Sunday, June 28, 2020

बाल्मीकि रामायण -2




.                             #श्रीराम
गत पोस्ट से आगे_____६

   ऐसे प्रतापी , धर्मज्ञ महाराज दशरथ के तपस्या करने पर भी कोई वंशवृद्धि करने वाला कोई पुत्र न था।

चिन्तयानस्य तस्येयं बुद्धिरासीन्महात्मनः ।
सुतार्थी वाजिमेधेन किमथे न यजाम्यहम् ॥ २ ॥

   तब बुद्धिमान महाराज दशरथ ने मन में सोचा कि, मैं पुत्र-प्रा्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ क्यों न करूँ।

स निश्चितां मतिं कृत्वा यष्टव्यमिति बुद्धिमान् ।
मन्त्रिभिः सह धर्मात्मा सर्वैरेव कृतात्मभिः ॥३॥

   इस प्रकार यज्ञ करने का भली भांति निश्चय करके, परमज्ञानी महाराज ने अपने बुद्धिमान मंत्रियों को बुलाया।

ततोऽब्रवीदिदं राजा सुमन्त्रं मन्त्रिसत्तमम् ।
शीघ्रमानय मे सर्वान्गुरुंस्तान्सपुरोहितान् ॥ ४॥

   सब मंत्रियों में श्रेष्ठ सुमंत्र से महाराज दशरथ ने कहा कि, तुम हमारे सब गुरुओं और पुरेहितों को शीघ्र बुला जाओ।

ततः सुमन्त्रस्त्वरितं गत्वा त्वरितविक्रमः।
समानयत्स तान्सर्वान्गुरूंस्तान्वेदपारगान् ॥ ५ ॥

   शीघ्रगामी सुमंत्र अति शीघ्र उन सव वेदपारंग गुरुओं को बुला लाये।

सुयज्ञ वामदेवं च जावालिमथ काश्यपम् ।
पुरोहितं वसिष्ठं च ये चान्ये द्विजसत्तमाः ॥ ६॥

   सुयज्ञ, वामदेव, जावालि, काश्यप, और पुरोहित वशिष्ठ के अतिरिक्त अन्य उत्तम ब्राह्मणों को भी सुमंत्र जी बुला ले गये।

तान्पूजयित्वा धर्मात्मा राजा दशरथस्तदा ।
इदं धर्मार्थसहितं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत् ॥ ७ ॥

   उन सब का धर्मात्मा महाराज दशरथ ने सम्मान किया और धर्म और अर्थ युक्त उनसे यह मधुर वचन कहे।

मम लालप्यमानस्व पुत्रार्थ नास्ति वै सुखम् ।
तदर्थ हयमेधेन यक्ष्यामीति मतिर्मम ॥ ८ ।।

   पुत्र के लिये बहुत विलाप करने पर भी मुझे पुत्रसुख प्राप्त नहीं हुआ । इस लिये पुत्रप्राप्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ करने की मेरी इक्षा है ।

तदहं यष्टुमिच्छामि शास्त्रदृष्टेन कर्मणा ।
कथं प्राप्स्याम्यहं कामं बुद्धिरत्र विचार्यताम्॥ ९ ॥

   किन्तु में शास्त्र की विधि के अनुसार यज्ञ करना चाहता हूँ | आप लोग सोच विचार कर वतलावें कि हमारी ईष्टसिद्धि किस प्रकार हो सकती है।

ततः साध्विति तद्वाक्यम् ब्राह्मणाः प्रत्यपूजयन् ।
बसिषष्ठप्रमुखाः सवें पार्थिवस्य सुखेरिदतम् ॥ १० ॥

   महाराज के यह वचन सुन कर, सव उपस्थित ऋह्मणों ने महाराज के विचारों की प्रशंशा की, और वशिष्ठादि बोले कि, आपने बहुत अच्छा कार्य करना विचारा है।

ऊचुश्च परमप्रीताः सर्वे दशरथं वचः ।
संभाराः संभ्रियन्तां ते तुरगश्च विमुच्यताम् ॥११॥

   सब अत्यन्त प्रसन्न हो महाराज से बोले कि, यज्ञ की सामिग्री एकत्र करके घोड़ा छोड़िये।

सरय्वाश्चोत्तरे तीरे यज्ञभूमिर्विधीयताम् ।
सर्वथा प्राप्स्यसे पुत्रानभिप्रेतांश्च पार्थिव ।। १२ ॥

   सरयू नदी के उत्तर तट पर यज्ञ मंडप बनवाइए । हे राजन् ऐसा करने से आपका पुत्र प्राप्ति का मनोरथ अवश्य पूरा होगा।

श्रीमदबाल्मीकिकृतरामायण के बालकाण्ड के अष्टम् सर्ग से लिये गए श्लोक एवं अर्थ।

क्रमशः .......  @शिव....✍️

No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...