Wednesday, April 22, 2020

राधास्वामी विभिन्न प्रसंग बचन उपदेश और सूचना निर्देश







आप सभी से अनुरोध है। कि अपने आस पास के कमजोर सत्संगी की जानकारी करके उसकी आर्थिक सहायता जरूर  करें। ये भी देखें कि उसके यहाँ खाने आदि की सामिग्री की कमी तो नहीं है। यदि आवश्यक हो हमें भी सूचित कर सकते हैं । और आपस में सूचना का आदान प्रदान करते हुए सब अपने अपने छेत्र के सब सत्संगियों जानकारी अवश्य रखें।ताकि किसी को इस आफत की घड़ी परेशानी न होने पाए
यह सत्संग सभा ने आदेश  जारी किया है
ज्यादा राधास्वामी🙏🙏




👆👆1) The above song is a devotional song about the Supreme Being.
2) It was actually sung by a dancer , in front of Huzur Maharaj Saheb , during a celebration on the occasion of His son's marriage.
3) The text of the above song and its meaning are mentioned in the Souvenir ( 1861 - 1961 ) , Chapter - 3 , Paragraph - 56.

👆👆हमने दर परदा तुझे , शम्स जबीं देख लिया ।
अब न कर परदा तू , ऐ परदा नशीन देख लिया ।। 1 ।।
तेरे दीदार की थी , मुझको तमन्ना सो तुझे ।
लोग देखेंगे वहां , हमने यहीं देख लिया ।। 2 ।।
हम नजर बाजों से तू , छिप न सका जाने जहां ।
तू जहां जा के छिपा , हमने वहीं देख लिया ।। 3 ।।
काबा व दैरो , मस्जिदों बुतखाने में ।
इनसे क्या बहस है , देखा है कहीं देख लिया ।। 4 ।।
निकली मंसूर की खून से , यह अनलहक की सदा ।
दार पर चढके तुझे , शम्स जबीं देख लिया ।। 5 ।।

🙏🙏  राधास्वामी !!! 🙏🙏 

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🙏🙏  राधास्वामी !!! 🙏🙏

🙏🙏  राधास्वामी !!! 🙏🙏 

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🙏🙏  राधास्वामी !!! 🙏🙏

Very less strength of gents, for KATAI AT BAHADURPUR, PLEASE REACH AS SOON AS AS POSSIBLE". HAVE TO FINISH IT TODAY ONLY.
HRS




प्रश्नोत्तर


         प्रश्न 42 - सतसंग किसको कहते हैं और यह कितने क़िस्म का है?
         उत्तर - सतसंग दो क़िस्म का है,अंतरमुखी और बाहरमुखी। मालिक के साथ संग करना यानी भजन में बैठकर शब्दगुरु से मिलना सतसंग अंतरमुखी है। और सतगुरु वक्त़ के दर्शन करना, उनका बचन सुन कर उस पर अमल करना या जहाँ वह इजाज़त दें और जहाँ संतों की बानी का पाठ या अर्थ या परमार्थी चर्चा होती हो, जाना बाहरमुखी सतसंग है।
 राधास्वामी





