Tuesday, May 18, 2021

सतसंग DB शाम 18/05

 **राधास्वामी!! 18-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                             

  (1) गुरु का संग मोहि मिलिया कोई बड भाग जागा है। जगत का संग मन तजिया चरन में गुरु के लागा है।।-(चरन सेवक मेरे गुरु के सभी इक दिन यह गति पावें। परम गुरु राधास्वामी दाता उन्ही यह भेद भाखा है।।)

(प्रेमबिलास-शब्द-48-पृ.सं.60,61-

डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-89)                                                         

(2) जगत सँग मत भूलो भाई। संग नहिं तुम्हरे कुछ जाई।। चेत कर नित सतसँग करता। समझ कर बचन चित्त धरता।।-(किया राधास्वामी कारज पूर। दिखाया राधास्वामी अपना नूर।।)

 (प्रेमबानी-1-शब्द-23-पृ.सं.34,35)                                                              

  (3) यथार्थ-प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।                                                               

  सतसंग के बाद:-                                             

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                        

(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                

                   

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 18-05-2021

- आज शाम सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे:-(2)-

 जोकि राधास्वामी-मत का प्रचार बहुत प्राचीन नही है इसलिए अधिकतर सतसंगी ऐसे हैं जो अपनी इच्छा और सकंल्प से इस मत में सम्मलित हुए है। अर्थात् ऐसा नही है कि जैसे हिन्दु की सन्तान हिन्दु और सिक्ख की सन्तान सिक्ख हो  जाती है।

ऐसे ही ये भी बिना समझे भूझे या परंपरा के अनुसार अपने बाप दादा के मत के अनुयायी बन गयें हो। नहीं ,उन्होंने प्रमार्थिक जिज्ञासा की सब अवस्थाओं को पार करके अपनी प्रसन्नता और इच्छा से ,बिना किसी के दबाव और निंदा-स्तुति के प्रभाव के, और अपनी सम्मति और रुची के अनुसार, हुजूर राधास्वामी दयाल की चरण- शरण ग्रहण की है।और जोकि इस मत की सब पुस्तकें ऐसी भाषाओं में मिलती है जो इस समय प्रचलित है, और जोकि सत्संग के केंद्र या प्रधान स्थान में सदा से यह प्रबन्ध रहा है कि प्रतिदिन राधास्वामी- मत की शिक्षा पर प्रकाश डाला जाय और हर जिज्ञासु को परमार्थ -संबंधी कठिनाईयाँ हल करने का अवसर प्राप्त रहे, इसलिए सतसंगियों को दूसरे संप्रदाय के लोगों की तरह व्याख्याओं और टीका-टिप्पणियों का मोहताज बनने और अपने निजी विचार ताक पर रख देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

वे साधारणतया धर्म और धार्मिक रहस्यों के तत्तव से परिचित होते हैं। और जोकि उनको मालूम है कि निजी अनुभव -द्वारा प्राप्त किया हुआ एक रत्ती ज्ञान सैकंडो  मन पुस्तकीय ज्ञान से अच्छा है इसलिए उनकी अधिक से अधिक चेष्टा यही रहती है कि उचित साधन करके अपनी अतंरीदशा सुधारें और इधर उधर भटकने के बदले अपना अधिक से अधिक समय उस वातावरण में बितावे जहाँ रहकर उन्हें हृदय की शुद्धता के लिए सुविधा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायता मिल सकती है। क्रमशः                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                   

यथार्थ- प्रकाश -भाग 3 -

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

**परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज- बचन भाग- 1-(39 )-लाला मोतीराम सत्संगी लाहौर के लड़के के कत्ल होने पर बचन के सिलसिले में फरमाया कि संसारी तो संत मत पर यह दोष लगाते हैं कि यह लोग मनुष्य की पूजा करते हैं और इस मत वाले ऐसी आफत के आने पर यह ख्याल करते हैं कि क्या वजह हमारी सहायता ऐसे शब्दों से क्यों नहीं की गई और संदेह करते हैं कि मामला दरअसल यह मालूम होता है कि जब कभी काम अच्छा बन जाता है तो राधास्वामी दयाल को मंसूब कर देते हैं यानी उनकी दया से काम बनना मानते हैं और जब बिगड़ जाता है तो तकदीर से बिगड़ना ही होता है और मालिक राधास्वामी दयाल का इसमें कोई दखल नहीं है। अलगरज नतीजा यह निकालते हैं कि हमारी ऊँच नीच हालतो में मालिक का दरअसल कुछ दखल नहीं है।

