Tuesday, May 11, 2021

सतसंग DB शाम 11/05

 **राधास्वामी!! 11-05-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                                 

  (1) आज सतसँग गुरु का कीजे। दीखे घट बिमल बिलासा।।टेक।।-(गुरू दया संग ले भाई। गगना में पहुँची धाई।। फिर सत्तनाम पद पाई। किया राधास्वामी चरन निवासा।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1-पृ.सं.21,22-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-79)                                                               (2) सतगुरु संत महा उपकारी। जगत उबारन दया बिचारी।। महासुन्न पर करी चढाई। भँवरगुफा मुरली धुन पाई।।-(ऐसा देश रचा राधास्वामी। निज भक्तन को करें बिसरामी।। (प्रेमबानी-1-शब्द-18-पृ.सं.28,29)                                                             (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       सतसंग के बाद:-                                                (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                    (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                           🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 11-05- 2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे :-                                                ( 231)- प्रश्न- अच्छा इन कडियों का क्या तात्पर्य है?                                                           आतम परमातम नहिं मानूँ। अक्षर निःअक्षर  नहीं जानूँ।                                                         नहीं तब ब्रह्म नहीं तब आतम। नहीं तब पारब्रह्म परमातम।                                     संत मौज फिर कोई न टारे । ईश्वर परमेश्वर सब हारे।                                                               यदि आत्मा और परमात्मा को ही नहीं मानते तो फिर किसको मानेंगे, और जब आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म और पारब्रह्म कुछ भी नहीं है तो फिर भक्ति किसके लिए की जाती है? यह राधास्वामी-मत की घोर नास्तिकता है। और तीसरी कड़ी तो अहंकार से भरी है ।                         उत्तर - यह राधास्वामी -मत की घोर नास्तिकता नहीं है किंतु प्रश्न करने वाले की घोर अज्ञानता है । आत्म-पद, परमातम- पद, अक्षर-पद और निःअक्षर- पद सब सत्य देश के नीचे हैं इसलिये सच्चे मालिक के दर्शन का अभिलाषी इन निचले पदों के धनियों अर्थात अधिष्ठात्री शक्तियों को अपना इष्ट क्यों बनाने लगा?  इसका यह अर्थ नहीं है कि वह इनकी सत्ता को ही नहीं मानता या इनका निरादर करता है। नहीं, वह अपने इष्ट की श्रेष्ठता वर्णन करता है। और दूसरी कड़ी में रचना से पहले का हाल वर्णन हुआ है। आप ही बतलावे की क्या रचना होने से पूर्व एक पुरुष के अतिरिक्त और कुछ विद्यमान था?  क्या सब लोक और ब्रह्म के स्वरूप सृष्टि-क्रम की क्रिया प्रारंभ होने के पश्चात प्रकट नहीं हुए?  क्या ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 129 में , जिसका अनुवाद दफा 186 में दिया जा चुका है, यही बात नहीं लिखी है ? यदि लिखी है तो फिर आक्षेप का यही अर्थ न होगा कि न आपको अपनी धर्म पुस्तकों से अभिज्ञता है और न राधास्वामी- मत की पुस्तकों के समझने की योग्यता है ? तीसरी कड़ी का अर्थ पीछे दफा 98 के फुटनोट में वर्णन हो चुका है वहाँ देख लें। और व्यास जी के जिस बचन के आधार पर वह नोट लिखा है उसे भी फिर से पढ़ ले । क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                                       यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

*( 232)- प्रश्न- अच्छा त्रषियों के विरुद्ध यह कड़ियाँ क्यों लिखी है?-                                           क्या व्यास वशिष्ट भुलाया। क्या शेष महेश भ्रमाया। पाराशर जोगी नारद। श्रृंगी ऋषि गोता खाया।।                                                    उत्तर- कृपया पुराणों को पढ़ कर देखो कि उन ऋषियों के विषय में क्या क्या लिखा है। क्या इनमे से किसी को सत्य देश का पता चला? 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**

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