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात -5 सितंबर 1932 -सोमवार:- सुबह के वक्त मिस्टर सुब्रमनियन डिप्टी डायरेक्टर ऑफ इंडस्ट्रीज मिलने के लिए आए। उनके साथ जाकर भूमि का दोबारा अवलोकन किया और अंत में यही राय कायम की की भूमि मुफ्त के दाम भी अलाभकारी है। अगर बेंगलुरु में रहना या काम करना होगा तो दो चार बंगले किराए पर ले सकते हैं।।                                     शाम के वक्त दीवान साहब व मैनेजर साहब सीगा व्यापार व व्यवसाय से मुलाकात की। रुख बदला हुआ पाकर घर वापस आने का इरादा कर लिया।।                          रात के वक्त फिर कॉरिडोर में लोगों का मजमा हो गया मुसलमान पड़ोसी एक नवाब साहब को मिलाने के लिए लाए। और सवाल व जवाब का सिलसिला जारी हो गया। 8:00 बजे स्टेशन के रवाना हुए। सेट खुमानी चंद और उसके एक अजीज हमराह आए और उपदेश के लिए ख्वाहिशमंद हुए। मैंने सलाह दी के उपदेश के मामले में जल्दबाजी ना करनी चाहिए अव्वल दो एक किताबें पढ़ लो और समझ सोच लो कि उपदेश लेकर क्या कर कुछ करना पड़ेगा। उन्होंने मंजूर कर लिया कुछ देर बाद रेल चल पड़ी और वापसी का सफर शुरू हो गया।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल का शैष -( 7 ) जो कोई सत्संग में शामिल होकर और मालिक का खौफ न करके संसारियों के मुआफिक या पिछले स्वभाव  के अनुसार बरतता है तो जानना चाहिए कि उसने मालिक को मालिक न समझा और वह उसकी समर्थता कों और कुदरत का खौफ दिल में ना लाया। और फिर उसकी गरज ही मालिक से मिलने और अपने सच्चे कल्याण करने की बहुत कम है, तो फिर वह कैसे प्रेम और भक्ति के दौलत को पा सकता है ।और भजन और अभ्यास का रस भी बहुत कम मिलेगा और मन और इंद्रियां हमेशा उस पर सवार रह कर उसको भरमाती और भटकाती रहेंगी।।                 ( 8)  जो कोई खराब कामों के करने में मालिक का दल जैसे चाहिए मन में नहीं लाता( इस सबब से कि मालिक नहीं दिखता) तो भक्तों और प्रेमी जन जो सत्संग में मौजूद है उनका डर और लज्जा, जैसे कि लोग अपनी बिरादरी और फिरके का रखते हैं, जरूर दिल में आना चाहिए और इस डर और लज्जा से भी बहुत बचाव मुमकिन है । और जो ऐसा भी नहीं होता यानी सत्संगी का भी खौफ और शरम किसी के मन में नहीं आता , तो मालूम करना चाहिए कि जिसकी ऐसी हालत है वह परमार्थी भी नहीं है या निहायत दर्जे का नादान और अपने परमार्थी नफे और नुकसान से बेखबर है। ऐसे लोग नाकिस चाल चलन से संगत को लाज लगाते हैं । इस वास्ते हर एक परमार्थी को, जो सतसंग में दाखिल हुआ है, इस बात का सोच और विचार जरूर चाहिए कि मैं पहले किस गोल या संगत में था अब किस सोहबत में दाखिल हुआ और इस सोहबत का कैसा बरताव और क्या-क्या फायदे हैं । और कोशिश करनी चाहिए कि जहां तक बन सके उन कायदों और बर्ताव के मुआफिक थोड़ी बहुत कार्यवाही शुरू करें , नहीं तो उसका प्रमार्थी संगत में शामिल होना बेफायदा है ।                                     (9) जो कोई कहे कि मन और इंद्रियाँ बडे जबर है, उनसे बस नहीं चलता, तो ख्याल करो कि ऐसे ही मन और इंद्रियां लड़कियों और लड़कों मर्दों की जबर थी ,पर जब से लड़कियों की शादी हुई और लड़के उस्ताद के सुपुर्द हुए और मर्द हाकिम के नीचे काम करने लगे तब से अपने  तन मन और इंद्रियों की चाह और शौक को नीचे डालकर अपने अपने बड़ों के हुकुम में बरतने लगे। फिर जो परमार्थी कहलाते हैं वे गुरु और मालिक और सतसंगियों का जरा भी खौफ ना करके जो पुरानी चालो में बरतते रहे, तो वे कैसे परमार्थी समझे जावे और कैसे यकीन होवे कि उन्होंने गुरु और मालिक को बड़ा समझा और सत्संगियों और प्रेमी जनों को अपनी बिरादरी करार दिया ?                            (10) ऐसे लोग जो सत्संग में पड़े रहेंगे तो कुछ थोड़ा परमार्थ उनको हासिल होगा और वह सिर्फ दया से मिलेगा , पर बहुत देर और कुछ कष्ट और क्लेश के बाद , क्योंकि उनके मन और इंद्रियां सीधी तरह चलना नहीं चाहते अब बिना दंड पाए दुरुस्त नहीं होंगे।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल का शेष- इसी तरह एक और भाई की लड़की की मौत हुई । वह लड़की बमुश्किल सात या आठ साल की होगी लेकिन उसने भी आखिरी वक्त पर बयान किया कि मुझे हुजूर राधास्वामी दयाल का दर्शन मिल रहा है। उसके मां बाप व दादा देख रहे थे कि वह कम उम्र का बच्चा इधर से बेहोश बराबर राधास्वामी नाम का जप कर रहा है। इस निर्दोष बच्चे ने भी पवित्र नाम जबान से लेते हुए दुनिया से रुखसत हासिल की। यह दुरुस्त है के अलावा दूसरी मोहब्बतों के मां-बाप को खून के रिश्ते की वजह से भी औलाद के साथ मोहब्बत होती है और यह भी दुरुस्त है कि किसी यार दोस्त के मामूली सफर के लिए रवाना होने पर भी आम लोगों का दिल भर आता है और यह भी सही है कि बाज औलाद उत्तम संस्कारी होने से गैर मामूली अच्छी लगती है मगर संतमत की तालीम यह इजाजत नहीं देती कि किसी गोश्त के लोथड़े के साथ प्रेमीजन अपना इतना बंधन पैदा करें कि उसके अलग होने पर उसका दिल अर्से तक डाँवाडोल रहे। औलाद की मुनासिब परवरिश करना और बीमारी की हालत में उसकी सेवा करना और उसे सुख पहुंचाना हर सत्संगी वाल्दैन का फर्ज है लेकिन औलाद के रुखसत होने पर, यह देखते हुए की औलाद हंसते खेलते रुखसत हो रही है और मालिक की दया उसके शामिले हाल है, अपनेतई दुखी महसूस करना नामुनासिब है। इस किस्म का बंधन मोह व ममता का नतीजा होता है और परमार्थ में नुकसानदेह है। औलाद के साथ बंधन पैदा करना हमारा फर्ज नहीं है, हमारा सदा कायम रहने वाला व गहरा रिश्ता सिर्फ सच्चे मालिक से होना चाहिए । वही हमारे असली मां-बाप व मित्र हैं और उन्हीं के चरणों में पहुंचना हमारी जिंदगी का उद्देश्य है। दूसरे सब रिश्ते और काम महज चंदरोजा है।  हमें उनके साथ कार्यमात्र के लिए संबंध रखना मुनासिब है । हमारी तरह हमारी औलाद भी खास उद्देश्य से लेकर दुनिया में आती है और अगर वह हमारे को कबूल करें तो उसे भी हमारे साथ मोह व बंधन से परहेज करना मुनासिब है।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**








  • **राधास्वामी!!        
  •                               

  •   19-04-2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे( 112) दुनिया में आमतौर पर रिवाज यह है कि इंसान मालिक की जानिब मुखातिब ही नहीं होता। अलबत्ता जब किसी के सिर पर सख्त मुश्किल या मुसीबत आती है तो वह मालिक की तरफ मुखातिब होता है और बतौर भिखारी के मालिक के रूबरू हाथ फैलाता है। खैर किसी भी बहाने से मालिक की याद की जावे गनीमत है ।लेकिन मालूम होवे कि इस तरीके से मालिक की याद करने पर हमेशा दया मदद हासिल नहीं होती।  एक ऐसा भी तरीका है जिस पर चलने से बिलानागा दया व मेहर हासिल हो सकती है और वह यह है कि भिखारी के बजाय बच्चे का अंग लेकर प्रार्थना की जावे और जैसे बच्चा अपनी माँ से मोहब्बत के जोर पर चीजे माँगता है ऐसे ही तुम भी अपनी प्रार्थना पेश करो। लेकिन यह अँग तभी आएगा जब अपने मन को बच्चे की तरह मालिक से दिन रात मोहब्बत करने की आदत डालोगे । जब ऐसी आदत हो जाएगी तो अव्वल तो तुम्हें किसी चीज के माँगने की जरूरत ही न रहेगी क्योंकि वह दयाल मालिक खुद ही तुम्हारी हर तरह निगरानी व संभाल करेगा और दोयम् अगर कभी जरूरत भी पड़ेगी तो तुम्हारे माँगते मांगते उसकी मंजूरी के अहकाम जारी हो जाएंगे। अगर राधास्वामीमत और राधास्वामी दयाल में सच्चा विश्वास है तो इस युक्ति का इस्तेमाल करके पूरा फायदा उठाओ ।                                     🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻           सत्संग के उपदेश भाग तीसरा।**




*आज ग्रेसियस हुज़ूर जी द्वारा दिए गए निर्देश*

*१* १५ वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चे गरम पानी में नमक व हल्दी डालकर गार्गल करें।

*२* नसल ड्रॉप्स दिन में दो बार।

*३* गरम पानी या नॉर्मल पानी का सेवन करे। ठंडे पानी का सेवन बिलकुल ना करे।

*४* अगर कफ (सर्दी) हो जाए तो सितोपला दी शहद के साथ ले।

*राधास्वामी*


[19/04, 21:51] Contact
🙏🏻

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 *रविवार का सत्संग*
सरकारी आदेश के अनुसार कोविड-19 की बीमारी के कारण किसी भी धार्मिक आयोजन की इजाजत नहीं है इसलिए आज और 3 मई तक के जितने भी रविवार आएंगे , ब्रांच सत्संग की कोई भी कार्रवाई नहीं होगी इस बात की जानकारी अन्य सत्संगी और जिज्ञासु भाई बहनों को भी दे दे।
राधास्वामी