महज बेवजह अदब या कमअक्ली या अंधविश्वास (Superstitious Faith) हर नतीजे को मालिक से मंसूब कर देते हैं। मामला दरअसल यह है कि संत इस दुनियाँ में इस गरज से नही आते जैसा कि जीव समझता है, न हीं राधास्वामी मत वालों से कभी यह वादा किया गया है कि उनके स्वार्थी कामों में हमेशा ही उनकी मर्जी के माफिक कार्यवाही होगी, या कि उनके ऊपर कोई आफत न आवेगी।

संत खुद बीमार होते हैं। उनके अनुयायियों पर मुसीबतें आई और उन्होंने हार खाई।अगर उनके जगत में आने का यही मंशा होता, तो हरगिज ऐसा न होता। वह जगत में जीव को सच्ची खुशी देने और हमेशा के लिए रंज व तकलीफ से बचाने को आते हैं। उन्होंने देखा कि इस जगत में जो चीज एक वक्त सुख देने वाली होती है, दूसरे वक्त में वही दुखदाई हो जाती है। इसलिए जिन को सुख देने के बाद से इस दुनिया की चीजों का एकत्रित करना या बीमारी, सर्दी गर्मी से बचाना या आफ्तो से बचाना जरूरी नहीं है।

इस ब्रह्मांड का मसाला भी न्यून चेतन का है। इसमें सुख हो ही नहीं सकता इसलिए संतों का असल उद्देश्य इस जीव को इस ब्रह्मांड से निकालने का और अपने निर्मल चेतन देश में पहुँचाने का है, क्योंकि वहाँ पहुँच कर पूरा सुख प्राप्त हो सकता है।

 [इसलिए सत्संगी यह न समझे कि उनके ऊपर कोई आफत न आवेगी। असल मतलब राधास्वामी दयाल का जीवन को इस रचना से निकालने का है और इस सिलसिले में ख्वाह आफतें आवें या बीमारी आवे, संत इसकी परवाह बिल्कुल नहीं करते।] यह ऐसा ही है कि जैसे एक शख्स के पेट में सख्त(पेट का दर्द हो) और बवजह कब्ज उसको जुखाम या ऐसी मामूलु छोटी सी बीमारी हो, या आँख में , उँगली में फुंसी निकल आवे, तो अव्वल तो डॉक्टर पेट का दर्द दूर करने की फिक्र करता है और जानता है कि ज्योंहि ही पेट का दर्द और कब्ज गया, यह बाहरी निशानात व असर कब्ज फौरन दूर हो जावेंगे।                                                

अगर किसी सतसंगी को दुनियाँ के काम में सहायति हुई या एक करश्मे के तौर पर किसी को तजुर्बा हुआ, तो दरअसल मालिक का मंशा इस सत्संगी को यह सुख देना या आफत से बचाना न था, बल्कि फकत यह था कि इससे सत्संगी के दिल में प्रीति प्रतीत पैदा होकर मजबूत हों। सिवा इसके और कोई मतलब नहीं है। इसलिए इस मत में होकर मालिक से दुनियावी ख्वाहिशात धन व बेटा के माँगना या आशा रखना इस मत के आज्ञाओं को नजरअंदाज करना भूलना है। मालिक हरगिज इन कामों में दखल नहीं देता ।

इस सिलसिले में शब्द सारबचन नज्म से पढ़वाया।" सतगुरु मोहि दीना नाम सही, तृष्ण सफल दही।।".                         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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