Monday, June 22, 2020

शाम के सतसंग का वचन 22/06/2020





राधास्वामी!!

 22- 06 -2020

 -आज शाम के सत्संग पढ़ा गया बचन

 कल से आगे-(28)

'हिस्ट्री ऑफ वेदिक लिटरेचर ' जिल्द २ के पृष्ठ 204 पर पंडित भगवद्दत्त, रिसर्च स्कॉलर, डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर, लिखते हैं:-                                                         

मंत्रों के स्वर -सहित शुद्ध पाठ से वैसा ही चक्र वायुमंडल और आकाश में चलने लग पड़ता है जैसा कि सृष्टि बनते समय जब मंत्र उत्पन्न हुए थे चल रहा था । और पृष्ठ 184 पर शतपथ ब्राह्मण 4-4-5-6 का उल्लेख करके लिखा है:-" साम-मन्त्रों के पाठ से उत्पन्न हुआ वह स्वर नाशक कीटाणुओं के मारने वाला है "। यह लेख का तक युक्त है" इसके विषय में यहां कुछ नहीं कहा जा सकता ।

हाँ इतना अवश्य है कि किसी ध्वन्यात्मक नाम का उचित रीति से किसी अंतरी केंद्र (चक्र, कमल या पदम) पर सुमिरनन करने से उस केन्द्र में उस प्रकार की कंपन क्रिया उत्पन्न हो जाती है जैसे कि ब्रह्मांड में (आलमे कबीर) में उस केंद्र से अनुरुपता रखने वाले लोक या धाम में उसकी कैंद्रिक शक्ति के विकास से हो रही और  ठीक अभ्यास के उपरांत स्वरसम्मेलन के नियम(Law of Har money of Sounds)  के अनुसार दोनों कंम्पन क्रियाओं से प्रकट होने वाली ध्वनियां मिलकर एक हो जाती है (इसी को मंत्र सिद्धि कहते हैं)।

इस अवस्था में सुमिरन करने वाले की चेतनता में धाम के धनी की शक्ति के प्रभाव से आशा और अनुमान से बढ़कर वृद्धि हो जाती है, यहां तक कि जब तब उसे अंतर में धाम के धनी के ज्योतिर्मय रूप का दर्शन और उसकी शक्ति की धारों से उत्पन्न चैतन्य शब्द का अनुभव होने लगता है।।                                                         

राधास्वामी दयाल का बचन है:-                          स्वाँतिबूंद जस रटत पपीहा।अस धुन नाम लगाये।

नाम प्रताप सुरत अभ जागी।

 तब घट शब्द सुनाये।
शब्द पाय गुरु शब्द समानी।
सुन्न शब्द सत् शब्द मिलाये।
अलख शब्द और अगम शब्द ले।
 निज पद राधास्वामी पाये।
पूरा घर पूरी गति पाई।
 अब कुछ आगे कहा न जाये।।

(सारबचन बचन पहला, शब्द -2)

अर्थात प्रेमी जन अपने अंतर में इस तरह से नाम का सुमिरन करता है जैसे पपीहा स्वाँतिबूंद के लिए रटना लगाता है ।नाम के सुमिरन से सोई हुई सूरत शक्ति धीरे-धीरे जागृत हो जाती है और अभ्यासी के अंतर में चैतन्य शब्द प्रकट हो जाता है।  इस शब्द को पकड़कर उसकी सूरत गुरु शब्द अर्थात त्रिकुटी के ओम् शब्द को प्राप्त होती है और फिर सुन्नस्थान और सत्यलोक के शब्दों से मेल करती हुई। अलखलोक और अगम लोक के शब्दों से संबंध जोड़ती है और अंत में अभीष्ट स्थान अर्थात राधास्वामी धाम में प्रवेश करती है ।यहां पहुंचने पर यात्रा समाप्त हो जाती है और पूरा घर और पूरी गति प्राप्त हो जाती है। यहाँ पहुंचकर जो दशा आनंद और ज्ञान की होती है वर्णन में नहीं आ सकती ।।

                                         

  गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी रामायण में मंत्र की शक्ति का विलक्षण रूप से वर्णन किया है। लिखा है :-मंत्र परम लघु जासु वश, विधि हरि हर सूर सर्व।महात्तम गजराज कहँ, वंश कर अंकुश खर्व।।।     

                    

   अर्थ- मंत्र बहुत छोटा होता है और उसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सब देवता रहते हैं और बड़े मतवाले हाथी को छोटा सा अकुशं वश में कर लेता है

 (बालकांड, 247)

श्री ग्रंथसाहब साहब में सहस्त्रो  बचन नाम के सुमिरन की महिमा में आये है जैसे जपजी साहब साहब की अंतिम कडी में फर्माया है:-  जिन इनाम धियाइया, गये मुशक्कत घाल। नानक से मुख उज्जले,केती छूटी नाल ।।               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻   

                           

यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...