[19/04, 23:26] +91 94162 65214: प्रे.भा.गुरुदास दुआ (इंदौर) के पिताजी स्वर्गीय श्री स्वामीदास दरवेश जो पूज्य हजूर मेहताजी महाराज के समय में दयालबाग सत्संग के मुख्य पाठी थे। उन्होंने सारबचन पोथी से बहुत सारे पाठों को अलग अलग रागो मे लयबद्ध कर गाया था। प्रस्तुत है उन्हीं की आवाज़ में कुछ  पाठों की श्रंखला।
[20/04, 06:15] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकियात- 6 सितंबर 1932- मंगलवार:- सुबह होते ही मद्रास स्टेशन आया। ठहराव के लिये विश्राम स्थल पर पहुचे। सतसंगी भाई जमा थे।  परंपराअनुसार सुबह का सत्संग हुआ ।और फैसला किया गया कि शाम के वक्त मुक्तावली से "स्वामी सेवक संवाद" के अर्थ बयान किये जावें।  शाम के सत्संग में तीन प्रश्नों के उत्तरों का तात्पर्य अंग्रेजी जबान में बयान किया गया। 2 मद्रासी भाई उसका तेलुगु में अनुवाद करते रहे ।और एक भाई मुक्तावली से तेलगु इबारत का पाठ करता रहा है।  इस सम्वाद में राधास्वामी मत की कुल  तालीम का निचोड़ मौजूद है।  और ऐसे आसान शैली में बयान हुआ कि मुतलाशियों को बआसानी समझ में आ सकता है।।                           थोड़ी देर बाद सेठ चमरिया भी कलकत्ता से आ गए और उनसे फिल्म इंडस्ट्रीज के मुतअल्लिक़ बहुत सी बातें कि। उन्होंने बतलाया कि उन्होंने कुल सिनेमा हाउसेज की 1/4  आमदनी सतसंग सभा के नाम उत्सर्ग कर दी है। अब सभा दिल खोलकर टेक्निकल तालीम के लिए इंतजाम करें और टेक्निकल कॉलेज दयालबाग को तरक्की दे। मैंने शुक्रिया अदा किया और कहा 4-6 माह आमदनी का हाल देख कर फैसला करेंगे कि हमें उसके इस्तेमाल के लिए क्या करना चाहिए। एक जरूरत तो नहर की है दूसरे सूत कातने के कारखाने की। और तीसरी अनुबंध के अनुसार 6 लाख यूनिट बिजली खर्च में लाने की। यह जरूरतेदूर होने पर  कॉलेज की तरक्की के मुतअल्लिक़ कोई ख्याल उठाया जा सकता है। उनकी राय यही हुई कि अव्वल कारखानाजात को तरक्की दी जाय। ऐसा करने से आमदनी भी बढ़ेगी और बिजली के इस्तेमाल के लिए भी सूरत निकल आवेगी । आखिर में मैंने समझाया कि जब तक आपका दिमाग ठंडा और दिल साफ रहेगा आपको अपने काम में हर तरह की सहूलियत रहेगी। और जिस दिन दिल व दिमाग में फर्क आया आपके लिये यह सब काम परेशानी की सूरत पैदा करेगा।।                         शाम के वक्त चंद मिनटों के लिए सिनेमा हाउस देखने गए। लैला मजनूँ फिल्म दिखाई जा रही थी। मालूम हुआ कि इस फिल्म ने लोगों के दिलों को जीत लिया है। चौथी मर्तबा यह फिल्म मद्रास में आई है । 6 दिन से चल रही है। दिन में दो दफा दिखलाई जाती है लेकिन तो भी हाल भरा हुआ है। क्या फिल्मों के जरिए इस मुल्क में नेक व लाभकारी ख्यालात फैलाकर नौजवानों के दिलों में प्रकट परिवर्तन नहीं कर सकते? जरूर कर सकते हैं।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -सत्संग के उपदेश- भाग 2-( 42)-【 असली पवित्रता क्या है?】:- आपने पवित्र, पवित्रता, शुद्ध ,शुद्धता Holy Sacred  वगैरह अल्फाज हजारों मौकों पर इस्तेमाल किए होंगे और इस्तेमाल होते सुने होंगे लेकिन गालिबन आपको कभी यह इत्तेफाक न हुआ होगा कि यह तहकीक करें कि पवित्रता किस चीज या वस्तु का नाम है कोई चीज पवित्र क्यों कही जाती है?  मिसाल के तौर पर देखिए-- गंगाजल पवित्र कहा जाता है और वजह यह बतलाई जाती है गंगा जी स्वर्ग से उतरकर संसार में आई है इसलिए पवित्र है और इसलिए गंगाजल भी पवित्र है। लेकिन और भी बहुत सी नदियां , जो स्वर्ग से नहीं उतरी, पवित्र मानी जाती है। इस पर जवाब दिया जाता है कि वे सब नदियाँ, जिनका जिक्र प्राचीन शास्त्रों में है, बावजह इसके कि पूर्व काल में ऋषियों व बुजुर्गो ने उनके किनारे विश्राम किया,पवित्र मानी जाती है ।लेकिन ऐसी भी बहुत सी नदियां हैं जिनका शास्त्रों में कही कोई जिक्र नहीं लेकिन फिर भी पवित्र मानी जाती है। चुनांचे 'राजाबरारी' में काजल व गंजाल नदियों के संगम का मुकाम पवित्र समझा जाता है और सूर्य व चंद्र ग्रहण के मौको पर और खास खास तिधियों पर हजारों लोग अपने शहर या कस्बे के करीब नदियों में पवित्र्ता हासिल कलने के लिये स्नान करते हैं। क्रमश :

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1-( 18) -

【जो लोग कि सिवाय संत मत के अभ्यास के और और काम कर रहे है,उनको क्या फायदा होगा?】

-(1) जो परमार्थी की कार्यवाही आजकल दुनिया में जारी है वह या तो (१) कर्मकांड या दान पुण्य (२) तीरथ और मूरत और निशानों की पूजा (३) ब्रत (४)  नाम का जाप (५) हट योग (६) प्राणायाम (७) ध्यान (८) मुद्रा की साधना (९) वाचक ज्ञान (१०) या पोथी और ग्रंथ का पाठ करना और मन से अस्तुति गाना और प्रार्थना करना वगैरह है। इन साधनों से संतों के बचध के मुआफिअ जीव के सच्चे उद्धार के सूरत नजर नहीं आती, क्योंकि इन कामों में मालिक के चरणो का प्रेम और उसके दर्शन की चाह बिल्कुल नहीं पाई जाती। अब हर एक का हाल थोड़ा सा लिखा जाता है।।                   

