Wednesday, June 24, 2020

24/06 को शाम के सतसंग में पढ़ा गया वचन.





**राधास्वामी!!

24-06-2020-

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-.

                        

 (1) आज मेरे आनंद बजत बधाई, नइ होली खेलन मन भाई।।टेक।। हमको सतगुरू लिया अपनाई। करम भरम सब फूँक जलाई। दृढ परतीत और प्रीति जगाई। धुर घर का निज भेद लखाई। सुरत मन अधर चढाई।।- 【(हिये में छिन छिन राधास्वामी गाई)】 तक (प्रेमबानी-भाग-3,शब्द-2,पृ.सं.261)       

(2) हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा। हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।।-【( ऐ साहबे करामत! वै मायए अतूफत)】तक  (प्रेमबिलास-शब्द-136,पृ.सं.200-201)                   

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।।     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!!

24-06- 2020 -

आज शाम के सतसंग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे -    (31)-

 सुरत अर्थात आत्मा के जाग्रत होने पर अभ्यासी में सूक्ष्म दर्शन, श्रवण आदि ज्ञानेंद्रियों के द्वारा अनुभव की शक्ति आ जाती है और उसे दिव्य दृश्यों का उसी प्रकार ज्ञान होने लगता है जैसे साधारण मनुष्य को जागृत अवस्था में संसार का ज्ञान होता है।
मौलाना रूम फरमाते हैं:- पञ्ज हिस्से हस्त जुज ईं पञ्ज हिस। काँ चो जर्रे सुर्ख व ईं हिसहा चो मिस।।।                         

 अर्थात मनुष्य के अंतर में इन पंच ज्ञानेन्द्रियों  के अतिरिक्त और भी पांच इंद्रिया हैं और वे इतनी सूक्ष्म है कि यदि पांच ज्ञानेंद्रियों की तांबे से तुलना की जाए तो उनकी सोने से तुलना करनी होगी। पर आश्चर्य और खेद यह है कि हरचंद एक मत में इन सूक्ष्म इंद्रियों और चैतन्य शब्द की महिमा वर्णन की गई है तो भी आजकल बहुत से लोग इनका जिक्र सुनकर नाक भौं चढ़ाते हैं।

 राधास्वामी- मत बतलाता है कि सुरत एक चैतन्य शक्ति है और ज्ञान उसका प्राकृतिक गुण है । यद्यपि इस समय सुरत शरीर और मन के आवरणों में लिपटी है तथापि उसके साथ तत्वों के गुणों के प्रभाव से तन और मन तक अपनी पात्रता तथा योग्यता के अनुसार चैतन्य हो रहे हैं।

 ज्यों ज्यों साधन के द्वारा सुरत इन आवरणों से मुक्त होती जाती है त्यों त्यों उसके स्वभाविक गुण अधिक से अधिक वेग से प्रकट होते हैं , यहां तक कि सब के सब आवरण दूर होने पर उसका सत् चित्त और आनंद स्वरूप प्रकट हो जाता है ।

जोकि राधास्वामी मत का साधन अर्थात सुरत -शब्द -अभ्यास सुरत को इन आवरणों से  क्रमशः मुक्त करने ही की क्रिया है और सुरत का अंतर में क्रमशः ऊंचे चैतन्य केंद्रों पर पहुंचना इन आवरणों से धीरे-धीरे छुटकारा पाने का ही चिन्ह है

इसलिए स्वभावतः  इस साजन के बंद पड़ने पर अभ्यासी के अंतर में क्रमशः से सूक्ष्म और अति सूक्ष्म गुण (दिव्य ज्ञानशक्तियां) प्रकट होते हैं और 1 दिन अर्थात सुरत शक्ति के पूर्णतया जागृत होने पर वह कुल मालिक के निरावरण अर्थात प्रकट दर्शन करके कृत्य कृत्य  हो जाता है।।

                   

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-
परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**



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