Friday, June 19, 2020

कहाँ पे बोलना है / महाकवि वाट्सअप जी





*मुझे नहीं पता ये कविता किसने लिखी है पर सच में जिसने भी लिखी है अद्भुत लिखी है।*


*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं।*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

*कटा जब शीश सैनिक का*
*तो हम खामोश रहते हैं।*
*कटा एक सीन पिक्चर का*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*नयी नस्लों के ये बच्चे*
*जमाने भर की सुनते हैं।*
*मगर माँ बाप कुछ बोलें*
*तो बच्चे बोल जाते हैं।।*

*बहुत ऊँची दुकानों में*
*कटाते जेब सब अपनी।*
*मगर मज़दूर माँगेगा*
*तो सिक्के बोल जाते हैं।।*

*अगर मखमल करे गलती*
*तो कोई कुछ नहीँ कहता।*
*फटी चादर की गलती हो*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*हवाओं की तबाही को*
*सभी चुपचाप सहते हैं।*
*च़रागों से हुई गलती*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*

*बनाते फिरते हैं रिश्ते*
*जमाने भर से अक्सर हम*
*मगर घर में जरूरत हो*
*तो रिश्ते भूल जाते हैं।।*

*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*

       ✍ *अज्ञात* ✍

       *🙏🙏🙏🙏*

*यह कविता बार बार पढ़ें।आपको हर बार एक नया अहसास होगा।*

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