 (१)-【 कर्मकांड और दान पुण्य 】-जो जीव इध कामों में बरत रहे हैं, चाहे जिस मत में होवें, उनका मतलब इन कामों के करने से या तो इस दुनियाँ के सुख और मान बड़ाई, धन और संतान की प्राप्ति और वृद्धि का है या बाद मरने के स्वर्ग या बैकुंठ या बहिश्त में सुख भोगने का। इनके मत में ना तो सच्चे मालिक का खोज और पता है उसके मिलने की जुगत का जिक्र है। जितने काम कि यह लोग करते हैं सब बाहरमुखी हैं और उनका सिलसिला अंतर में सूरत और शब्द की धार के साथ बिल्कुल नहीं। इस सबब से इन कामों में जीव का सच्चा उद्धार नहीं हो सकता। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



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राधास्वामी

सभी भाई बहनों से निवेदन है जिस प्रकार कटाई में बढ़ चढ़कर सभी ने भाग लिया ,  उसी प्रकार बिनाई में भी भाग लें।
बिनाई के लिए काफी माल खेतों पर फैला हुआ है । कई गाड़िया इससे भर रही हैं।‌ जितने ज्यादा भाई बहन होंगे उतना काम जल्दी सिमट पाएगा ।
आज सुबह भी खेत में हाजिरी कम होने के कारण नाराजगी हुई है । इसलिए आप सभी भाई-बहनों से निवेदन है कि आप सुबह व शाम दोनों वक्त  सेवा में ज्यादा से ज्यादा  संख्या में शामिल हो साथ ही अपनी हाजिरी भी अवश्य लगवाएं।
राधास्वामी



मुबारक भंडारा

करूं क्या बयां उनके रहमोकरम का
दया का सागर उमड़ उमड़ पड़ा।
चौदह अप्रैल की मध्यरात्रि साढ़े बारह बजे
दाता जी का काफिला खेतों को चल पड़ा।
सैलाब प्रेमियों का उमड़ने लगा
वाहनों का सिलसिला चल पड़ा।
साईकिल रिक्शा बस व ट्राली
कारों से भी सफ़र तय था हो रहा।
रात की नीरवता में बस वाहनों का शोर था
नौनिहालों का सिलसिला भी थमता न था।
वीरांगनाओं की अलग आन बान शान थी
सिर पर हेलमेट मुख पर मास्क हाथों में लाठियां थीं।
खेतों का नजारा पूरे शबाब पर था।।
चाय रस्क गुड़ चना अमृत पेय चिड़वा
केले व श्रीखंड का परशाद था।
काम करते करते सभी परशाद पा रहे थे
जूझ कर कटाई में सब भाग ले रहे थे।
रात्रि के एक बजे आरती संपन्न हुई
आरती का परशाद सबको बांटा गया।
प्रात: साढ़े तीन बजे खेतों काम समाप्त हुआ
घर कीओर सबने प्रस्थान किया।
पंद्रह अप्रैल के साढ़े दस बजे संदेश आ गया
दाता जी भंडारे के लिए खेतों में पधार रहे हैं।
आनन फानन सब खेतों को चल दिये
उनके इक इशारे पे सब हाजिर हो गये।
जहां तक जा रही थी नज़र
खेतों में सभी अनुशासनबद्ध बैठे थे।
पंद्रह फीट की दूरी लिए सब प्रेमीजन
सोशल डिस्टेंस का पालन कर रहे थे।
चल रहीं थीं दरातियां गेहूं पर
किंतु निगाहें टिकी थीं सिंहासन पर
सबकी निगाहें टिकी थीं
दाता जी की तशरीफ़ आवरी पर
दाता जी के शुभागमन पर
ग्यारह बजे भंडारा प्रारंभ हुआ।
दो शब्दों के  पाठ के उपरांत
दाता जी ने भोग लगाया।
सभी ने अपने अपने स्थान पर प्रशाद ग्रहण किया।
गेहूं कटाई का सिलसिला चलता रहा
सूर्य का प्रकाश भी बाधा बन न सका।
निर्मल रास लीला का नजारा चहुं ओर था
इक अजब सा नशा फैला सब ओर था।
दाता जीके चारों ओर सुरतें उमड़ रही थीं
नन्हे सुपरमैनों की भी भीड़ जमीं हुई थी ।
दाता जी सुपरविजन कर रहे थे खेतों में
सब प्रेमियों में अजब सा उमड़ा जोश था।
न तन की सुध थी न परवाह किसी की
सुरत डोर उनके चरणों में बंधी थी।
सुपरमैन की पीटी हुई उसी खेत में
वीरांगनाओं का प्रर्दशन भी अद्भुत रहा।
शाम के साढ़े तीन बजे खेतों की छुट्टी हुई
कारवां धीरे धीरे सिमटने लगा।
सब अपने अपने घर को मुखातिब हुए
रात का अंधकार घिरने लगा।
साढ़े दस बजे रात को एक संदेश गूंजने लगा
कार रेडी+++++++++++++++
कृष्ण की बांसुरी सुन घर-बार छोड़कर
गोपियां उनकी ओर दौड़ पड़तीं थीं।।
वैसे ही सारी संगत अपने अपने घर से चल दी
खेतों को दाता जी के पथप्रदर्शन पर।
यमुना का किनारा था बह रही थी शीतल पवन
आधी रात का समय था चांद अर्श पर खिला था।
आशिकों को सिर्फ अपने आका का ख्याल था
रात को भी दिन का सा आभास था।
हर काम यथावत् पूर्ण हो रहा था।
इलायची दाने  का परशाद चाय रस्क
अमृतपेय गुड़ चना चिड़वा व ककड़ी का परशाद
हर प्रेमी को वितरित हो रहा था।
चल रहीं थीं दरातियां उसी जोश में
तीन बजे सुबह छुट्टी का ऐलान सुन
सभी प्रेमीजन घर की ओर चल दिए।
था सुकून और आनंद मालिक के संसर्ग का
उन पलों में स्वर्ग हमारी गोद में था।
सुपरमैन और वीरांगनाओं की सेल्फडिफेंस पीटी
भंडारे वाले दिन तीन बार संपन्न हुई।
तीन शिफ्टों में झो खेतों का काम हुआ
दाता जी का साथ करीब बारह घण्टे तक मिला।
हर प्रेमी। प्रेम भक्ति में डूबा हुआ।
भंडारे का पवित्र दिवस यूं बीत गया
अविस्मरणीय स्मृतियों से झोली भर गया।
सराहें क्या भाग अपने जो मालिक का पर्याय मिला उनके स्वर्गिक आभामय स्वरूप का दीदार मिला।
वे दयाल यमुना के तट पर रचा रहे थे निर्मल रासलीला
सारी संगत को अपने प्रेमरंग में रंग। दिया।
उनकी आज्ञाओं पर यूं ही हम चलते रहें
उनकी वात्सल्य भरी गोद में मग्न हम रहें।
आरज़ू है यही बिनती है यही
उनकी कसौटी पर खरे हम उतरते रहें।
उनके रहमोकरम के काबिल हम बनें।
उनके सिवा कुछ न अब चाहिए
बस प्यार भरी इक नज़र चाहिए।


