Monday, June 22, 2020

प्रेम पत्र



**परम गुरच हजूर महाराज-

 प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे :-(17 )


 जब यह संत और साध भी गुप्त हो गए और उनके घराने में भी सिर्फ बानी का पाठ और नाम का जबानी सुमिरन रह गया या कोई रस्म और पूजा बाहरमुखी चल गई, और विद्या के ज्यादा फैलने से उनमें से कितने ही बाचक ब्रह्म ज्ञान के तरफ रजू हो गये,और प्राण और मुद्रा के साधन करने वाले और उसके भेदों जुगत के जानने वाले भी बहुत कम रह गये और  रस्मी तौर पर कसरत से जीवो का झुकाव मूरत पूजा और तीरथ व्रत और नेम और आचार की तरफ हो गया , और फिर कोई कोई नये विद्यावान नास्तिकों के समझ पकड़ने लगे. तब कुल मालिक राधास्वामी दयाल आप सतगुरु रूप धारण कर जगत में प्रगट हुए और आसान तौर से सुरत शब्द मार्ग की जुगत, जो धुर मुकाम तक पहुंचाने वाली है और जिसको आज तक किसी संत ने भी साफ तौर पर प्रगट नहीं किया था, सहज और आमतौर पर समझाई कि जिसमें हर कोई मर्द और औरत, विद्यावान्  और अविद्यावान, हिन्दू और मुसलमान और ईसाई और जैन और श्रावक और पारसी और यहूदी यानी किसी कौम या पंथ या देश का आदमी होवे शामिल होकर अपना सच्चा उद्धार आप हासिल कर सकता है और जीते जी अपने मुक्त होने की सूरत किसी कदर (यानी जिस कदर उसका अभ्यास तेज होवे) अपने अंतर में अपनी हालत को परख कर आप जांच कर सकता है।।   
              

   ( 18 ) इस मत को राधास्वामी मत या संतमत कहते हैं । और इसकी कार्यवासी इस तौर पर है कि बाहर तो संत सतगुरु या साधगुरु का ( जो भाग से मिल जावें) सत्संग और उनकी और उनके सच्चे भक्तों या प्रेमियों की सेवा तन, मन, धन से करना, और अंतर में सुमिरन करना सच्चे नाम का मन से , और सुनना नाम की धुन का चित्त के साथ। और मालूम होवे कि वह धुन घट घट में, यानी हर एक आदमी के अंतर में,  हर वक्त आप ही आप हो रही है उसका भेद विस्तारपूर्वक स्थानों के जहाँ होकर उस धन की धार सच्चे मालिक के चरणो से उतरकर पिंड यानी देह में आई है;संत सतगुरु या साधगुरु या उनके सच्चे अभ्यासी सत्संगी से मिल सकता है और राधास्वामी दयाल की बानी और बचन में भी साफतौर पर लिखा है। पर बिना भेदी अभ्यासी के समझाएं किसी के समझ में नहीं आ सकता है।

क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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