Saturday, April 25, 2020

मानस रोगों पर चर्चा




   प्रस्तुति- कृष्ण  मेहता: *🌟🌹

मानस रोग पर चर्चा....🌟🌹*

    *युग तुलसी श्री रामकिंकर उवाच .....*

*क्रमशः से आगे..*

*काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥*
     *७.१२१.१५*

*मनुष्य का मन काम, क्रोध और लोभ से परिचालित होता है । यदि व्यक्ति के मन में काम न हो, तो यह आशंका बन सकती है कि व्यक्ति कहीं निष्क्रिय न हो जाए । यदि लोभ के माध्यम से समाज में धन संग्रहित न हो, तो परिणाम यह होगा कि समाज निर्धन हो जाएगा । दरिद्रता के विनाश के लिए या अन्य मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए जिस धन की आवश्यकता है, उसकी पूर्ति लोभ के द्वारा होती है । *

*इस प्रकार काम और लोभ के द्वारा समाज में सृष्टि का और उसे गतिशील बनाने का कार्य सम्पन्न होता है । इनके साथ क्रोध के रूप में यह जो पित्त है, उसका भी अपना मौलिक महत्व है । उसके अभाव में भोजन ज्यों का त्यों बना रहेगा, जिससे शरीर शक्तिशाली नहीं बन पाएगा । पित्त अग्नि के रूप में भोजन को जलाकर ऐसी ईंधनशक्ति के रूप में परिणत कर देता है, जिससे शरीर को अपने संचालन के लिए आवश्यक रसों की प्राप्ति होती है । पर जब यही पित्त शरीर में अधिक बनने लगता है, तो वह अन्न को भस्मीभूत करने के स्थान पर व्यक्ति के ह्रदय को ही जलाने लगता है ।*

* क्रोध की प्रक्रिया भी ठीक ऐसी ही है । वैसे काम और लोभ की तुलना में क्रोध की विचित्रता पर लोगों का ध्यान कम जाता है । क्रोध के प्रति हमारी सजगता की वृत्ति उतनी नहीं होती, तथापि जीवन में व्यक्ति जिसका प्रतिक्षण अनुभव करता है, वह क्रोध है ।*

*यदि हमारे जीवन में काम, क्रोध और लोभ के ये तीनों विकार संतुलित हैं, तो मानस रोग दूर होते हैं। अतः हम इन तीनों को नियमित और संतुलित करने की चेष्टा करें, उन्हें ऐसी दिशा में मोड़ दें जिससे वे हमारे तथा समाज के लिए कल्याणकारी हो सकें। *

*जो शरीर का रोगी है, वह अकेले ही उस रोग के फल का भोग करता है, पर मन का रोगी दूसरे व्यक्ति को भी रोगी बना देता है। एक व्यक्ति का काम दूसरे में क्रोध की उत्पत्ति करता है। यदि अकेला व्यक्ति कामी बनेगा तो उसकी प्रतिक्रिया में दूसरा व्यक्ति, जिसे हानि होगी, क्रोधी बनेगा। *

*एक लोभी समाज को दरिद्र बना देता है। एक क्रोधी समाज में भय की सृष्टि कर देता है। इस प्रकार एक अस्वस्थ व्यक्ति समाज को भी अस्वस्थ बना देता है यही मानस - रोगों की समस्या है। संतुलित और स्वस्थ समाज के लिए व्यक्ति का मानस-रोगों से मुक्त होना आवश्यक है।*

*क्रमश:....*
[25/04, 07:23] Morni कृष्ण मेहता: *अहंकार*"   *दिखाकर*
            *किसी रिश्ते को तोड़ने से*
 *कहीं अच्छा है कि*,
                   "*क्षमा*" *मांगकर उस रिश्ते को* *निभाया  जाये*।
               *केवल* *"रोजी रोटी"* *कमाना ही*
              *हुनर की बात नही है.*...
      *बल्कि*
                    *परिवार के साथ* *"राजी राजी* *रोटी"* *खाना*,
            *भी बहुत बड़ा हुनर है*..!!
     
         *श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं* :-
*कभी किसी के चहरे को मत देखो*
       *बल्कि उसके मन को देखो*।
*क्योंकि*
     *अगर सफेद रंग में वफा होती*।
*तो नमक जख्मों की दवा होती*।
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