स्वामी प्यारी कौड़ा




राधास्वामी!!
आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन

- 20-04 -2020

-कल से आगे

-(113) मालिक ने दुनिया में इंसान  की जिंदगी खुशगवार बनाने और उसे तरक्की का मौका देने के लिए अपनी कुदरत से चंद ऐसे सामान पैदा किए हैं जिनका खुद मुहय्या करना उसके लिए नामुमकिन है । मसलन रोशनी, पानी, रुहानियत वगैरह। और जैसे रोशनी मुहय्या करने के लिए मालिक की जानिब से सूरज तैनात हुआ है, पानी के लिए समुद्र,, ऐसे ही रुहानियत मुहय्या करने के लिए साध संत, फकीर औलिया, ऋषि मुनि वगैरह तैनात किए गए हैं ।

अगर आज सूरज गायब हो जाए हो या समुन्द्र खुश्क हो जा तो थोडे ही अर्से मे दुनिया का खात्मा हो जाएगा। ऐसे ही अगर साध संतो की आमद बंद हो जाए तो थोड़े ही अर्से में दुनिया से इंसानियत उठ जायगी और तरक्की और सच्चे सुख की प्राप्ति का रास्ता हमेशा के लिये बंद हो जायेगा। मगर तअज्जुब व अफसोस है कि आम तौर लोग इस नेमत का पूरा फायदा नहीं उठाते और जैसे की लकड़ी के कोयले के अंदर मौजूद सूरज की खफीफ कुव्वत से काम चलाया जाता है ऐसे ही संत महात्माओं की लिखी हुई पुस्तकों,उनकी इस्तेमाली चीजों और उनके निशानात में मौजूद खफीफ रुहानियत  से फायदा उठाने की कोशिश की जाती है।

 राधास्वामीमत सिखलाता है कि इंसान को रुहानियत की नेमत का पूरा फायदा तभी हासिल हो सकता है जब वह किसी ऐसे महापुरुष से ताल्लुक कायम करें जो रुहानियत से सरेचश्मा है और जो रुहानियत की बख्शीश ही के लिए दुनिया में भेजे गये है।                                                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश भाग तीसरा



🙏🏻🎤🎤🎤🎤🙏🏻


उच्च पदाधिकारी गण के आदेश तथा खेतों में हुई अनाउंसमेंट के अनुसार आप सब को यह सूचित किया जाता है कि दयालबाग की सभी ब्रांचों के सभी सत्संगी भाई ,  बहने , जिज्ञासु या बच्चों को प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना वायरस से बचाव हेतु दिए गए मानको के अनुसार  चलना है क्योंकि दयालबाग के सभी सत्संगिओं की पहचान हेलमेट और मास्क द्वारा हो जाती है और ऐसी शिकायत बाजार से जोर शोर से मिल रही है कि दयालबाग के सत्संगी बाजार में खरीदारी करते वक्त सोशल डिस्टेंस का बिल्कुल भी पालन नहीं कर रहे । आज के बाद यदि किसी एक व्यक्ति की शिकायत आती है तो इसका असर पूरी आगरा ब्रांचों के सत्संगियों के ऊपर पड़ेगा । आगरा के सारे  जिज्ञासुओ , बच्चों तथा उपदेश प्राप्त के लिए यह तुरंत आदेश आ जाएगा कि आप को खेत और दयालबाग के सत्संग में जाना बिल्कुल मना है। आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप खेतों में व   दुकानों पर ख़रीदारी करते वक्त सोशल डिस्टेनसिंग का कड़ाई से पालन करें तथा सभी सत्संगियों को  इस आदेश के लिए सूचित करें। राधास्वामी


: ::::::

बड़ी मेहनत लगती है मन को स्थिर रखने में
पर कोई न कोई छोटी सी  बात फिर मन को विचलित कर देती है

    चाहे लाख जतन कर लो

आखिर इन्सान हैं कही न कही कमजोर पड़ ही जाते हैं

हाँ इतना जरूर कर सकते हैं
भजन सिमरन की मात्रा को थोड़ा बढ़ा दें
तो तकलीफों की आँच कम लगती है

   
 लेकिन यह लिखना आसान और करना कठीन है
पर आज इसके अलावा और कुछ रास्ता भी तो नही है
सब दुःखों की एक ही दवा है सिर्फ और सिर्फ ----------
भजन सिमरन
                          *
शुभ रात्रि*🙏🏻


[21/04, 06:41] +91 97830 60206

: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकियात- 7 सितंबर 1932- बुधवार:- सेठ चमरिया से फिल्मों से नेक ख्यालात की प्रचार के मुतअल्लिक़ बातचीत की । उन्होंने जवाब दिया कि इस माह के अंदर फिल्म तैयार करने व आवाज भरने की मशीन कोलकाता में स्थापित हो जायेगी । और हमको अख्तियार रहेगा कि जैसी चाहे फिल्म तैयार करायें। आज बाकी के 2 प्रश्नों व 2 उत्तरो के मानी बयान किये गये।  पाठ खत्म होने पर उपस्थित भाइयों व बहनों ने दिली प्रसन्नता का इजहार किया । जीव अपनी तरफ से अपने कल्याण के लिए कोशिश करता है लेकिन तन मन की कमजोरियों और रास्ते की रुकावटों के कारण गिर गिर पड़ता है। कामयाबी हासिल करने के लिए अब्बल जरूरत मालिक की दया की है दोयम सच्चै शौक व अनुराग की और सोयम सच्चे सतगुरु की मदद की। जिस जीव को यह तीनों बख्शिशें उपलब्ध है वही बड़भागी है और उसी की चाल सुगम रीति से चलती है।।                    उस भाई से जिसने पिछली मर्तबा अपनी मूर्तियां भेंट की थी मुलाकात हुई। दरयाफ्त करने पर उसने जवाब दिया कि अब उसका दिल खुश व हर्षित रहता है और मूर्तियों की पूजा में जो वक्त खर्च होता था अब ध्यान में खर्च होता है जिससे दिल को बेहद शांति रहती है। मैंने समझाया की मूर्ति पूजा कोई पाप कर्म नही है बल्कि छोटी बुद्धि के लोगों को भक्ति मार्ग पर चलने के काबिल बनाने के लिए एक अच्छा तरीका है ।लेकिन मूर्ति पूजा एक वक्त और दर्जे तक ही जायज है वरना इंसान निरा बाहरमुखी रहकर अपनी रुहानी तरक्की का रास्ता बंद कर लेगा। मूर्ति पूजा से अगला कदम अंतरी ध्यान है।  जो लोग अंतर में ध्यान लगा सकते हैं उनके लिए मूर्ति पूजा व्यर्थ है। जिस भी इंसान का काम बना या आयंदा बनेगा अंतर की आँख खुलने ही से बना या बनेगा। इसलिए जो शख्स बाहिरमुखी क्रियाओं से हट कर अंतरमुखी क्रियाओं में लग जाये उसे तरक्की पर प्रसन्न होना चाहिए । मद्रासी भाई ने यह अल्फाज सुनकर खुशी का इजहार किया और कहा "गोप्पा संतोषम"।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[21/04, 06:41] +91 97830 60206:


