Sunday, June 28, 2020

संसारचक्र रोजाना वाक्यात और प्रेमपत्र






*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】- कल से आगे:-

( चौथा दृश्य )   

     

(कुरुक्षेत्र के एक टूटे-फूटे मकान के कमरे में कुछ लोग जमा है। रात का वक्त है, धीमा सा चिराग जल रहा है, मश्वरा हो रहा है।)     


एक शख्स- कहो प्यारो! कोई खुशखबरी सुनाओ।

 दूसरा शख्स -आज तो गोवर्धन के सिर सेहरा है।

 तिहरा शख्स- गोवर्धन भगत! बोलते क्यों नहीं?

  गोवर्धन भाई बोले क्या? आज तो जान ही चली थी, साले ने तलवार सूँत ली थी।

पहला शख्स-है हैं। यह कैसे सारा हाल सुनाओ।

 गोवर्धन- कोई पुरबिया है, साथ में राँड लिये है,  600/- तो नकद वसूल कर लिये है ,10,000/- कल दान करने को तैयार था पर काम बिगड़ गया। ये 10000/- किसी तरह ऐठनें चाहिए।

( पंडित गरुडमुख दाखिल होता है।)

पहला शख्स- कहो यार !बड़ी देर में आये?

गरुडमुख- वह सो गए तब आया हूँ। अब कोई ऐसी सूरत निकालो कि यह सोने की चिड़िया हाथ से निकलने न पावे।

पहला शख्स-तुम इसकी फिक्र न करो।

 गोवर्धन भगत! तुम सब काम छोड़कर इसका पीछा करो । जहाँ जाए  साथ जाओ और जहां मौका मिले काम तमाम कर दो।
( कुछ वक्ता के बाद ) अच्छा! मंगाओ गुड़ चने।


(एक शख्स ने पेश करता है और पहला शख्स कुछ देर ध्यान लगा कर बैठ जाता है और फिर गुड चने तक्सीम करता है।)


दूसरा शख्स- बड़ी कृपा भवानी माई की है, मुद्दत पीछे ऐसा दाँव पड़ा है।

 गोवर्धन-  मुझे तो वह पहचान लेगा, नत्थू इस काम पर लगाया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा । वैसे हम सब पीछे पीछे रहेंगे । 

  पहला शख्स- अच्छा नत्थू महाराज!  उसे परिक्रमा के बहाने जंगल की तरफ ले आओ और हम यात्रियों के भेष में पीछे पीछे रहेंगे। सब मिलकर -बहुत अच्छा।।

  गोवर्धन- लो अब सगुन तो ले लो। नत्थू महाराज!  गाओ न ,मंगल गाओ ,यह लो झाँझ।

( नत्थू पंडित गाता है)

                                                 
  ऐसी रे भवानी माता --महारानी माता।।टेक।।

 तीन लोक का पालन करती, दुश्मन के प्रानन को हरती।
खड़ग हाथ ले बध बन पडती, भक्तन की अन्नदाता । रे भवानी माता।।

 चले खड़क अब जग में माई, रक्तनदी नित चढे सवाई।
 तेरा हुकुम तेरी ठुकराई, भगतन यही सुहाता रे भवानी माता।।

  देव सगुन कोई माता प्यारी, गर्दभनाद हो मंगलकारी।
या शिवरगालन की  किलकारी दूर रहे उत्पाता। रे भवानी माता।।

(गाना खत्म होते ही सब चुप हो जाते हैं।
इत्तिफाक से कुत्ते की आवाज सुनाई देती है।) सब मिलकर -हाय गजब हो गया! क्रमशः                 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत- कल से आगे:-


 उसके बाद सर कोर्टनी टैरेल ने अपनी स्पीच शुरू की । तारीफों के पुल बांध दिए । मालूम होता था कि उनका दिल मोहब्बत व तारीफ से उमड़ रहा है। एक एक चीज की तारीफ की।  आपने" डिसकोर्सेज" का अध्ययन किया है।  इसलिए अव्वल सत्संग की तालीम की , फिर दयालबाग के इंतजामात की, फिर दयालबाग की शिल्पों की तारीफ की। उसके बाद मैंने सभा व सत्संगी की जानिब से हाजिरीन और सर कोर्टनी का शुक्रिया अदा किया।

 जलसे का पंडाल खचाखच भरा था। मालूम होता है कि मिस्टर सिन्हा व सर कोर्टनी की वजह से इतनी जनता जमा हुई ।सर कोर्टनी टैरेल चीफ जस्टिस के अलावा 5 जजान हाई कोर्ट मौजूद थे । जस्टिस जेम्स, जस्टिस जल,जस्टिस मोहम्मद नूर , जस्टिस कुलवंत प्रसाद और जस्टिस ज्वाला प्रसाद।


दोनों मिनिस्टर साहबान मौजूद थे सर फखरुद्दीन और सर गणेश दत्त सिंह । उनके अलावा सैकड़ों प्रतिष्ठित कुलीन लोग व खवातीन मौजूद थी। कोर्टनी से बहुत सी बातें हुई । उन्होंने अपनी स्पीच नीज बाद में बहुत जोर इस बात पर दिया कि दयालबाग की एक शाख पटना में खोली जावे।

Nn मिनिस्टर साहबान व जज साहबान से भी बहुत बातें हुई। सर गणेश दत्त सिंह साहब व जस्टिस मोहम्मद नूर साहब व राजा साहब सूरजपुरा ने दयालबाग आने का इरादा जाहिर किया। जलसा बर्खास्त होने पर सब लोग नुमाइशगाह गये।

चीफ जस्टिस साहब ने एक एक चीज का मुआयना किया।  केमिकल बैलेंस का परीक्षण किया। और बायोलॉजी के मॉडल्स के विवरण में गये। उसके बाद सब मेहमान एट-होम में शरीक हुए। और 6:00 बजे अपने घरों को रवाना हुए। मेरी राय में पटना का जलसा लाहौर सै ज्यादा कामयाब रहा ।

क्रमशः   

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




*परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे -


बहुत से सतसंगियों को खबर भी नहीं है कि पहला मुकाम किस कदर दर्जा बुलंद रखता है, यानी कुल बडे मतों का यह पद सिद्धांत है और जहां से 3 लोक की रचना की कार्रवाई हो रही है और जहाँ जानबूझकर योगी लय हो गये और इधर का होश इनको नहीं रहा। अब बड़ी भारी दया राधास्वामी दयाल की है कि ऐसे रास्ते और ऐसी जुगती से अपने सच्चे परमार्थी जीवो को चलाते हैं और चढ़ाते हैं कि जिसमें उनके दुनिया के किसी कारोबार में हर्ज भी ना होवे और परमार्थ में आला दर्जा सहज में बेमालूम हासिल होता जावे। इस का ज्यादा और विस्तारपूर्वक हाल लिखने में नहीं आ सकता, अलबत्ता कुछ थोड़ा सा जवानी कहा जा सकता है।।                                                   

( 10 ) सच्चे और प्रेमी अभ्यासी को चाहिए कि वह सत्संग में बैठकर अच्छी तरह से निर्णय और तहकीक के बचन यानी इन पांच बातों को गौर से सुन कर और समझ कर अपने मन के भरम और संदेह और शकों को जिस कदर जल्दी हो सके दूर करें नहीं तो वह अभ्यास में विघ्न डालेंगे और इसके मन और सुरत को सफाई और शौक के साथ भजन और ध्यान में लगने नहीं देंगे।

क्रमशः                   




🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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