Monday, June 22, 2020

संसारचक्र





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-   

   【 संसार चक्र】- कल से आगे:-   

                   

दुलारेलाल -पंडित जी ! मेरा दिल चाहता है कि अब अपना समय इन बातों की तहकीकात में लगाऊँ, बहुत कुछ संसार भोग लिया है, पशु की तरह बहुत से खेत चर लिये है अब मनुष्य भी बनना चाहिए;  पर अगर संसार मिथ्या है तो फिर इसके संबंध में कोई छानबीन भी फिजूल ठहरती है।।                                                   

पंडित जी- संसार मिथ्या नजर आने पर आत्मा सत्य नजर आने लगता है।।                             



दुलारेलाल- मैं नहीं समझा ।।                     

पंडित जी- महाराज के समझने की बात है, महारानी जी! आप भी ध्यान दें। गर्मी सर्दी, धूप छाँह और सत्य असत्य का मुकाबला होने पर ही एक दूसरे की पूरी समझ आती है।।                   

  दुलारेलाल -माता !क्या हम आपकी सेवा कर सकते हैं?  हमने आज आपको बड़ा कष्ट दिया पर आपके आने और पंडित जी के उपदेश से हमारे दिल का दुख हल्का हो गया।।                   

बुढिया- मेरी क्या सेवा?  4 दिन जीने के बाकी है सो आप ही कट जायँगे, बहुत गई, रही थोड़ी सी। पर एक बात तुम्हे बताती हूँ- तुम जब तब महात्माओं के बचध बानी का पाठ सुना करो। इस दिल को बड़ी ढारस बँधती है और समय मिलने पर तीर्थ यात्रा भी करना। साध संग से भी बडा लाभ होता है।।                                       

 पंडित जी- महात्माओं के अमृत वचन प्रचंड से प्रचंड अग्नि को शांत कर देते हैं ।।                 
बुढ़िया- मेरा जब जी घबराता है पड़ोस में कथा में जा बैठती हूं वहां बैठते ही संसार भूल जाता है।                                                           

    इंदुमती-माता!  कभी-कभी यहां भी आया करो ये लो बीस रुपये ले जाओ ।।                   

  बुढिया- आप राजा महाराजा है, हम प्रजा है, आपके पुत्र हैं, सेवक हैं , आपका दिया सिर माथे पर , पर जो आज्ञा हो तो एक भजन सुना दूँ ,फिर जाऊँ?                                       


 इंदुमती -जरूर सुनाओ।।                         

 ( बुढिया गाती है)                                       

साधो जी! तन नगरी नहीं फंसना ।।टेक।।।     

इस नगरी में चोर बसत है, चोरन बस क्या बसना। दाव पडे पर लें तोहिं लूटी, करी है नेक तरस ना।। कूड जवानी, कूड बुढ़ापा, कूड ही रोना हंसना। कूड भोग और कूड इन द्वारे, नैन श्रवन नस रसना।।  अमर लोक के तुम हो बासी, नेक जहाँ पर बस ना। तन नगरी तज वा घर घर चालो, करना नेक अलस ना ।।।                     

 दुलारेलाल -बहुत ठीक! बहुत अच्छा, अब कुछ दिन साध-संग ही करेंगे। क्रमशः                       

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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