 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

सतसंग के उपदेश-भाग-2-कल से आगे:

- इस पर कहा जाता है कि शास्त्रों में बहता जल पवित्र माना गया है इसलिये सब नदियों का जल पवित्र है। लेकिन जल बोतलों या गागरों में बंद करके रक्खा जाता है वह तो बहता जल नही है। नीज पंजाब में आम तौर पर देखा जाता है कि स्त्रियाँ व पक्के सनातन धर्मी भाई जब दरिया या तालाब से नहाकर आते है तो अक्सर एक लौटा भरकर साथ लाते है और चूँकि रास्ते में हर किस्म के लोगो से स्पर्श हो जाता है इसलिये अपने मकान की दहलीज से गुजरने से पहले उस लौटे से पानी लेकर कुछ छीटें अपने बदन पर इस ख्याल से डालते है कि उन छीटों के पडने पर लोगों के स्पर्श करने से लगी हुई अपवित्रता धुल जाती है। इससे साफ जाहिर है कि "बहते हुए जल"  के अलावा बोतल व लौटे वगैरह के अंदर बंद पानी भी पवित्र माना जाता है।  दूसरी मिसाल बर्तनों की लीजिये-- अगर किसी हिंदू का मिट्टी का बर्तन कोई मुसलमान या चमार छू दें तो वह हमेशा के लिए अपवित्र मान कर फेंक दिया जाता है लेकिन अगर पीतल वगैरह का बर्तन छू दिया जाए तो आग में तपाकर कर शुद्ध कर लिया जाता है मगर कांसे का बर्तन जो की आग में डालने से फट जाता है इसलिए मिट्टी से मलकर कर और जल से धोकर साफ कर लिया जाता है। इसी तरह हम लोग अपने हाथ भी मिट्टी या साबुन व पानी से धोकर साफ करते हैं मगर चांदी के बर्तन चूँकि  मिट्टी के मलने पर घिसता है और चांदी एक महंगी धातु है इसलिए चांदी के बर्तन सिर्फ जल से धो लेने पर शुद्ध माने जाते हैं और सोना क्योंकि और भी बेशकीमत धातु है इसलिए विश्वास है कि सोना हवा ही से शुद्ध हो जाता है। तीसरी मिसाल वर्णों की लीजिये-- ब्राह्मण सबसे पवित्र कहे जाते हैं, क्षत्रिय और वैश्य दर्जे बदर्जै उतर कर और  शुद्ध अपवित्र माने जाते हैं और चाण्डाल व अछूत निहायत अपवित्र। इसकी वजह अक्सर यह बतलाई जाती है कि ब्राह्मणों का खून चूँकि निहायत ही पवित्र  हैं इसलिए वे सबसे बढ़कर माने जाते हैं। लेकिन सैकड़ों ब्राह्मण गोश्त खाते हैं और होटलों वगैरह में मुसलमानों व अछूतो का पकाया हुआ खाना इस्तेमाल करते हैं । आप कहेंगे कि इस किस्म के ब्राह्मण भ्रष्टाचारी हैं, पवित्र नहीं हैं लेकिन उनकी औलाद अगर सनातन रीति पर चलने लगे वह फिर पवित्र हो जाती है। क्रमशः.                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[21/04, 06:41] +91 97830 60206:

 **परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-(2) -

【 तीरथ मूरत और निशानों की पूजा 】

:-जो लोग इन कामों में लगे हैं उनके मन में थोड़ी बहुत प्रीति और प्रकृति अपने इष्ट की रहती है, पर उसकी तरक्की नहीं होती और संसार की मुहब्बतें उस प्रीति पर हमेशा गालिब रहती है यानी इष्ट की प्रीति का मुकर्रर वक्तों का थोड़ा बहुत जहूर होता है और थोड़ा बहुत तन मन धन भी उसके निमित्त लगाया जाता है। और विशेष करके इस काम के करने में आशा संसार के पदार्थों की प्राप्ती की रहती है और बहुत कम जीव हैं जो मुक्ति की चाह लेकर इन कामों को करते हैं। यह लोग अपने इष्ट के भेद से कि वह कैसा है और कहां है और कैसे उसकी प्राप्ति होगी बेखबर है और यह भी नहीं जानते कि सच्ची मुक्ति का क्या स्वरूप है। और पहले तो यह कसर है कि उनके इष्ट कृत्रिम यानी पैदा किए हुए हैं और इस वजह से कोई मुद्दत उनके उमर और ठहराव और उनके मुकाम की मुकर्रर है। जो कोई अपने इष्ट के धाम तक भी पहुंचा, तो भी प्रलय या महाप्रलय के समय में उनका और उनके इष्ट का अभाव हो जाएगा और फिर रचना में आएंगे। भक्ति के वास्ते चार बातों का जानना जरूर है-(१) अपने इष्ट का असली नाम (२) और  रूप (३) और धाम (४) और वहां पहुंचने का रास्ता और जुगत। सो इन बातों से मूरत और निशानों की पूजा करने वाले बिलकुल बेखबर दिखलाई देते हैं। और जब ऐसा हाल है उनकी भक्ति ऊपरी रहेगी और अपने इष्ट के धाम में पहुँचना भी नहीं बन सकता। यह सब लोग टेकी है और जो कुछ कि यह अपने इष्ट के निमित्त तन मन धन थोड़ा बहुत लगाते हैं वह शुभ कर्म में दाखिल होकर उसका फल थोड़ा बहुत सुख इस दुनिया में या स्वर्ग लोक या पितृ लोक वगैरह में मिल जाता है।

