक पुर्जा समझता है इसलिए उसकी हार्दिक चेष्टा यह रहती है कि उससे कोई ऐसा कार्य न बन पडे जो परम पिता की आज्ञाओं के विरुद्ध हो,या राधास्वामी-मत  के अनुयायियों के अयोग्य हो , या जिससे सत्संग की मशीन की चाल में कोई दोष आ जाय ।

 क्रमशः                                       

 🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻                                            

यथार्थ का भाग तीसरा

परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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