क्रमशः-🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


[21/04, 14:15] +91 98912 29387: 🙏🏻🎤🎤🎤🎤🙏🏻

 *जरूरी संदेश*

कोरोना वायरस से बचाव हेतु आपको सलाह दी जाती है कि
भारत सरकार एंव उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन पूरी तरह से करें अन्यथा प्रशासन  द्वारा सख़्ती की जा सकती है जो कि असहनीय एंव कष्ट दायक हो सकती है
(1)  *सभी सत्संगी भाई ,  बहने , जिज्ञासु व बच्चे दुकानों पर खरीदारी करते वक्त एक दूसरे से कम से कम 4 फ़ीट की दूरी रखेंगें।*
(2) *मास्क व हेलमेट का प्रयोग अनिवार्य रूप से करेंगे।*
(3 *) सभी भाई -बहन,  जिज्ञासु, युवा,स्टूडेंट्स व बच्चे खेतों की  छुट्टी के बाद सीधे घर जाएं तथा बाजार में व सड़कों पर इधर उधर ना घूमें अन्यथा पुलिस उनको परेशान कर सकती है।*
(4)  *अनावश्यक रूप से या बिना किसी कारण बिल्कुल भी घर से बाहर न निकलें।*
(5) *सभी सत्संगी दुकानदार  खरीदारों को अपने आगे और पीछे कम से कम  4 फुट के डिस्टेंस का पालन करने के लिए कहेंगे अन्यथा उनको समान नहीं बेचेंगे।*
6- *वाहनों का प्रयोग (हर एक कार में आगे व पीछे एक एक सवारी तथा दो पहिया वाहन पर केवल एक सवारी) निर्धारित नियमों के अनुसार ही करें*
7- *खेतों के लिए वाहनों के साथ साथ न चले*
 *न ही क़ाफ़िले के रूप में चलें।*
8- *सड़कों पर कम से कम निकलें एंव अधिक समय घर के अन्दर ही रहें*
आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप उपरोक्त हिदायतों का कड़ाई से पालन करें। अन्यथा आपका दयालबाग और खेतों में प्रवेश बंद किया जा सकता है।
 *राधास्वामी*
[21/04, 16:36] +91 94162 65214: *6️⃣:3️⃣0️⃣ 🅿️Ⓜ️ एक चुनिंदा पाठ जब तक लॉक डाउन है तब तक ज़रूर   एक साथ मालिक के चरणों में प्रार्थना🙏के रूप में करने की आदत बनाएं*

*आज का पाठ*
2️⃣1️⃣/4️⃣/2️⃣0️⃣

*ऐ सतगुर पिता और मालिक मेरे*
*मैं चरणों पे कुर्बान हर दम तेरे*



*राधास्वामी🙏*


[22/04, 06:51] +91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजानावाकियात-8-9 सितंम्बर 1932-

बृहस्पतिवार व शुक्रवार:- सुबह 7:30 बजे मद्रास सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचे। मद्रास के बहुत से भाई मौजूद थे। 7:45 बजे रेल रवाना हुई। अनेक भाई अश्रुपूरित हो गए। मेरा भी दिल भर आया। निस्वार्थ मोहब्बत अपना ही आनंद रखती है ।।             

   4:00 बजे बेजबाड़ा स्टेशन आया।  यहां करीबन 300 सत्संगी जमा थे।  रेलवे अफसरान ने सत्संगियों की दरख्वास्त पर 10 मिनट नियत वक्त से ज्यादा रेल ठहराना मंजूर कर लिया था । उन भाइयों बहनों का प्रेम दर्शनीय था।

अक्सर भाइयों ने दिसंबर माह के जलसे में उपस्थिति के लिए इरादा जाहिर किया। और सबके सब एक जबान कहते थे कि इस जलसे से कुल संगत को बड़ा फायदा पहुंचेगा।  मैंने दो चार बातें तेलगु जबान में की।  उनका उन भाइयों पर जबरदस्त असर पड़ा।  वयोवृद्ध भाई ने कहा आप हमारे लिए इतना कष्ट उठा रहे हैं और हम बेसुध है।

  मैंने जवाब दिया- यह जिंदगी सत्संगी भाइयों की सेवा के लिए वक्फ हो चुकी है इसलिए किसी काम में कष्ट नहीं है। इतने में एक मुसलमान औरत सतसंगियों की पंक्तियों को चीरती फाडती मेरे सामने आ  गई और दर्द भरी आवाज से कहने लगी "आप मेरे पति को मुझसे मिला दे"  दरयाफ्त करने पर उसने अपने दर्द का हाल बयान किया। मैंने यथाशक्ति तसल्ली दी।

ए इंसान! तेरी रुह अपने सच्चे पति से अरसा दराज से बिछडी है और लापरवाह है। साधुवाद है इस नेकबख्त की मोहब्बत पर कि जहाँ भी जरा मदद की उम्मीद नजर आई यह आ मौजूद हुई।  और सब बातों को पृथक रख कर अपना दिली उद्देश्य बेतकल्लुफ पेश कर दिया उधर तेरी रुह है कि न उसे अपनी सुध बुध है ना अपने सच्चे पति की।।                           

 बेजवाड़ा से चलकर फुर्सत ही फुर्सत रही।  अलबत्ता जगह जगह बारिश होने से मौसम निहायत सुहाना था। और बार-बार तबीयत राधास्वामी दयाल के चरनों की जानिब आकृष्ट होती थी।

बुल्हारशाह से इटारसी तक का रास्ता दर्शनीय है। दोनों तरफ हरे-भरे पहाड़ व जंगल है। हवा निहायत ही खुशगवार है। गर्जेकि 8-9 सितंबर के दिन बडे आनंद से गुजरे।कोई काम नहीं, कोई बोलने वाला नहीं, चुपचाप कमरे में लेटे है, ठंडी हवा के झोंके लग रहे हैं और राधास्वामी दयाल अपनी दया का इजहार फरमा रहे हैं।


🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


[22/04, 06:51] +91 97830 60206

: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 2-

कल से आगे :-अलावा इसके हर सोसाइटी के अंदर हजारों मर्द व औरत दुराचारी होते हैं और दरपर्दा बिना लिहाज जात या वर्ण के नाजायज ताल्लुक पैदा करते हैं और इसी वजह से हर वर्ग के अंदर वर्णसंग्कर पैदा होते हैं जिनकी असलियत का इल्म अवाम को कतई नहीं होता । इन वाक्यात की मौजूदगी में खून की पवित्रता को आदर्श मानकर किसी जमाअत या बिरादरी को आमतौर पर पवित्र मानना गलत हो जाता है। इसके सिवा खून उस खुराक का निचोड ही तो है, जो इंसान रोजाना इस्तेमाल में लाता है और ऊँची जात के लोग आसमान से उतरी हुई किसी खास चीज का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि वही चीजें जो आम बाजार से हर जगत के लोग इस्तेमाल में लाते हैं । फिर खास जिस्मों के अंदर पवित्रता के क्या मानी? यह नहीं हो सकता कि पवित्रता खून की वजह से हो और खून से पैदा हो और वही खुराक एक जिस्म में पवित्र खून पैदा करें और दूसरे में अपवित्र। और अगर ऐसा है तो पवित्रता खून में न हुई बल्कि जिस्म में ठहरी। जिस्म की बुनियाद इंसान का वीर्य है और वीर्य यकीनन खुराक से बनता है । आप कहेंगे कि वीर्य के अंदर रूहानियत भी रहती है ।आपका यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है लेकिन अछूत के वीर्य के अंदर भी रुहानियत रहती है। अगर उसमें रुहानियत न हो तो अछूत के औलाद कैसे पैदा हो?  आप यह कहेंगे कि अछूत के वीर्य के अंदर बुरे संसकारों से सनी हुई रुहानियत रहती है और ऊँची जात वालों के वीर्य में उत्तम संस्कारों  वाली रुहानियत रहती है। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[22/04, 06:51] +91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1 -कल से आगे-( 3 )-

ब्रत:- ब्रत धारण करने से किसी कदर सफाई और हल्कापन तन मन का हो सकता है, पर शर्त यह है कि कायदे के साथ उसकी कार्रवाई की जावे। और जब की बजाय भूखे रहने और जागरण और सुमिरन और भजन करने के उम्दा उम्दा खाने फल आहार के नाम से बना कर खायें जावें और बाकी वक्त सोने और दुनियाँ के दिल बहलाने के कामों में खर्च किया जावे , तो बजाय हासिल होने परमार्थी फायदे और नुकसान होने का खौफ है। यह भी एक तरह का मन इंद्रियों को रोकने के वास्ते अभ्यासी प्रमार्थी लोगों के मुकर्रर किया गया था, इस जमाने में सिर्फ व्रत रखने पर मुक्ति का हासिल होना ठहराया गया है । सो यह बात सही नहीं मालूम होती और ऐसा ख्याल दिल में बांधना एक किस्म का भ्रम है। जो यह काम किसी से दुरुस्त बन पड़ा और वह शख्स अभ्यासी नहीं है, तो इसका फल यानी थोड़ा दुख उसको इस लोक में या परलोक में मिल जाएगा पर मुक्ति का प्राप्त होना या ईस्ट के धाम में पहुंचना व्रत रखने से नहीं मालूम होता। और जो कोई अभ्यासी ब्रत रखेगा तो उसके अंतर में सफाई और अभ्यास में किसी कदर आसानी होगी, पर सच्चा उद्धार बगैर संतो के अभ्यास सुरत शब्द योग के किसी सूरत में नहीं हो सकता है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[22/04, 12:27] +91 96466 44583

: *हम कहीं सफर में जाते हैं*

तो क्या उस रेल चालक को हमने देखा या मिले हैं...? शायद नहीं...? उसके बावजूद भी हमें यकीन रहता है कि वो हमें अपनी मंजिल तक जरूर पहुँचायेगा !!  पर जिस परम सतगुरू से हम मिल चुके हैं जो हमें भवसागर से पार ले जाने की पूरी पूरी जवाबदारी लेता है उस पर कोई भरोसा नहीं ?? अगर होता तो हम फिजूल के कर्मकाड़ों में नहीं लगे रहते.....विचार करे !!

🙏🙏🙏🙏🙏


[23/04, 02:04] +91 94162 65214:

 **राधास्वामी!! 23-04-2020-   

             
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-           
                                                            (1) जुगनियाँ चढी गगन के पार। सुनी  राधास्वामी धूम अपार।। पिया घर पहुँची मौज निहार। हुई राधास्वामी के बलिहार।। (सारबचन-शब्द-4,पृ.सं.81)                           
 (2) सुरतिया रंग भरी। गुरू सन्मुख उमँगत आय।। गुरु से करज फरियाद घनेरी। क्यों नहिं मेरी करो सहाय।। (प्रेमबानी-2-शब्द-103,पृ.सं.226)                                                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[23/04, 10:25] +91 96466 44583

: जिस *'द्वार'* पर *'दाता'* दान देता है, उस द्वार पर जाओ, तो कुछ मिलेगा, वह *अंदर* है, हम *बाहर* बैठे हुए हैं।


   जब *अंदर जाएं,* तो मिले। अगर *अंदर नहीं जाएं,* तो मिले क्या?


[23/04, 10:46] +91 94162 65214

: #गुरू_का_दास

रोज गुरू के द्वार पर जा कर रोज गुरू को पुकारा करता था लेकिन गुरू के दर्शन नहीं कर पाता था इसलिए वह हमेशा यही सोच कर चला जाता था कि शायद मेरी भक्ति भाव में कुछ कमी है इसलिए वो हर रोज बहुत ही प्रेम भाव से प्रभु के नाम का जाप करता और गुरू के दीदार किये बिना ही चला जाता था बहुत दिनों तक यह चलता रहा एक दिन गुरू के दास से रहा नहीं गया उसने गुरू जी से पूछा कि गुरू जी ये आपके दर्शनों के लिए रोज सच्चे मन से आता है और आपको पता भी होता है तो आप इसको अपने दर्शनों से निहाल क्यों नहीं करते तो गुरू महाराज कहते हैं कि उससे ज्यादा तड़फ मुझे है मिलने की लेकिन जिस प्रेम भाव से वो प्रभु का नाम लेता है मैं छुप कर उसकी अरदास को सुनता रहता हूँ सिर्फ इसी डर से कहीं मेरे दर्शनों के बाद वो नहीं आया तो ऐसी प्रेम भरी अरदास कौन सुनाएगा मुझे इसकी अरदास बहुत अच्छी लगती है इसलिए मैं छुप कर सुनता रहता हूँ ये जरूरी नहीं कि हम रोज गुरू के चरणों में अरदास करते हैं तो गुरू हमारी सुनते नहीं हो सकता है कि गुरू को हमारी अरदास पसंद हो इसलिए बार बार सुनना चाहते हैं सतगुरू जी हमारी हर मोड़ पर संभाल करते हैं इसलिए हर हाल में जैसा भी वक्त हो हमें हर पल शुक्रराना करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए मुर्शिद के चरणों में यही विनती है कि वह हम सभी को हर हाल में खुश रहना सिखाएं.

🙏🙏🙏🙏

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